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स्पष्ट कीजिए कि ‘कहाँ तो तय था’ शेर हमारी सामाजिक व्यवस्था के कटु सत्य को उजागर करती है।

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‘कहाँ तो तय था’ गज़ल में कवि ने हमारी वर्तमान सामाजिक व्यवस्था का दुखद चित्र प्रस्तुत किया है। कवि के अनुसार देश की जनता ने आजादी से पहले जो सपने देखे थे, वे आजादी मिलने के इतने वर्षों के बाद भी पूरे नहीं हुए है। देश के लाखों घर आज भी बिजली के प्रकाश से वंचित हैं। शहरों के सभी घरों को भी पर्याप्त बिजली नहीं मिल पाई है।

देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके पास अपना तन ढकने के लिए जरूरी कपड़े नहीं हैं। जो गाँव सुख-चैन के भंडार माने जाते थे, यहाँ शांति और सुरक्षा दुर्लभ हो गई है। गाँव के लोग गाँव छोड़कर शहरों में जाकर बसने के लिए विवश हो रहे हैं। कहने को देश में लोकतंत्र है, फिर भी जनता की आवाज अनसुनी कर दी जाती है। लोग भी शिकायतें करते-करते थक कर चुप बैठ जाते हैं।

अधिकारी पत्थरदिल हो गये हैं। जनसाधारण के दुःख-दर्द का उन पर कोई असर नहीं होता | कवियों तथा लेखकों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर या डरा-धमकाकर उनकी जबान बंद कर दी जाती है। समाज में सबको अपने सुख की चिंता है ! दूसरों के लिए त्याग और बलिदान का भाव स्वप्न बन गया है।



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