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| 1. | संकलित दोहों की सप्रसंग व्याख्याएँ।बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।सौंह करै भौंहनु हँसै, दैन कहै नटि जाइ॥ | 
| Answer» कठिन शब्दार्थ- बतरस = बातें करने का आनंद। लाल = श्रीकृष्ण। मुरली = वंशी। धरी लुकाइ = छिपाकर रख दी। सौंह = सौगंध, कसम। भौंहन = भौंहों से। दैन कहै = देने की कहने पर। नटि जाइ = मना कर देती है। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि बिहारी लाल के दोहों से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने कृष्ण और गोपियों के बीच चल रही सरस ठिठोली का मनोहरी चित्र अंकित किया है। व्याख्या-गोपियाँ अपने परम प्रिय कृष्ण से बातें करने का अवसर खोजती रहती हैं। इसी बतरस (बातों के आनंद) को पाने के। प्रयास में उन्होंने कृष्ण की वंशी को छिपा दिया है। कृष्ण वंशी के खो जाने पर बड़े व्याकुल हैं। वे गोपियों से वंशी के बारे में पूछते हैं तो गोपियाँ (झूठी) सौगंध खाकर कहती हैं कि उन्हें वंशी के बारे में कुछ पता नहीं। साथ ही वे भौंहों के संकेतों में मुसकराती भी जाती हैं कृष्ण को लगता है। कि वंशी इन्हीं के पास है। किन्तु जब वह वंशी लौटाने को कहते हैं तो गोपियाँ साफ मना कर देती हैं। विशेष- | |