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| 1. | उद्योग के मुख्य केन्द्रों का उल्लेख करते हुए भारत में लोहा तथा इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए।याभारत के लौह-इस्पात उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –(क) स्थानीयकरण के कारक, (ख) वितरण। याभारत में लोहा-इस्पात उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –(क) उद्योग का महत्त्व, (ख) स्थानीयकरण के कारण, (ग) उद्योग के प्रमुख क्षेत्र।याभारत में लौह तथा इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए तथा दो प्रमुख उत्पादन केन्द्रों का वर्णन कीजिए।याभारत में लौह-अयस्क के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए। a | 
| Answer» भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास लोहा-इस्पात उद्योग वर्तमान युग में एक आधारभूत उद्योग है जिसके उत्पाद अन्य सभी उद्योगों एवं वस्तुओं के निर्माण में आवश्यक होते हैं। इसी उद्योग से देश के औद्योगिक विकास की नींव पड़ती है। इसके पश्चात् 1918 ई० में एक और कारखाना पश्चिम बंगाल में भारतीय लोहा-इस्पात कम्पनी के नाम से आसनसोल के निकट हीरापुर में स्थापित किया गया। 1937 ई० में बर्नपुर में स्टील कॉरपोरेशन ऑफ बंगाल की स्थापना की गयी। वर्तमान में कुल्टी, हीरापुर एवं बर्नपुर के कारखाने भारतीय लोहा और इस्पात कम्पनी (IISCO) के अधिकार में हैं। 1932 ई० में दक्षिणी भारत के मैसूर नगर में मैसूर लोहा और इस्पात कारखाने की स्थापना की गयी। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तीव्र गति से किया गया। दूसरी पंचवर्षीय योजना में तीन नये कारखाने स्थापित करने के लिए ‘हिन्दुस्तान स्टील कम्पनी’ की स्थापना की गयी। इस कम्पनी के तत्त्वावधान में 10-10 लाख टन की क्षमता के तीन कारखाने भिलाई, राउरकेला एवं दुर्गापुर में स्थापित किये गये तथा TISCO एवं IISCO की उत्पादन क्षमता क्रमशः 20 लाख टन और 10 लाख टन इस्पात बनाने की निर्धारित की गयी। तीसरी पंचवर्षीय योजना में एक नया कारखाना बोकारो में खोलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। चौथी पंचवर्षीय योजना में सलेम, विजयनगर एवं विशाखापट्टनम् में तीन नये कारखाने स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया। 1978 ई० में सार्वजनिक क्षेत्र की इस्पात इकाइयों के लिए ‘स्टील ऑथोरिटी ऑफ इण्डिया’ की स्थापना की गयी जिसके अधिकार में TISCO को छोड़कर अन्य पाँचों इकाइयाँ हैं। भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के लिए उत्तरदायी भौगोलिक कारक लोह्म-इस्पात उद्योग मूलत: कच्चे माल पर आधारित उद्योग है। बाजार की निकटता का इस पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके स्थानीयकरण में अग्रलिखित कारक सहायक हैं – (1) लौह-अयस्क एवं कोयले की एक-दूसरे के निकट प्राप्ति – इस उद्योग में लोहा एवं कोयला कच्चे माल के रूप में सबसे अधिक प्रयुक्त किये जाते हैं, जो दोनों ही भारी पदार्थ हैं। भारत के झारखण्ड राज्य में कोयला तथा निकटवर्ती राज्य में ओडिशा में लौह-अयस्क निकाली जाती है। इस प्रकार दोनों खनिज पदार्थों के लगभग एक ही स्थान पर उपलब्ध होने के कारण यहाँ लोहा-इस्पात उद्योग की स्थापना में बहुत सुविधा रही है। (2) अन्य खनिज पदार्थों की सुलभता – लोहा-इस्पात उद्योग में लौह-अयस्क तथा कोयले के अतिरिक्त मैंगनीज, डोलोमाइट तथा चूना-पत्थर आदि अधात्विक खनिज प्रयुक्त किये जाते हैं। भारत में ये पदार्थ भी बिहार एवं ओडिशा राज्यों में ही पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। (3) सस्ती एवं सुलभ जल-विद्युत शक्ति – लोहा-इस्पात कारखानों में भारी-भारी मशीनों के संचालन के लिए तथा भट्टियों में लौह-अयस्क को पिघलाने के लिए शक्ति संसाधन के रूप में सस्ती जल-विद्युत शक्ति सुलभ होनी चाहिए। भारत ने जल-विद्युत के उत्पादन में पर्याप्त प्रगति की है। अतः लोहा-इस्पात उद्योग को सस्ती जल-विद्युत शक्ति सुगमता से मिल जाती है। (4) स्वच्छ जल की आपूर्ति – लोहा-इस्पात