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संध्या सुन्दरी किस के कन्धे का सहारा लिए कहा से आ रही है |
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रचना भेजिए Home › Kavya › Irshaad › suryakant tripathi NIRALA famous hindi POEM SANDHYA sundari विज्ञापन मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" Ratnesh Mishra रत्नेश मिश्र मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" Irshaad दिवसावसान का समय- मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी, परी सी, धीरे, धीरे, धीरे तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास, मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर, किंतु ज़रा गंभीर, नहीं है उसमें हास-विलास। हँसता है तो केवल तारा एक- गुँथा हुआ उन घुँघराले काले-काले बालों से, हृदय राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक। अलसता की-सी लता, किंतु कोमलता की वह कली, सखी-नीरवता के कंधे पर डाले बाँह, छाँह सी अम्बर-पथ से चली। |
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