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सहज या प्रतिक्षेप क्रियाओं से आप क्या समझते हैं? सहज क्रियाओं की विशेषताओं तथा महत्त्व या उपयोगिता का भी उल्लेख कीजिए। |
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Answer» सहज या प्रतिक्षेप क्रियाओं का अर्थ एवं परिभाषा अर्थ–सहज यो प्रतिक्षेप क्रियाएँ (Reflex Actions) अनर्जित तथा अनसीखी क्रियाएँ हैं। जो स्वत: एवं शीघ्रतापूर्वक घटित होती हैं। ये ऐसी जन्मजात क्रियाएँ हैं जिनमें व्यक्ति की इच्छा के लिए कोई स्थान नहीं होता और न ही उनके घटित होने की अधिक चेतना ही होती है। किसी उद्दीपक से उत्तेजना मिलते ही उसके परिणामस्वरूप तत्काल प्रतिक्रिया हो जाती है; जैसे—आँखों की पलकों का झपकना, प्रकाश पड़ते ही आँख की पुतली का सिकुड़ना, छींक आना, लार बहना, खाँसना तथा अश्रुपात आदि। इस प्रतिक्रिया में मस्तिष्क की कोई भूमिका नहीं होती। सहज या प्रतिक्षेप क्रियाएँ बाह्य एवं आन्तरिक दोनों प्रकार की उत्तेजनाओं से होती हैं। यहाँ उद्दीपक अनजाने में मिलता है तथा उद्दीपक मिलते ही अविलम्ब प्रतिक्रिया सम्पन्न हो जाती है। पैर में काँटा चुभते ही तुरन्त पैर खिंच जाता है. और आँख के पास कोई वस्तु आने पर आँख झपक जाती है। इस प्रकार की अनुक्रियाओं की गति इतनी तेज होती है कि इनमें न के बराबर समय लगता है। यदि लटकी हुई टॉग पर घुटने के नीचे काँटा चुभा दिया जाए तो टाँग खिंचने में केवल 0.3 सेकण्ड को समय काफी है। किन्तु कुछ अनुक्रियाओं में अपेक्षाकृत अधिक समय भी लगता है; जैसे—प्रकाश पड़ने पर आँख की पुतली का सिकुड़ना, स्वादिष्ट व्यंजन देखकर मुँह में लार आना तथा गर्म वस्तु छूने पर हाथ खींच लेना आदि। सहज या प्रतिक्षेप क्रियाएँ बालक के जन्म से पूर्व गर्भावस्था के पाँचवे-छठे मास में ही प्रारम्भ हो जाती हैं। परिभाषा- सहज अथवा प्रतिक्षेप क्रियाओं को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है वुडवर्थ के अनुसार, “सहज (प्रतिक्षेप) क्रिया एक अनैच्छिक और बिना सीखी हुई क्रिया है जो किसी ज्ञानवाही उद्दीपक की मांसपेशीय अथवा ग्रन्थीय प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।” आइजैक के अनुसार, “प्रतिवर्ती क्रिया से अभिप्राय प्राणी की अनैच्छिक एवं स्वचालित अनुक्रियाओं से है जो वह वातावरण के परिवर्तनों के फलस्वरूप उत्पन्न हुए उद्दीपकों के प्रति करता है। ये अनुक्रियाएँ प्राय: गत्यात्मक अंगों से सम्बंधित होती हैं तथा इनके फलस्वरूप मांसपेशी, पैर एवं हाथों में सहज गति का आभास होता है।” सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की विशेषताएँ सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं ⦁ सहज क्रियाएँ जन्मजात हैं तथा गर्भावस्था से ही इनकी शुरुआत मानी जाती है। जन्म के तुरन्त बाद से ही बालक इन्हें प्रकट करना शुरू कर देता है। ⦁ इन्हें अचेतन मन से तुरन्त सम्पन्न होने वाली क्रियाएँ कहा जाता है जिनमें चेतन मानसिक क्रियाओं को सम्मिलित नहीं किया जाता। ⦁ इनमें अधिक समय नहीं लगता और अल्पकाल में ही पूर्ण होकर ये समाप्त भी हो जाती हैं। ⦁ ये स्थानीय हैं जिन्हें करने में शरीर का एक भाग ही क्रियाशील रहता है। ⦁ इन क्रियाओं की प्रबलता उद्दीपक की प्रबलता पर निर्भर होती है। ⦁ इनसे शरीर को कोई क्षति नहीं होती, क्योंकि इनके करने या मानने का उद्देश्य व्यक्ति की रक्षा है। जीवन में सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की उपयोगिता या महत्त्व सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ न केवल अनियन्त्रित, अनैच्छिक, अनर्जित तथा प्रकृतिजन्य हैं; अपितु जैविक दृष्टि से भी उपयोगी हैं। इन्हें सीखना नहीं पड़ता; इनकी क्षमता तो मनुष्य में जन्म से ही होती है। मानव-जीवन में इनका उपयोग निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है। (1) आकस्मिक घटनाओं से रक्षा- सहज (प्रतिक्षेपी) क्रियाएँ अकस्मात् घटने वाली घटनाओं से मनुष्य की रक्षा करती हैं। ये शरीर को बाह्य खतरों तथा आक्रमणों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती हैं। आँख के निकट जब कोई वस्तु आती है, पलकें तत्काल ही झपक जाती हैं। (2) स्वेच्छा से कार्य सम्पन्न– सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ अनैच्छिक होती हैं। इनके माध्यम से बहुत-से कार्य स्वतः ही सम्पन्न हो जाते हैं जिससे आवश्यकतानुसार शरीर को सहायता प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए भोजन जब आमाशय में पहुँचता है, स्वत: ही स्राव निकलते हैं जो भोजन के पाचन में सहायता देते हैं। (3) गतिशीलता- ये क्रियाएँ अचानक ही प्रकट होती हैं तथा कार्य की पूर्णता के साथ ही समाप्त भी हो जाती हैं। ऐच्छिक क्रियाओं की अपेक्षा इनमें गतिशीलता बहुत अधिक पाई जाती है। (4) वातावरण से अनुकूलन- सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ मनुष्य का उसके वातावरण से अनुकूलन करने में सहायक सिद्ध होती हैं। प्रायः देखा जाता है कि वातावरण में ताप वृद्धि से पसीने की ग्रन्थियाँ पसीना निकालकर शरीर को शीतलता प्रदान करती हैं। परिणामस्वरूप शरीर का तापक्रम कम हो जाता है। (5) समय एवं आवश्यकतानुसार सहायक- ये क्रियाएँ मनुष्य की उसके जीवनकाल में उचित समय पर तथा आवश्यकतानुसार सहायता करती हैं। मानव-जीवन के विलास-क्रम में विभिन्न सोपानों पर इन क्रियाओं की परिपक्वता स्वाभाविक दृष्टि से सहायता देती है। खाँसने की सहज क्रिया जन्म के कुछ समय उपरान्त लेकिन काम सम्बन्धी सहज क्रिया किशोरावस्था में प्रकट होती है। |
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