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सल्तनत काल में भारत पर मंगोल आक्रमणों तथा उनके परिणामों का वर्णन कीजिए। अथवा अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति का परीक्षण कीजिए। अथवा बलबन तथा अलाउद्दीन खिलजी की मंगल नीतियों की तुलना कीजिए।

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मंगोलों का परिचय मंगोल का शाब्दिक अर्थ ‘दिलेर या ‘बहादुर’ होता है। मंगोल मध्य एशिया की एक असभ्य और बर्बर जाति थी। इस जाति के लोग अत्यन्त वीर, लड़ाकू, साहसी, अत्याचारी और निर्दयी होते थे। उन्हें व्यक्तियों के सिरों की मीनार बनाने, नगरों को जलाकर राख करने में बड़ा आनन्द आता था। उनकी आकृति भयानक, रंग पीला, चेहरा चपटा और चौड़ा, बाल काले, आँखे तिरछी, गाल की हड्डियाँ उभरी हुई, कान बड़े और खोपड़ी गोल होती थी। इनका प्रमुख नेता चंगेज खान था जिसके नेतृत्व में  मंगोलों ने कुछ ही वर्षों में बल्ख, बुखारा, समरकन्द चीन तथा मध्य एशिया के अनेक राज्यों को लूटकर और जलाकर पूरी तरह नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था।

दिल्ली सुल्तानों की मंगोल नीति

भारत एक दुर्ग के समान है। इसमें प्रवेश करने का एकमात्र स्थल मार्ग उत्तर-पश्चिम से ही है। इसी मार्ग से भारत पर सिकन्दर, महमूद गजनवी तथा मुहम्मद गोरी आदि ने आक्रमण किए थे। सल्तनत काल का आरम्भ होने के समय से ही इस सीमा से प्रविष्ट होने वाले मंगोलों के आक्रमण होने लगे थे। ख्वारिज्म के शाह ने पंजाब को अपने साम्राज्य का अंग बना लिया था। मंगोलों ने अफगानिस्तान, गजनी तथा पेशावर तक अपनी विजय-पताका फहराकर भारत पर सुनियोजित ढंग से आक्रमण करना आरम्भ कर दिया था। अतएव दिल्ली सल्तनत काल के आरम्भ में ही, मंगोलों के आक्रमण से सीमा को सुरक्षित रखने की समस्या सुल्तानों के समक्ष उत्पन्न हुई। इस समस्या को हल करने के लिए विभिन्न राजवंशों के सुल्तानों ने अपनी विभिन्न नीतियों का प्रयोग किया।

(क)
दास वंश
दास वंश के शासकों के समय हुए मंगोल आक्रमणों और इन आक्रमणों को रोकने हेतु दास वंश के शासकों द्वारा किए गए प्रयासों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है

⦁    इल्तुतमिश का शासनकाल : दास वंश का प्रथम शासक कुतुबद्दीन ऐबक था। अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाने के कारण वह शासन के कार्यों को भली-भाँति न देख सका। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश के शासनकाल (1221 ई०) में मंगोल नेता चंगेज खाने, ख्वारिज्म के शाह जलालुद्दीन मगबर्नी का पीछा करता हुआ भारत की ओर आया था। शाह जलालुद्दीन ने सिन्ध को पार करके दोआब प्रदेश को अपना शरण-स्थल बनाना चाहा था, किन्तु दूरदर्शी इल्तुतमिश ने शाह जलालुद्दीन को सहायता नहीं दी। अत: इल्तुतमिश ने कूटनीति से कार्य करते हुए चंगेज खान से शत्रुता मोल नहीं ली थी। अत: चंगेज खान ने सिन्धु नदी को पार नहीं किया और वह वापस लौट गया। इस प्रकार, मंगोलों की भयंकर आँधी टल गई।
⦁     रजिया के उत्तराधिकारियों का शासनकाल : चंगेज खान के चले जाने के बाद मंगोलों ने अफगानिस्तान को केन्द्र बनाकर भारत पर आक्रमण किया। मंगोलों ने सिन्धु नदी के पार स्थित प्रदेशों पर अनेक आक्रमण किए। इन प्रदेशों ने रजिया से समझौता करना चाहा, किन्तु दूरदर्शी सुल्ताना रजिया ने तटस्थ नीति का पालन किया और अपने साम्राज्य को मंगोलों के आक्रमणों से बचाए रखा।
⦁     रजिया के उत्तराधिकारियों का शासनकाल : रजिया का पतन 1240 ई० में अमीरों की दलबन्दी के कारण हुआ। उसके शासनकाल के उपरान्त 1241 ई० में मंगोल सरदार बहादुर ताहिर’ ने लाहौर को लूटा। 1245 ई० में मुल्तान पर हसन कार्लंग’ ने और सिन्ध पर कबीर खाँ के वंशजों ने अधिकार कर लिया। 1247 ई० में मंगोल नेता सली बहादुर ने मुल्तान को घेरकर लाहौर पर आक्रमण किया। लाहौर के अमीरों ने सली बहादुर के सामने आत्म-समर्पण कर दिया। इस प्रकार, मुल्तान व सिन्ध के प्रदेश दिल्ली सल्तनत से कुछ समय तक कट गए। 1250 ई० में इन पर पुन: दासवंशीय शासकों की विजय पताका फहराने लगी, फिर भी प्रान्तीय सूबेदारों के षड्यन्त्र मंगोलों के साहस में निरन्तर वृद्धि करते रहे।
⦁    मंगोल सरदार हलाकू का अभियान  :सुल्तान नासिरुद्दीन के शासनकाल में मंगोल नेता हलाकू ने दिल्ली से मित्रता बनाए रखी, किन्तु बलबन के सुल्तान होते ही मंगोलों ने भारत पर पुनः आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। बलबन ने हलाकू आक्रमणों को रोकने के लिए सीमान्त प्रदेशों पर छावनियों की व्यवस्था का कार्य अपने पुत्रों को सौंप दिया। उन्होंने इन प्रदेशों में । मंगोलों की गतिविधियों को रोकने के लिए विशाल दुर्गों का निर्माण कराया।
⦁    तैमूर खाँ का आक्रमण : 1285 ई० में मंगोल सरदार तैमूर खाँ ने आक्रमण किया। इस | आक्रमण में बलबन का पुत्र मुहम्मद मारा गया था।

