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❖ सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता 'बीती विभावरी जाग री' और अज्ञेय की 'बावरा अहेरी' की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही है। 'उषा' कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज़्यादा अच्छी लगी और क्यों? ❖ उपमान ❖ शब्दचयन ❖ परिवेश बीती विभावरी जाग री!अंबर पनघट में डुबो रही- तारा-घट ऊषा नागरी। खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहाकिसलय का अंचल डोल रहा,लो यह लतिका भी भर लाई- मधु मुकुल नवल रस गागरी अधरों में राग अमंद पिए,अलकों में मलयज बंद किए-तू अब तक सोई है आली आँखों में भरे विहाग री। -जयशंकर प्रसाद भोर का बावरा अहेरीपहले बिछाता है आलोक कीलाल-लाल कनियाँपर जब खींचता है जाल को बाँध लेता है सभी को साथःछोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखीडैनों वाले डील वाले डौल के बैडौलउड़ने जहाज़,कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिकर से लेतारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरीबेपनाह काया कोःगोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भीपार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रूप-रेखा कोऔर दूर कचरा चलानेवाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जोधुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।- सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन 'अज्ञेय'

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❖ सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता 'बीती विभावरी जाग री' और अज्ञेय की 'बावरा अहेरी' की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही है। 'उषा' कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज़्यादा अच्छी लगी और क्यों?


❖ उपमान ❖ शब्दचयन ❖ परिवेश

बीती विभावरी जाग री!

अंबर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी।

खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा,

लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी

अधरों में राग अमंद पिए,

अलकों में मलयज बंद किए-

तू अब तक सोई है आली

आँखों में भरे विहाग री।

-जयशंकर प्रसाद

भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बैडौल
उड़ने जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिकर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रूप-रेखा को
और दूर कचरा चलानेवाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।- सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन 'अज्ञेय'



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