1.

उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’- कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

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आत्मकथ्य कविता की भाषागत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 

(i) संस्कृत शब्दावली की बहुलता-‘आत्मकथ्य’ कविता में संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग हुआ है; जैसे 

• इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास। 

• उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। 

(ii) प्रतीकात्मकता-‘आत्मकथ्य’ कविता में प्रतीकात्मक भाषा का खूब प्रयोग हुआ है; जैसे 

• मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी। 

• तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती। 

• उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। 

• सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की। 

(iii) बिंबात्मकता-‘आत्मकथ्य’ कविता में बिंबों के प्रयोग से दृश्य साकार हो उठे हैं; जैसे 

• मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी।। 

• मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। 

• अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा। 

(iv) अलंकार-आत्मकथ्य कविता में अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार की छटा दर्शनीय है अनुप्रास – 

• कह जाता कौन कहानी यह अपनी। 

• तब भी कहते हो कह डालें। मानवीकरण – 

• मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी। 

• थकी सोई है मेरी मौन व्यथा। 

(v) रोयता एवं संगीतात्मकता-आत्मकथ्य कविता की प्रत्येक पंक्ति के अंत में दीर्घ स्वर एवं स्वर मैत्री होने से योग्यता । एवं संगीतात्मकता का गुण है; जैसे तब भी कहते हो–कह डालें, दुर्बलता अपनी बीती। तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।



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