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तौलिये महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ सहित व्याख्याएँ।मधु–मैं कहती हूँ आप उनके स्वभाव से परिचित नहीं, आपको बुरा लगा। स्वच्छता की भावना भी काव्य और कला ही की भाँति……।बसन्त–(आवेग में उसके पास आकर) क्यों काव्य और कला को अपनी इस घृणा में घसीटती हो। तुम्हारे ऐसे वातावरण में पले हुए सब लोगों की नफासत में नफरत की भावना काम करती है–शरीर से, गन्दगी से, जीवन से नफरत की।

Answer»

कठिन शब्दार्थ–काव्य = कविता, आवेश = उत्तेजना। नफरत = घृणा।

सन्दर्भ एवं प्रसंग–प्रस्तुत गद्यात्मक संवाद हमारी पुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘तौलिये’ शीर्षक एकांकी से लिए गए हैं। इनके रचयिता उपेन्द्रनाथ अश्क हैं।

सफाई के बारे में मधु और बसन्त के तर्क–वितर्क चल रहे हैं। मधु को एक ही तौलिये के प्रयोग से गन्दगी फैलने का भय सताता है। वह कहती है कि सफाई एक अच्छी आदत है।

व्याख्या–मधु के मामा को सफाई की सनक बसन्त को मनुष्य के लिए अपमानजनक लगती है। मधु बसन्त को बताती है कि सफाई उसके मामा का स्वभाव में है। बसन्त उनके स्वभाव के बारे में नहीं जानता। इसलिए बसन्त द्वारा प्रयुक्त अपने उस्तरे को रोगाणुमुक्त कराना उसको बुरा लगा। सफाई की भावना तो कला और कविता के समान श्रेष्ठ है। इस कथन पर उत्तेजित होकर बसन्त मधु के पास जाकर उसको रोकता है वह कहता है कि उसके मन में जो घृणा की भावना है उसमें काव्य और कला जैसी ऊँची चीजों को शामिल करना ठीक नहीं है। रईसी और उच्चता के वातावरण में वह पली है, वैसे ही वातावरण में पलने वाले लोगों के मन में अपने को ऊँचा समझने की भावना होती है। इसमें दूसरों को नीचा समझकर उनसे घृणा करने की भावना छिपी होती है। वे शरीर से, गन्दगी से, जीवन से सबसे घृणा करते हैं।

विशेष–
(i) बसन्त सफाई की सनक को रईसी वातावरण में जन्म लेने का परिणाम बताता है।
(ii) वह मानता है कि उसके पीछे अपनों को दूसरों से श्रेष्ठ मानकर उनसे घृणा करने की भावना छिपी रहती है।
(iii) भाषा सरल है तथा पात्रानुकूल हैं।
(iv) संवाद शैली है।



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