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Answer» सीखने के नियमों को सर्वप्रथम व्यवस्थित ढंग से थॉर्नडाइक ने प्रस्तुत किया था, इसीलिए इन्हें थॉर्नडाइक के सीखने के नियमों के रूप में जाना जाता है। थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के मुख्य नियम तीन हैं ⦁ सीखने का तत्परता का नियम् ⦁ सीखने का अभ्यास का नियम तथा ⦁ सीखने का प्रभाव का नियम। सीखने का तत्परता को नियम थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित तत्परता का नियम बताता है कि जब कोई भी व्यक्ति सीखने के लिए मानसिक रूप से तत्पर होता है (अर्थात् तैयार रहता है) तो सीखने की क्रिया सरलता और शीघ्रता से सम्पन्न होती है। व्यक्ति जिसे समय किसी कार्य को सीखने की धुन में रहता है तो वह सीखने में आनन्द का अनुभव करता है। बांलक में किसी नवीन ज्ञानं या क्रिया को सीखने की तत्परता तभी आती है जब उसमें रुचि होती है और उसके अन्दर सीखने के लिए प्रेरणा उत्पन्न कर दी जाए। अतः शिक्षक को पाठ शुरू करने से पूर्व बालक की रुचि और जिज्ञासा पर ध्यान देना चाहिए तथा उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। कुछ विद्यार्थियों की किसी विशेष विषय में रुचि नहीं होती जिसकी वजह से तत्परता के नियम की अवहेलना हो सकती है। तत्परता का नियम कुछ निष्कर्षों को महत्त्व देता हैं। प्रथम, इस नियम के अनुसार सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की दशा में विद्यार्थी को अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता और सीखने की प्रक्रिया सन्तोषजनक रहती है। द्वितीय, यदि व्यक्ति सीखने के लिए विवश नहीं है और पूर्णरूप से भी तत्पर है तो सीखने में अत्यधिक सन्तुष्टि प्राप्त होगी। तृतीय, सीखने के लिए बलपूर्वक विवश किये जाने पर अरुचि के कारण कार्य असन्तोषजनक होगा। इस भाँति कहा जा सकता है कि “जब कोई बन्धन किसी कार्य को करने के लिए नहीं होता है तो वह प्रक्रिया आनन्द देती है। और जब सीखने की इच्छा नहीं होती तो व्यक्ति सीखने को तैयार नहीं होता तथा उसे बाध्य किया जाता है, तब क्रोध उत्पन्न होता है।”
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