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Answer» डाल्टन:पद्धति के गुण या विशेषताएँ (Merits or Features of Dalton Method) डाल्टन पद्धति में कुछ विशिष्ट गुण पाए जाते हैं, जिनका विवेचन निम्नलिखित है 1. योग्यतानुसार प्रगति का अवसर- इस पद्धति का प्रमुख गुण यह है कि इसमें प्रत्येक बालक को अपनी योग्यता, रुचि, शक्ति तथा गति के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने की स्वतन्त्रता होती है। किसी भी विद्यार्थी को दूसरे विद्यार्थियों की तीव्र गति होने के कारण न तो शीघ्रता से आगे बढ़ना पड़ता है और न ही मन्दबुद्धि सहपाठियों के कारण ठहरना पड़ता है। 2. कार्य की निरन्तरता- इस पद्धति के अनुसार ज्ञानार्जन का कार्य निरन्तर होता रहता है। उसका क्रम भंग नहीं होता। यदि विद्यार्थी किसी कारण से विद्यालय में उपस्थित नहीं रह पाता, तो वह अपनी कमी को व अपने पिछड़े कार्य को स्वयं प्रयत्न करके पूरा करता है। इसमें किसी विद्यार्थी का कार्य अन्य विद्यार्थियों पर निर्भर नहीं होता। 3. समय का सदुपयोग- चूंकि प्रत्येक बालक अपना कार्य समय से करता है, इसलिए इस पद्धति में समय का दुरुपयोग नहीं होता। इस पद्धति में विद्यार्थियों के अनुत्तीर्ण होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। 4. सभी विषयों का यथोचित अध्ययन- इस पद्धति में विद्यार्थियों को विषयों का चयन करने की पूर्ण । स्वतन्त्रता होती है। वह किसी विषय को जितना चाहे पढ़ सकता है। इससे बालक किसी भी विषय को गहन अध्ययन कर सकता है। 5. अपने स्रोतों से ज्ञान संचय करने का अवसर- इस पद्धति में बालकों को स्वयं शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता है। विद्यार्थी अपने पाठ स्वयं तैयार करते हैं और अन्य कार्य भी स्वतन्त्रतापूर्वक अकेले रहकर करते हैं। इसके लिए वे प्रयोगशालाओं में विभिन्न पुस्तकें और साधनों का अध्ययन करते हैं। इससे बालकों में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन आदि गुणों का विकास होता है। इसके द्वारा बालक श्रम का महत्त्व समझने लगते हैं। 6. उत्तरदायित्व की शिक्षा- इस पद्धति में बालक पर ही अपने पाठ को पूरा करने का उत्तरदायित्व रहता है। वे अपने ठेके को पूरा करने के लिए विभिन्न विषयों एवं उपभागों को पढ़ते हैं और अपनी योग्यतानुसार आगे बढ़ते हैं। इसमें बालक को यह ज्ञात रहता है कि उसे क्या कार्य करना है। अपने उत्तरदायित्व को निभाने की उसे चिन्ता रहती है। इससे उसे उत्तरदायित्व के मूल्य का ज्ञान रहता है। 7. शिक्षक एवं विद्यार्थी का परस्पर सम्बन्ध- इस पद्धति में। शिक्षक और विद्यार्थियों को पारस्परिक सम्बन्ध बड़ा मधुर रहता है। में शिक्षक विद्यार्थियों के मित्र एवं पथ-प्रदर्शक के रूप में योग्यतानुसार प्रगति का अवसर उन्हें आवश्यक सहायता देते हैं। विद्यार्थी भी बिना किसी डर या। संकोच के शिक्षकों की आवश्यक सहायता लेते रहते हैं। 8. गृह-कार्य का अनिवार्य न होना इस पद्धति में गृह- कार्य को अनिवार्य नहीं बताया गया है। विद्यार्थी द्वारा सम्पूर्ण कार्य विद्यालय अध्ययन की प्रयोगशालाओं में पूरा करने का प्रयास किया जाता है। घर पर अपने स्रोतों से ज्ञान संचय करने अध्ययन करना उनकी इच्छा पर निर्भर करता है। 9. स्वतन्त्र वातावरण- इस पद्धति में बालकों को पूर्णरूप से स्वतन्त्र वातावरण में पढ़ने का अवसर प्राप्त होता है। उन पर शिक्षक एवं विद्यार्थी का परस्पर टाइम-टेबिल व कक्षा का कोई बन्धन नहीं होता। बालक जिस कक्षा में सम्बन्ध चाहे प्रवेश कर सकता है। शिक्षक विद्यार्थियों पर विश्वास करके उन्हें गृह-कार्य का अनिवार्य न होना । बिना डराए-धमकाए पढ़ाने का प्रयास करते हैं। 10. अन्वेषण की प्रेरणा- इस पद्धति में बालक स्वयं अध्ययन करते हैं और स्वयं ही अपनी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं। इससे बालकों की अन्वेषण शक्ति का विकास होता है। वह शिक्षण में समन्वय अध्ययन के दौरान नई-नई बातों की खोज करने लगती है। 11. कक्षा शिक्षण एवं वैयक्तिकं शिक्षण में समन्वय- इस अवसर पद्धति में कक्षा शिक्षण और वैयक्तिक शिक्षण में समन्वय किया जा सकता है। बालक वैयक्तिक रूप से कार्य करके अपने ठेके को पूरा कक्षा शिक्षण और परीक्षा प्रणाली करते हैं, परन्तु ठेके पर विचार-विमर्श तथा उसके पूर्ण होने पर के दोषों से मुक्त उसका मूल्यांकन सामूहिक रूप से करते हैं। अतः उनका व्यक्तिगत तथा सामाजिक दोनों प्रकार का विकास होता है। 12. पारस्परिक सहायता देने का अवसरे- इस पद्धति में सम्मेलनों तथा विचार-विमर्श सभाओं को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है। इससे बालक एक-साथ बैठकर एक-दूसरे की समस्याओं का समाधान करते हैं और एक-दूसरे को उचित सुझाव देते हैं। इस प्रकार इस पद्धति में बालकों को पारस्परिक सहायता देने का अवसर प्राप्त हो जाता है। 13. ग्राफ रिकॉर्डों का महत्त्व- इस पद्धति में ग्राफ रिकॉर्ड रखने की व्यवस्था है, जिससे विद्यार्थी की प्रगति को मापा जाता है। इन रिकॉर्डों में बालकों के कार्यों एवं समय के सदुपयोग आदि का लेखा-जोखा रहता है। इन रिकॉर्डों के द्वारा विद्यार्थियों को प्रेरणा भी मिलती है। 14. कक्षा शिक्षण और परीक्षा प्रणाली के दोषों से मुक्त- यह पद्धति कक्षा शिक्षण के दोषों से मुक्त है, क्योंकि इसमें बालक की वैयक्तिक भिन्नता पर काफी ध्यान दिया जाता है। इस पद्धति में बालक के सिर पर परीक्षा का भूत भी सवार नहीं होता, क्योंकि इसमें परीक्षा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। वर्षभर का ठेका पूरा करने के बाद बालक को नई कक्षा में प्रवेश दिया जाता है। 15. अनुशासन की समस्या का समाधान कार्य करने के लिए पूर्णरूप से स्वतन्त्र होने और रुचिपूर्ण कार्य करने के कारण बालकों के मन की भावनाओं का दमन नहीं होता और वे अनुशासनहीनता उत्पन्न करने के लिए तनिक भी प्रेरित नहीं होते। इस पद्धति में बालक पर विश्वास किया जाता है और विश्वास की भावना अनुशासन स्थापना में बहुत सहायक होती है।
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