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सीता जी अपने भाग्य के बारे में क्या कहती हैं? 

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सीता जी वनवास में जीवन यापन करते हुए कहती हैं कि कौन कहता है मेरा भाग्य रूठ गया है। बल्कि मेरा तो भाग्य यहाँ आकर खुल गया है। अब मैं असली जीवन का आनंद ले रही हूँ। यहाँ तो जानकी वधू बनकर आयी है। यहाँ धन और राजवैभव का कोई मूल्य नहीं है।



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