उद्योग के लिए काफी मात्रा में स्वच्छ जल की भी आवश्यकता होती है। कारखानों के समीप ही सदावाहिनी नदियाँ इस उद्योग को स्वच्छ जल प्रदान करती हैं। (5) विस्तृत बाजार – भारत एक विकासशील देश है। यहाँ नये-नये कारखाने, बाँध एवं भवननिर्माण के अनेक कार्य निरन्तर क्रियान्वित किये जा रहे हैं, जिनमें लौह-इस्पात की भारी माँग रहती है। भारत लोहा-इस्पात के सामान का निर्यात भी करता है। पर्याप्त माँग होने के कारण यहाँ लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तीव्र गति से हुआ है। (6) सस्ते एवं कुशल श्रमिक – लोहा-इस्पात उद्योग में कार्य करने के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। सघन जनसंख्या के समीपवर्ती भागों में लोहा-इस्पात केन्द्र स्थापित किये जाने के कारण इस उद्योग को पर्याप्त संख्या में सस्ते एवं कुशल श्रमिक आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। भारत में श्रमिकों को कुशल तथा प्रशिक्षित करने के लिए भी अनेक संस्थान खोले गये हैं।” (7) परिवहन के सस्ते एवं सुलभ साधन – लोहा-इस्पात एक भारी पदार्थ है। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने, मशीनों को लाने, कच्चा माल एकत्र करने तथा तैयार माल को बाहर भेजने में सस्ते परिवहन साधनों की आवश्यकता पड़ती है। भारत में ये साधन सुलभ एवं सस्ते हैं; अत: लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना में इनसे बड़ी सहायता मिली है। (8) पर्याप्त पूँजी – लोहा-इस्पात उद्योग में बड़े-बड़े संयन्त्र लगाने आवश्यक होते हैं। इनके स्थापन के लिए अरबों रुपयों की आवश्यकता होती है। भारत के साहसी उद्योगपतियों ने इस उद्योग के लिए पर्याप्त पूँजी जुटाकर इस उद्योग की स्थापना में बहुत सहयोग दिया है। भारत सरकार भी इस उद्योग को पर्याप्त अनुदान एवं आर्थिक सहायता प्रदान करती है। (9) सरकारी संरक्षण एवं सहायता – भारत में लोहा-इस्पात के अधिकांश कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किये गये हैं जिन्हें सरकार ने संरक्षण एवं संहायता प्रदान की है, जिससे लोहा-इस्पात उद्योग की स्थापना में बहुत प्रोत्साहन मिला है। भारत में लोहा-इस्पात का उत्पादन तथा वितरण भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत में जमशेदपुर के इस्पात कारखाने को छोड़कर शेष सभी इस्पात केन्द्र सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। देश में इस्पात पिण्डों की स्थापित क्षमता 200 लाख टनं वार्षिक है, जबकि इनका वास्तविक उत्पादन 180 लाख टन है। भारत में लोहा और इंस्पात । तैयार करने वाली इकाइयों का विवरण अग्रलिखित है – (1) टाटा आयरन एण्ड स्टील, कम्पनी (TISCO) – भारत में यह एक बड़ा तथा महत्त्वपूर्ण लोहा-इस्पात का कारखाना है जो कि अकेला ही निजी क्षेत्र में है। यह एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा इस्पात कारखाना है। यह कारखाना झारखण्ड राज्य के सिंहभूम जिले में कोलकाता-नागपुर रेलमार्ग पर कोलकाता से 240 किमी उत्तर-पश्चिम में झारखण्ड राज्य के सांकची (जमशेदपुर) नामक स्थान पर 1907 ई० में प्रसिद्ध उद्योगपति जमशेद जी टाटा द्वारा स्थापित किया गया था। इसके उत्तर में स्वर्ण रेखा और पश्चिम में खोरकाई नदियाँ प्रवाहित होती हैं। इस कारखाने में लोहे की सलाखें, गर्डर, रेल के डिब्बे, पहिये एवं पटरियाँ, चादरें, स्लीपर तथा फिश प्लेटें बनाई जाती हैं। इसके निकटवर्ती भागों में टिन प्लेट, कास्ट लोहे की पटरियाँ, इंजीनियरिंग स्थानीयकरण के कारक – इस इस्पात केन्द्र को अनेक भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं, जो निम्नलिखित हैं – ⦁    इस कारखाने के लिए लोहा पार्श्ववर्ती गुरुमहिसानी की पहाड़ियों से प्राप्त होता है जो यहाँ से लगभग 100 किलोमीटर दूर हैं। (2) भारतीय लोहा एवं इस्पात कम्पनी (IISCO) – इस कम्पनी के तीन कारखाने हैं—पहला बर्नपुर में, दूसरा कुल्टी में तथा तीसरा हीरापुर में स्थापित किया गया है। यह कम्पनी भारत में सबसे अधिक लोहा ढलाई का कार्य करती है। 