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सीखने के पठार से आप क्या समझते हैं।

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जब बालक किसी क्रिया को सीखता है तो उसके सीखने की गति सदा एक-सी नहीं रहती, उसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। सीखते समय कुछ काल तक तो ऐसा लगता है कि उस क्रिया को सीखने में पर्याप्त प्रगति हो रही है, परन्तु कुछ काल के पश्चात् ऐसा ज्ञान होने लगता है कि मानो सीखने की प्रगति में बाधा आ गयी है। सीखने में इस प्रकार की अवस्था को ही पठार कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, सीखने की प्रक्रिया के बीच में प्रगति का रुक जाना पठार कहलाता है। इस प्रकार का अवरोध प्रायः संगीत, चित्रकला, टंकण आदि सीखने में आता है। रॉस (Ross) के अनुसार, “सीखने की प्रक्रिया की एक प्रमुख विशेषता पठार है। पठार उस अवधि की ओर संकेत करते हैं, जब सीखने की प्रक्रिया में कोई प्रगति नहीं होती है।”



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