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ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिएःमोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माला गरें पहिरौंगी।ओढ़ि पितम्बर लै लकुटी बन, गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥भावतो वोहि मेरो ‘रसखानि’, सो तेरे कहें सब स्वांग करौंगी।या मुरली मुरलीधर की, अधरान-धरी अधरा न धरौंगी॥

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प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘रसखान के सवैये’ नामक शीर्षक से लिया गया है जिसके रचयिता रसखान हैं।

संदर्भ : गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम है। वे अपने कृष्ण को पाने के लिए, कृष्ण को रिझाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।

स्पष्टीकरण : एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि कृष्ण मेरा प्रिय है और उसे प्राप्त करने के लिए तेरे कहने पर सारा स्वांग भर लूँगी। वह मोर का पंख अपने सिर पर रख लेगी, गुंज की माला गले में पहन लेगी, पीला वस्त्र बदन पर ओढ़कर हाथ में लकुटी लेकर गोधन को ले ग्वालों के साथ वन में फिरेगी। जैसी सखी की इच्छा वह सब करेगी परन्तु कृष्ण की मुरली को अपने होटों से छूकर अपवित्र नहीं कर सकती।



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