InterviewSolution
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“शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्य परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।या“शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य एक-दूसरे के पूरक हैं।” कैसे ? |
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Answer» वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य : एक-दूसरे के पूरक शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की आधारभूत मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि ये दोनों ही उद्देश्य अपनी-अपनी विशिष्टताओं से युक्त होते हुए भी अनेक परिसीमाओं में बँधे हैं। दोनों के ही अपने-अपने गुण तथा दोष हैं। वास्तव में, व्यक्ति और समाज को एक-दूसरे का विरोधी मानने वाले सभी शिक्षाशास्त्रियों ने अपने मत प्रतिपादित करते समय व्यक्ति और समाज को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दे डाला। इसका अच्छा परिणाम नहीं निकला और अन्तत: व्यक्ति एवं समाज दोनों ही पक्षों की पर्याप्त हानि हुई। इस हानि को रोकने की दृष्टि से एक समन्वित विचारधारा के अन्तर्गत अग्रलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना उपयोगी है– 1. वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्यः एक-दूसरे के पूरक व्यक्ति एवं समाज तथा इन पर आधारित. शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों में से कौन-सा प्रमुख है? इसे लेकर पुराना विवाद है। इस विवाद की समाप्ति के लिए हमें एक मध्य मार्ग चुन लेना चाहिए और दोनों ही पक्षों को एक-दूसरे के समीप लाने का प्रयास करना चाहिए। किसी एक को प्रधानता देकर दूसरे की उपेक्षा करना उचित नहीं है। दोनों को ही समान महत्त्व है। व्यक्तियों के मिलने से समाज बनता है और सामाजिक परम्परा व्यक्ति का निर्माण करती है। दोनों का कहीं कोई विरोध नहीं, अपितु दोनों एक-दूसरे को पूर्ण करने वाली धारणाएँ हैं। मैकाइवर का कथन है, समाजीकरण तथा वैयक्तीकरण एक ही प्रक्रिया के दो पक्ष हैं।” जिस भाँति व्यक्ति’ और ‘समाज’ अपनी प्रगति के लिए एक-दूसरे का सहारा चाहते हैं और एक-दूसरे की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, ठीक वैसे ही शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्य भी एक-दूसरे के पूरक हैं। |
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