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तत्सम और तद्भव शब्द में अंतर स्पष्ट कीजिए।​

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प्रवाह अनंत है। समय के साथ-साथ भाषा में नए शब्द समाहित हो जाते हैं और पुराने शब्द या तो रूप बदल लेते हैं अथवा अप्रचलित हो जाते हैं। वैदिक संस्कृत से आज की हमारी भाषा इस यात्रा में आजतक अनेक मोड़ों को पार कर चुकी है। भाषा में परिवर्तन अवश्य होता है, परंतु यह परिवर्तन इतना धीरे-धीरे होता है, कि शब्द अपने प्राचीन रूप को पूर्णतया खो नहीं देता हैं। उस शब्द में कुछ हद तक बदलाव होता है, पर अर्थ वही रहता है जो अर्थ उस शब्द का वैदिक काल में था।तत्सम शब्द की परिभाषातत्सम शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों, तत् + सम् से मिलकर बना है। तत् का अर्थ है - उसके, तथा सम् का अर्थ है – समान। अर्थात - ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना किसी परिवर्तन के ले लिया जाता है, उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं। इनमें ध्वनि परिवर्तन नहीं होता है। हिन्दी, बांग्ला, कोंकणी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तेलुगू, कन्नड, मलयालम, सिंहल आदि में बहुत से शब्द संस्कृत से सीधे ले लिए गये हैं, क्योंकि इनमें से कई भाषाएँ संस्कृत से जन्मी हैं।जैसे –अग्नि, आम्र, अमूल्य, चंद्र, क्षेत्र, अज्ञान, अन्धकार आदि। तद्भव शब्द की परिभाषातत्सम शब्दों में समय और परिस्थितियों के कारण कुछ परिवर्तन होने से जो शब्द बने हैं उन्हें तद्भव कहते हैं। तद्भव का शाब्दिक अर्थ है – उससे बने (तत् + भव = उससे उत्पन्न), अर्थात जो उससे (संस्कृत से) उत्पन्न हुए हैं। यहाँ पर तत् शब्द भी संस्कृत भाषा की ओर इंगित करता है। अर्थात जो संस्कृत से ही बने हैं। इन शब्दों की यात्रा संस्कृत से आरंभ होकर पालि, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं के पड़ाव से होकर गुजरी है और आज तक चल रही है।जैसे -मुख से मुँहग्राम से गाँवदुग्ध से दूधभ्रातृ से भाई आदि। HOPE it helps For QUICK Help in 5 HOURS FOLLOW Me



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