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ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय।उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥

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प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘रहीम के दोहे’ से लिया गया है, जिसके रचयिता रहीम जी हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने मनुष्य जन्म की सार्थकता मनुष्य मात्र के कल्याण में समझा रहे हैं।

भाव स्पष्टीकरण : इसमें रहीम एक नीति की बात कहते हैं कि किसी के बड़े या विशाल होने का कोई महत्व नहीं होता, बल्कि छोटा होते हुए भी उसका उपयोग संसार को होना चाहिए। उदाहरण देकर कवि रहीम कहते हैं कि वह कीचड़ का थोड़ा-सा पानी भी धन्य है, जिसे कीड़े-मकोड़े पीकर तृप्त हैं, जीवित हैं। सागर में पानी तो बहुत-सा रहता है, पर वह क्या काम का? खारा होने के कारण सारा संसार प्यासा ही रहता है; फिर समुद्र किस बात को लेकर अपनी बड़ाई कर सकता है? अर्थात्, चीज कितनी ही छोटी क्यों न हो मगर जो दूसरों की मदद करता है, वही धन्य होता है। जो दूसरों की सहायता नहीं करता है उसका जीवन व्यर्थ है।



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