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तकल्लुफ और शिष्टाचार में क्या अन्तर है? शिष्टाचार दुःखदायी कब हो जाता है?

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तकल्लुफ का आशय है–अस्वाभाविक व्यवहार। जब हम स्वयं को सभ्य औ सुसंस्कृत दिखाने के लिए कुछ ऐसे काम करते हैं जिनके कारण हम दूसरों से भिन्न तथा असामान्य प्रतीत होते हैं तो उस व्यवहार को तकल्लुफ कहा जाता है। कहते हैं दो नवाब एक गाड़ी में चढ़ना चाहते थे। वे तकल्लुफ में पहले आप पहले आप कहते रह गए और गाड़ी चली गई। वे दोनों प्लेटफॉर्म पर खड़े एक दूसरे का मुँह देख रहे थे और उनको देखकर लोग उनकी हँसी उड़ा रहे थे।

शिष्टाचार शिष्ट आचरण को कहते हैं। जब हमारा व्यवहार शिष्टतापूर्ण होता है तो उसको शिष्टाचार कहते हैं। विनम्रता, स्नेह, प्रेम, आदर आदि गुण शिष्टाचार के अंग होते हैं। बड़ों के प्रति प्रेम और विनम्रता तथा छोटों के प्रति स्नेह और सदाचार में शिष्टचार के दर्शन होते हैं।

किसी के प्रति तकल्लुफ दिखाने का अर्थ है कि हम उसके प्रति हार्दिक सौहार्द नहीं कर रहे। केवल स्नेह का दिखावटी प्रदर्शन कर रहे हैं। हमको ऐसा नहीं करना चाहिए। यदि हम किसी व्यक्ति के साथ बनावटी व्यवहार करते हैं तो हम उसको शिष्टाचार कह भले ही दें, वह शिष्टाचार नहीं होता है। ऐसा शिष्टाचार दु:खदायी हो जाता है। इसका स्वरूप निषेधात्मक होता है तथा उसमें यह न करो, वह न करो, आदि नकारात्मक आदेशों का प्रधान्य होता है। उसको कोई पसन्द नहीं करता।



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