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तुलसीदास ने पतंग-डोर का उदाहरण देकर दर्शनार्थियों को क्या समझाया?

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हाथ में डोर सधी होने पर पतंग आकाश में कहीं भी उड़ती रहती है, उसे कोई बाधा नहीं होती। उस प्रकार अपने इष्ट को साधकर भाव की डोर में बँधी हुई मन की पतंग को सारे आकाश में उड़ाओ, सब देवों के प्रति श्रद्धा अर्पित करो तो इष्ट भी सर्वव्यापी और सर्व सामर्थ्यवान के रूप में अपने आप को प्रकट करेगा। मन को प्रभु के चरणों में लगाए रहो। सभी देवी-देवताओं की आराधना करो पर अपने मन को अपने इष्ट के प्रति लगाए रहो। अपने इष्ट की ओर से मन भटकना नहीं चाहिए। पतंग सारे आकाश में उड़ती है। पर उसका सम्बन्ध चुटकी की डोर से जुड़ा रहता है।



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