1952 ई० से इन तीनों कारखानों को भारतीय लोहा एवं इस्पात कम्पनी के अधीन कर दिया गया है। 1976 ई० से यह कम्पनी भारत सरकार के अधिकार में है। हीरापुर में केवल लोहे की ढलाई का कार्य किया जाता है। इसकी उत्पादन क्षमता 13 लाख टन ढलवाँ लोहा वार्षिक की है। यहाँ से ढलवाँ लोहा कुल्टी की इकाई को इस्पात निर्माण के लिए भेज दिया जाता है। जिसकी उत्पादन क्षमता 10 लाख टन वार्षिक इस्पात की है। बर्नपुर में इस्पात की ढलाई की जाती है। यहाँ नल एवं रेलवे स्लीपर तैयार किये जाते हैं। भविष्य में इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 23 लाख टन किये जाने का प्रस्ताव है। (3) विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड (VISL) – इस कारखाने की स्थापना 1923 ई० में कर्नाटक राज्य के शिमोगा जिले में भद्रावती नामक स्थान पर भद्रा नदी के किनारे की गयी थी। 1961 ई० से यह कारखाना कर्नाटक राज्य तथा भारत सरकार के संयुक्त स्वामित्व में है। प्रारम्भ में इस कारखाने का उद्देश्य केमानगुण्डी एवं बाबाबूदन की खानों से लौह-अयस्क प्राप्त करना था जो कि इसके अधिकार क्षेत्र में है। इन खानों से प्रति वर्ष 250 लाख टन लौह-अयस्क प्राप्त की जाती है। इस कारखाने की वार्षिक उत्पादन क्षमता एक लाख टन ढलवाँ लोहा तथा 2 लाख टन इस्पात पिण्ड तैयार करने की है। भविष्य में इसकी उत्पादन क्षमता 3 लाख टन इस्पात तैयार किये जाने का प्रस्ताव है। (4) राउरकेला इस्पात संयन्त्र (Rourkela Steel Plant) – हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड का यह कारखाना कोलकाता-मुम्बई रेलमार्ग पर कोलकाता से 431 किमी दूर स्थित है। जर्मनी की सहायता से प्रथम धमन भट्टी 1959 ई० से प्रारम्भ की गयी थी। यहाँ पर अधिकतर चपटे आकार की वस्तुएँ, अलग-अलग मोटाई की प्लेट, चादरें, पत्तियाँ, टिन की चादरें आदि बनाई जाती हैं। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 35 लाख टन कर दी गयी है। (5) भिलाई इस्पात संयन्त्र (Bhilai Steel Plant) – हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड का यह कारखाना मध्य प्रदेश में भिलाई नामक स्थान पर रायपुर से 21 किमी दूर पश्चिम में दुर्ग-रायपुर रेलमार्ग पर सन् 1955 में स्थापित किया गया था। इस कारखाने की स्थापना रूस के सहयोग से की गयी है। यहाँ पर इस्पात का उत्पादन सन् 1959 से प्रारम्भ किया गया है। इस कारखाने में रेलों में प्रयुक्त अनेक प्रकार का सामान-छड़े, स्लीपर, शहतीर, लोहे की कतरनें आदि तैयार की जाती हैं। वर्तमान समय में इस कारखाने की उत्पादन क्षमता 25 लाख टन से बढ़ाकर 50 लाख टन कर दी गयी है। (6) दुर्गापुर इस्पात संयन्त्र लिमिटेड (Durgapur Steel Plant Ltd.) – हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड का यह कारखाना पश्चिम बंगाल राज्य में दामोदर नदी-घाटी में कोलकाता-आसनसोल रेलमार्ग पर कोलकाता के उत्तर-पश्चिम में 160 किमी दूर दुर्गापुर में ब्रिटिश सरकार के सहयोग से सन् 1956 में स्थापित किया गया था। यहाँ इस्पात का उत्पादन सन् 1962 से प्रारम्भ किया गया था। (7) बोकारो इस्पात संयन्त्र (Bokaro Steel Plant) – चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में लोहा-इस्पात का एक नया कारखाना 1964 ई० में रूस के सहयोग से झारखण्ड के बोकारो नामक स्थान पर स्थापित किया गया था। इसकी प्रारम्भिक क्षमता 40 लाख टन इस्पात उत्पादन की थी जिसे भविष्य में 60 लाख टन तक बढ़ाया जा सकेगा। इसमें 1972 ई० से उत्पादन प्रारम्भ हो गया है। निर्यात व्यापार – भारत ने लोहा-इस्पात के निर्यात में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। इस्पात का भारी सामान अब रूस को भी निर्यात किया जाने लगा है। भारतीय इस्पात के अन्य प्रमुख ग्राहक न्यूजीलैण्ड, मलेशिया, बांग्लादेश, कुवैत, ईरान, श्रीलंका, म्यांमार, तंजानिया, संयुक्त अरब अमीरात, कीनिया आदि देश हैं। भारत लगभग 15 लाख टन इस्पात के विशेषीकृत उत्पादों को विदेशों से आयात भी करता है, परन्तु देश से इस्पात निर्यात की भावी सम्भावनाएँ वृद्धि की ओर व्यक्त की जा सकती हैं। | |