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शिक्षा की डाल्टन पद्धति की शिक्षण-विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

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डाल्टन पद्धति की शिक्षण विधि
(Teaching Technique of Dalton Method)

डाल्टन पद्धति की शिक्षण विधि को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है
1. पाठ का ठेका- जिस प्रकार एक ठेकेदार किसी काम को निश्चित अवधि में पूरा करता है, उसी प्रकार इस पद्धति में बालक भी निर्दिष्ट कार्य को करने का ठेका लेता है। वर्ष के प्रारम्भ में ही शिक्षक सम्पूर्ण सत्र के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार कर लेता है, जिससे विद्यार्थी इस डाल्टन पद्धति की शिक्षण विधि | बात से परिचित हो जाता है कि वर्ष भर में उसे कितना काम करना है। उनका सम्पूर्ण सत्र के लिए निर्धारित पाठों को बारह भागों में विभाजित कर , निर्दिष्ट पत्र दिया जाता है और उस काम को निश्चित अवधि में पूरा करने का कार्य इकाई उत्तरदायित्व बालक का होता है। इस प्रकार बालक किसी भी काम को . प्रयोगशालाएँ ठेके के रूप में स्वीकार करता है। बालक इस ठेके को पूरा करने में स्वतन्त्र होता है। वह अपनी सुविधा के अनुसार समय के अन्दर काम को पूरा करता है।
2. निर्दिष्ट पाठ- कार्य की सुविधा के लिए शिक्षक मासिक कार्य को साप्ताहिक कार्य में बाँट देता है। शिक्षक यह निश्चित कर देता है कि किस सप्ताह में बालक को मासिक कार्य का कितना काम करना है। इस प्रकार का विभाजन बालक की योग्यता को ध्यान में रखकर किया जाता है। शिक्षक यह विभाजन बड़ी योग्यता से करता है, जिससे कार्य न तो बिल्कुल आसान होता है। और न ही काफी कठिन। इस प्रकार शिक्षक बालक के महीनेभर के कार्य को चार भागों में विभाजित कर देता है और बालक पर निर्दिष्ट कार्य को एक सप्ताह में पूरा करने का उत्तरदायित्व रहता है। इस प्रकार एक सप्ताह के कार्य को निर्दिष्ट पाठ कहा जाता है और निर्दिष्ट पाठों के सम्मिलित रूप को वह ठेका कहता है।
3. कार्य इकाई- कार्य की दृष्टि से प्रत्येक पाठ के पाँच भाग किए जाते हैं और प्रत्येक भाग को इकाई कहा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक निर्दिष्ट पाठ में पाँच और महीने के ठेके में बीस इकाइयाँ होती हैं। इस प्रकार एक दिन के कार्य को इकाई कहते हैं, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक बालक प्रतिदिन प्रत्येक विषय की इकाई को पूरा कर ले। उसे अपनी गति के अनुसार कार्य करने की पूरी स्वतन्त्रता होती है। यदि कोई बालक अपने सभी विषयों के कार्य को एक महीने से पहले कर लेता है तो उसे अगले माह का ठेका दे दिया जाता है। शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक बालक अपने ठेके के अनुसार अपने एक महीने के कार्य को उसी महीने में यथासम्भव पूरा कर दे।
4. प्रयोगशालाएँ- डाल्टन पद्धति में कक्षाओं सम्बन्धी प्रयोगशाला में उस विषय से सम्बन्धित पुस्तकें व चित्र इत्यादि होते हैं। इसके अलावा प्रत्येक प्रयोगशाला में प्रत्येक कक्षा के बालकों के लिए स्थान निश्चित होते हैं। इससे कक्षा-प्रबन्ध में सुविधा रहती है। इस प्रकार बालक निर्दिष्ट कार्य की इकाई के अनुसार विभिन्न प्रयोगशालाओं में जाकर अध्ययन कार्य करता है। जिस बालक को जिस विषय से सम्बन्धित कठिनाई दूर करनी होती है, वह उसी प्रयोगशाला में चला जाता है।
5. सम्मेलन तथा विमर्श सभा- सम्मेलन तथा विमर्श सभा डाल्टन पद्धति के अंग हैं। ठेके के अनुसार कार्य में जो कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं उन्हें दूर करने के लिए कक्षा की विमर्श सभाएँ होती हैं, जो प्रात:काल होती हैं। उसमें शिक्षक बालकों को आवश्यक सूचनाएँ देता है। दूसरी सभा शाम को होती है, जिसमें विद्यार्थी – अपने अनुभवों का वर्णन सुनाता है। इस प्रकार प्रात:काल शिक्षक निर्देश देता है और विद्यार्थी अपने अनुभव सुनाता है। सम्मेलन और विमर्श सभा विद्यार्थियों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होते हैं।
6. प्रगतिसूचक रेखाचित्र- विद्यार्थी अपना कार्य ठीक प्रकार से कर रहे हैं या नहीं, यह जानने के लिए प्रगतिसूचक रेखाचित्रों का प्रयोग किया जाता है। ये रेखाचित्रयाग्राफ तीन प्रकार के होते हैं
⦁    प्रत्येक बालक अपने पास एक रेखाचित्र रखता है, जिसमें वह प्रत्येक विषय में जितना कार्य करता है, उसे अंकित कर देता है। इससे बालक को यह पता चलता है कि उसने कितनी इकाइयाँ पूरी कर ली हैं।

⦁    दूसरा रेखाचित्र शिक्षक के पास रहता है, जिसमें विषय विशेषज्ञ बालक की अपने विषय में की गई प्रगति को अंकित करता है। इससे शिक्षक और विद्यार्थी दोनों को पता रहता है कि उनके कार्य की क्या स्थिति

⦁    तीसरा रेखाचित्र सम्पूर्ण कक्षा का होता है। इसमें कक्षा के प्रत्येक विद्यार्थी सम्पूर्ण विषयों में कितना कार्य करते हैं, उसे अंकित कर दिया जाता है। इस आधार पर यह ज्ञात किया जा सकता है कि किस विद्यार्थी का कार्य कैसा है।

यह ग्राफ मार्गदर्शन के कार्य में शिक्षक की बड़ी सहायता करता है। इसके द्वारा विद्यार्थियों के कार्य की तुलना की जा सकती है। जिस विषय में बालक कमजोर होता है, उस विषय का शिक्षक बालक पर विशेष ध्यान देता है और उसे आगे बढ़ाने की चेष्टा करता है।
7. सामाजिक क्रियाएँ- मूल रूप से डाल्टन पद्धति में सामाजिक क्रियाओं को यथोचित स्थान दिया गया, लेकिन बाद में इनको कुछ कारणों से हटा देना पड़ा। फिर भी कुछ समर्थकों ने तीसरे प्रहर कुछ खेल, जिमनास्टिक व सामाजिक योजनाओं को स्थान दिया है।



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