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सिलाई कितने प्रकार की होती है? हाथ की सिलाई का प्रयोग कहाँ-कहाँ पर किया जाता है?यावस्त्रों की सिलाई कितने प्रकार से की जाती है? हाथ की सिलाई के किन्हीं चार टॉकों के नाम बताइए।यावस्त्रों की सिलाई में किन-किन टॉकों का प्रयोग किया जाता है किन्हीं तीन टाँको के बारे में लिखिए।याटाँके कितने प्रकार के होते हैं? इनका प्रयोग कब और कहाँ किया जाता है?यातुरपन या तुरपायी किसे कहते है?

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सिलाई के प्रकार
सिलाई दो प्रकार की होती है-मशीन की सिलाई तथा हाथ की सिलाई। हाथ की सिलाई कई प्रकार की होती है और इसका मशीन की सिलाई से अधिक महत्त्व होता है। हाथ की सिलाई को आदिकाल से प्रचलन है। प्राचीनकाल में जब मशीन उपलब्ध नहीं थी, तब हाथ से ही सिलाई का कार्य किया जाता था, परन्तु आज मशीन से वस्त्र सिलने के पश्चात् भी हाथ की सिलाई का तथा वस्त्र में हाथ से कार्य करने का अपना एक अलग महत्त्व है। वस्त्रों की सिलाई में विभिन्न प्रकार के टॉकों का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग भिन्न-भिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है।

हाथ की सिलाई के विभिन्न टाँके
हाथ की सिलाई के विभिन्न टॉकों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है

(1) कच्चा टाँका:
कच्चे टाँके का प्रयोग कपड़े को अस्थायी रूप से जोड़ने के लिए किया जाता है। वास्तविक सिलाई कच्चे टाँके के बाद की जाती है। यह टाँका  1/2 से 1 सेमी लम्बा होता है। धागे में गाँठ देकर कपड़े को दायीं ओर से बायीं ओर सिला जाता है।

(2) सादा टाँका:
सादा या रनिंग टाँका हाथ की स्थायी सिलाई में अधिक प्रयोग किया जाता है। यह कच्चे टाँके की भाँति होता है, परन्तु उससे छोटा होता है।

(3) बखिया:
बखिया के टॉकों का प्रयोग कपड़ों की मजबूत और पक्की सिलाई करने के लिए। किया जाता है। मशीन से जो सिलाई होती है वह भी बखिया ही होती है। मशीन की बखिया दोनों तरफ एक-सी होती है तथा साफ और सुन्दर लगती है, लेकिन हाथ की बखिया सीधी और उल्टी होती है। तथा मशीन की बखिया से कहीं अधिक मजबूत होती है। कपड़ों के जोड़ पर मजबूत सिलाई करने के लिए बखिया के टॉकों की आवश्यकता होती है।

(4) तुरपाई या हैमिंग टाँका:
कपड़े के धागे निकलने से रोकने के लिए किनारे को बन्द करने के लिए इस टाँके का प्रयोग किया जाता है। इसमें सूई का समान रूप से छोटा टाँका लेकर कपड़े से निकालकर फिर दोहरे मोड़े हुए कपड़े में से निकालते हैं। तुरपन हाथ से ही की जाती है। इससे टाँके दूर से स्पष्ट नहीं दिखाई देते।

(5) सम्मिलित टाँके:
ये टाँके बहुत मजबूत होते हैं। किसी भी सिलाई को मजबूत बनाने के लिए इन टॉकों का प्रयोग किया जाता है। इसमें तीन सादे टाँकों के साथ एक बखिया का टाँका भी प्रयुक्त किया जाता है।

(6) काज के टॉके:
काज बनाने से ही सिलाई की शिक्षा आरम्भ हो जाती है। काज अधिकतर हाथ से बनाए जाते हैं। काज का टाँका सरल है, फिर भी सफाई से काज बनाना एक कला है।।

(7) पसज के टाँके:
कपड़े के किनारों को बराबर रखने के लिए इस टॉके का प्रयोग किया जाता है। जहाँ कहीं भी कपड़े के किनारे निकलने का भय रहता है या गोट लगानी होती है, वहाँ इस टाँके का प्रयोग प्रायः किया जाता है। इसके टाँके अधिक कसकर नहीं लगाए जाते, क्योंकि कपड़े में तनाव आने का डर रहता है। दो कपड़ों को जोड़ने के लिए इस टाँके का ही प्रयोग किया जाता है।



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