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सृजनात्मक चिन्तन की महत्त्वपूर्ण अवस्थाएँ बताइए।

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चिन्तन के एक विशिष्ट रूप को सृजनात्मक अथवा रचनात्मक चिन्तन के रूप में जाना जाता है। सृजनात्मक चिन्तन उन्नत प्रकार का चिन्तन है तथा इसके माध्यम से ही विभिन्न रचनात्मक कार्य किए जाते हैं। समस्त वैज्ञानिक आविष्कार सृजनात्मक चिन्तन के ही परिणाम होते हैं। सृजनात्मक चिन्तन की प्रक्रिया अपने आप में व्यवस्थित प्रक्रिया होती है तथा इसकी निश्चित अवस्थाएँ या चरण होते हैं।

जिनका सामान्य परिचय निम्नवर्णित है-

(1) तथ्य एकत्र करना या तैयारी- सृजनात्मक चिन्तन की प्रक्रिया के प्रथम चरण या अवस्था में चिन्तन की समस्या से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्र किया जाता है। इस अवस्था को तैयारी की अवस्था भी कहा जाता है। इस अवस्था में एकत्र किए गए तथ्य ही आगे चलकर समस्या समाधान में सहायक होते हैं।

(2) गर्भीकरण- चिन्तन की प्रक्रिया की इस अवस्था में आकर पहले एकत्र किए गए तथ्यों का अचेतन मस्तिष्क में मंथन किया जाता है। यह मंथन ही चिन्तन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहायक होता है तथा व्यक्ति को सम्भावित समाधान सूझता है।

(3) स्फुरणं- सृजनात्मक चिन्तन की प्रक्रिया की तीसरी अवस्था स्फुरण कहलाती है। इस अवस्था में चिन्तन के लिए ली गयी समस्या का कुछ समाधान प्राप्त होने लगता है।

(4) प्रमापन- यह अन्तिम अवस्था है। वैज्ञानिक क्षेत्र की सभी समस्याओं के प्राप्त किए गए हल की वैधता तथा विश्वसनीयता की जाँच करनी आवश्यक होती है। प्रमापन की अवस्था में इसी प्रकार की जाँच की जाती है। प्रमापन हो जाने पर सृजनात्मक चिन्तन की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।



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