(ख)
खिलजी व अन्य वंश
खिलजी वंश तथा तुगलक वंश के शासकों के समय में होने वाले मंगोल आक्रमणों का उल्लेख अग्रवत् । है

⦁    खिलजी का शासनकाल–अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में मंगोलों ने बार-बार आक्रमण किए। 1299 ई० में साल्दी व कुतलुग ख्वाजा, 1303 ई० में तार्गी औरी 1305 ई० में अलीबेग, 1306 ई० में कूबक और 1307 ई० में इकबाल मन्दा के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किए, किन्तु अलाउद्दीन की विशाल सेना के सामने इन मंगोल आक्रमणकारियों का सदैव नतमस्तक होना पड़ा।
⦁    निर्बल सुल्तानों का काल- अलाउद्दीन खिलजी के बाद दिल्ली सल्तनत का पतन आरम्भ हो गया। तुगलक शासकों के काल में भी मंगोलों के आक्रमण का ताँता बँधा रहा। इस काल में तरमाशीरीन के नेतृत्व में मंगोलों का आक्रमण महत्त्वपूर्ण रहा। कालान्तर में 1398 ई० में तैमूर लंग ने दिल्ली को तहस-नहस कर डाला और वहाँ भयंकर रक्तपात किया। कई महीनों तक दिल्ली उजाड़ श्मशान-सी दिखाई देती रही। अन्ततः मंगोलों के आक्रमण दिल्ली सल्तनत के विघटन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुए।

मंगोलों के आक्रमण का प्रभाव

मंगोलों के आक्रमण के निम्नलिखित प्रभाव हुए
⦁     मंगोलों के आक्रमणों को रोकने में व्यस्त रहने के कारण सुल्तान प्रशासकीय कार्यों के प्रति
जागरूक न रह सके।
⦁    इन्हीं आक्रमणों के कारण प्रान्तीय सूबेदार स्वतन्त्र रूप से विद्रोह करते रहे, क्योंकि सुल्तान इन
मंगोल आक्रमणों को दबाने में लगे रहते थे।
⦁    सुल्तानों को विवश होकर दमेन नीति का आश्रय लेना पड़ा था, जिसके कारण प्रजा सुल्तानों से अप्रसन्न रही।
कुछ सुल्तानों ने सीमा नीति की उपेक्षा भी की, जिससे मंगोलों के आक्रमण निरन्तर जारी रहे और विद्रोहों की भी अधिकता रही। इतना ही नहीं, एक सुल्तान की मृत्यु पर दूसरे सुल्तान का  सिंहासनारोहण तलवार के द्वारा ही सम्भव था। इन कारणों से मंगोलों को भारतीय आक्रमणों के समय कभी-कभी अपार सफलता मिलती थी, जो उन्हें पूर्वी आक्रमण के लिए प्रेरणा देती थी।



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