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Answer» सीखने को प्रभावित करने वाले कारक सीखने की प्रक्रिया में अनेक बातें सहायक और बाधक होती हैं। यहाँ हम उन कारकों का अध्ययन करेंगे, जिनसे सीखने की क्रिया प्रभावित होती है। 1. वातावरण : वातावरण प्रमुख कारक है, जो सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि कक्षा का वातावरण शोरगुलयुक्त है, तो छात्र अपना ध्यान एकाग्र नहीं कर सकेंगे। परिणामस्वरूप वे ठीक प्रकार से सीख भी नहीं सकेंगे। उसके अतिरिक्त यदि छात्रों के बैठने की व्यवस्था उचित प्रकार से नहीं है, प्रकाश और वायु के आवागमन की भी उचित व्यवस्था नहीं है तो भी छात्र ठीक प्रकार से नहीं सीख सकेंगे। मौसम का प्रभाव भी सीखने पर पड़ता है। अत्यधिक ठण्डक और अत्यधिक गर्मी दोनों ही सीखने में बाधा पहुँचाती हैं। 2. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य : यदि बालकों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक होगा तो वह किसी भी बात को शीघ्रता से सीख जाएगा। शारीरिक और मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक प्रायः पढ़ने-लिखने में कमजोर रहते हैं और वे बहुत देर से सीख पाते हैं। 3.सीखने का समय : बालक अधिक समय तक किसी विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकती, क्योंकि अधिक समय तक ध्यान केन्द्रित करने में उनमें थकावट आ जाती है और उनका ध्यान इधर-उधर भटकने लगता है। दूसरी ओर प्रात:काल छात्र अधिक स्फूर्ति का अनुभव करते हैं। अत: इस समय उन्हें सीखने में सुगमता होती है। दोपहर अथवा शाम को वह इतना अधिक नहीं सीख पाते। इसी प्रकार विद्यालय के प्रथम घण्टे में जो सीखने की गति होती है, वह अन्त के घण्टों में बहुत कम हो जाती है। 4. विषय-सामग्री : कठिन, नीरस तथा अर्थहीन विषय-सामग्री की अपेक्षा सरल, रोचक तथा अर्थपूर्ण विषय-सामग्री अधिक सुगमता से सीख ली जाती है। 5. सीखने की अवस्था : प्रौढ़ व्यक्तियों की अपेक्षा छोटे पाक से बालक किसी बात को शीघ्र समझ जाते हैं। भाषा और कला के विषय में यह बात मुख्य रूप से लागू होती है, परन्तु कुछ बातें बालकों की । अपेक्षा प्रौढ़ जल्दी समझते हैं। 6. सीखने की इच्छा : सीखना बहुत कुछ व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। जिस बात को सीखने की बालकों की प्रबल इच्छा होती है, उसे वे प्रत्येक परिस्थिति में सीख लेते हैं। उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें कुछ भी नहीं सिखाया जा सकता है। अतः किसी तथ्य को सीखने के लिए छात्रों की इच्छा को उसके अनुकूल बनाना परम आवश्यक है। 7. सीखने की विधियाँ : सीखने की विधि जितनी ही अधिक सरल, आकर्षक तथा रुचिपूर्ण होगी, उतनी ही सरलता तथा शीघ्रता से बालक सीखेगा। 8. पूर्व अनुभव : बालक जो कुछ भी सीखता है, वह प्रायः अपने पूर्व अनुभव के आधार पर ही सीखता है। यदि सीखने का सम्बन्ध बालक के पूर्व अनुभव से कर दिया जाए तो वह नवीन बात शीघ्रता तथा सरलता से समझ जाएगा। 9. प्रेरणा : सीखने की प्रक्रिया में प्रेरणा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि बालकों को प्रशंसा तथा प्रतियोगिता के आधार पर सिखाया जाए तो वे सुगमता से सीख जाते हैं। सीखने के लिए बालक को प्रेस्ति करना अति आवश्यक है। 10. संवेगात्मक स्थिति : यदि बालक अत्यधिक क्रोध या भय से ग्रस्त है तो वह ऐसी दशा में कुछ नहीं सीख सकता। संवेगात्मक अस्थिरता सीखने की प्रक्रिया में बाधा डालती है। अत: बालक को संवेगात्मक असन्तुलन या अस्थिरता की दशा में सीखना पूर्णतया असम्भव है। 11. सफलता का ज्ञान : जब बालक को इस बात का ज्ञान हो जाता है कि उसे अपने कार्यों में सफलता मिल रही है तो उसका उत्साह बढ़ जाता है और उसे कार्य को शीघ्र समझे जाता है।
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