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ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:जीवन में न निराशा मुझको,कभी रुलाने को आई।‘जग झूठा है’ यह विरक्ति भी,नहीं सिखाने को आई॥

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प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘उल्लास’ नामक कविता से ली गई हैं जिसकी रचयिता कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान हैं।
संदर्भ : कवयित्री कहती हैं कि मुझे जिन्दगी में कभी मायूसी, निराशा नहीं हुई। दुनिया के किसी प्रकार के दुख ने मुझे नहीं रुलाया।
स्पष्टीकरण : प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्रि का जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त होता है। उनके अनुसार जीवन ‘आशा’ की भावना को दर्शाता है। निराशा या विरक्ति को उन्होंने अपने जीवन में स्थान नहीं दिया। जग के प्रति निर्मोह या जग का झूठा होने का एहसास उन्हें नहीं हुआ। जीवन के प्रति उसे वैराग्य नहीं बल्कि प्रेम है। उनकी नज़र में मनुष्य का आशापूर्ण मनोभाव ही उसके ‘सुख’ की पूँजी है। लौकिक जीवन में प्रत्येक जन या वस्तु के प्रति विश्वास रखकर सुख और शांति से जीना चाहिए।



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