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सूरदास के पदों में वर्णित प्रेम भक्तिभावना का वर्णन कीजिए।

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हमारी पाठ्यपुस्तक में कवि सूरदास रचित ‘भ्रमरगीत प्रसंग’ से कुछ पद संकलित हैं। इन पदों में श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने से दुखी गोपियों की भावनाओं का बड़ा मार्मिक चित्रण हुआ है। यह प्रसंग प्रेम और भक्ति भावना से ओत-प्रोत है।

उद्धव श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर ब्रज में आए हैं। अपने वियोग में दुखी गोपियों के लिए योग साधना का सन्देश भिजवाया है। गोपियों को लगा था कि उनके प्रिय कृष्ण ने अवश्य ही उनके लिए कोई प्रेम भरा सन्देश भिजवाया होगा। किन्तु जब उन्होंने श्रीकृष्ण को भुलाकर योग और ज्ञान को अपनाने का सन्देश सुना तो उनके हृदय को बड़ा आघात पहुँचा। उन्होंने उद्धव को अपने मन की भावनाएँ और वेदना समझाने का यत्न किया।

वे कहती हैं-“हमारे हरि हारिल की लकरी।” उनके मन से श्रीकृष्ण का ध्यान एक पल को भी नहीं हटता। वे उद्धव से अनुरोध करती हैं कि योग और ज्ञान की शिक्षा उनको दें जिनका किसी से दृढ़ प्रेम-भाव नहीं है। हमारे मन, वचन और कर्म में तो श्रीकृष्ण दृढ़ता से समाए हुए हैं।

गोपियाँ उद्धव की प्रेमपरक भक्ति को नहीं समझ पाने पर, उन पर व्यंग्य करती हैं। उनका उपहास भी करती हैं। ऐसा वह उद्धव का अपमान करने के लिए नहीं करर्ती बल्कि यह उनके अविचल और निश्छल प्रेम को
पहुँची ठेस की प्रतिक्रिया हैं।

‘अँखियाँ हरि दरसन की भूखी’, बारक वह मुख फेरि दिखाओ दुहि पय पिवत पतूखी’ ‘बिन गोपाल बैरिन भई कुनैं’ गोपियों की इन सभी उक्तियों में प्रेममयी भक्ति भावना का प्रकाशन हुआ है। भ्रमरगीत में कविवर सूर की भक्ति भावना को भी दर्शन हो रहा है।



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