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Answer» वायु-प्रदूषण अथवा वायु के दूषित होने के कारण शुद्ध वायु लगभग सभी जीवधारियों की मूल आवश्यकता है। सभी जीवधारी श्वसन में वायु के प्राणदायी भाग (ऑक्सीजन) का उपभोग कर कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैं, जिसकी मात्रा वायुमण्डल में निरन्तर बढ़ती जा रही है। हरे पौधे इसको एकमात्र अपवाद हैं, क्योंकि ये प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का उपभोग कर ऑक्सीजन गैस स्वतन्त्र करते हैं। तथा इस प्रकार वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा का लगभग सन्तुलन बना रहता है। शुद्ध वायु में आवश्यक तत्त्वों के सन्तुलन को बिगाड़ने का श्रेय मानव जाति को जाता है। इस तथ्य की पुष्टि वायु के अशुद्ध होने के निम्नलिखित कारणों के अध्ययन से हो जाती है| (1) श्वसन क्रिया द्वारा: प्रायः सभी जीवधारी श्वसन के लिए वायुमण्डल की ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं। श्वसन क्रिया के फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रतिशत मात्रा बढ़ती रहती है तथा ऑक्सीजन गैस की प्रतिशत मात्रा घटती रहती है। (2) विभिन्न पदार्थों के जलने से: ऊर्जा-प्राप्ति के लिए मनुष्य द्वारा जलाए जाने वाले ये पदार्थ हैं-लकड़ी, कोयला, पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल एवं गैस आदि। इन पदार्थों के जलने से वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस की मात्रा दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है तथा अनेक विषैली गैसों की मात्रा बढ़ रही है। ये विषैली गैस एवं पदार्थ हैं-कार्बन डाइऑक्साईड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, फ्लोराइड्स, हाइड्रोकार्बन्स इत्यादि। इनके अतिरिक्त इथाइलीन, एसीटिलीन तथा प्रोपाइलीन इत्यादि भी अल्प मात्रा में स्वतन्त्र होकर वायुमण्डल में अपनी प्रतिशतता में निरन्तर वृद्धि कर रही हैं। ये सभी आने वाले समय में मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न लगाने वाले विषैले पदार्थ हैं। (3) वनों की अन्धाधुन्ध कटाई: वायु के प्रदूषण को नियन्त्रित रखने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका पेड़ों द्वारा निभाई जाती है। पेड़ पर्यावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को घटाते हैं तथा ऑक्सीजन में वृद्धि करते हैं। मनुष्य द्वारा वनों की अन्धाधुन्ध कटाई के परिणामस्वरूप यह प्राकृतिक नियम प्रभावित होने लगा है तथा परिणामस्वरूप वायु-प्रदूषण की दर में वृद्धि होने लगी है। (4) औद्योगिक अशुद्धियों द्वारा: औद्योगिक क्रान्ति ने जहाँ मनुष्य के जीवन में अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं, वहीं औद्योगिक अशुद्धियों ने वायुमण्डल को प्रदूषित किया है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं— (i) पोलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल्स (पी० सी० बी०): इनका उपयोग औद्योगिक विलेयकों के रूप में तथा प्लास्टिक उद्योग में होता है। जब कृत्रिम रबर से बने टायर सड़कों पर रगड़ खाते हैं, तो ये पदार्थ वायुमण्डल में मिल जाते हैं। (ii) स्मॉग: शोधन-कार्यशालाओं के धधकने (रिफायनरी फ्लेयर्स) से बने धुएँ एवं कोहरे के मिश्रण से स्मॉग की उत्पत्ति होती है। औद्योगिक नगरों में प्रायः इस प्रकार का वायु-प्रदूषण पाया जाता है। (iii) क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन: अनेक उद्योगों में इस प्रकार के कार्बन का प्रयोग हो रहा है। असावधानियों के कारण यह वायुमण्डल में मुक्त होकर ओजोन की परत में छिद्र कर चुका है तथा इस प्रकार वायुमण्डल को हानिकारक बनाने की ओर अग्रसर है।। (iv) परमाणु ऊर्जा: परमाणु विस्फोटों से अनेक प्रदूषक वायुमण्डल में आते हैं। वायु-प्रदूषण की रोकथाम के उपाय - आवासीय बस्तियों का निर्माण सरकार द्वारा स्वीकृत मानकों के आधार पर होना चाहिए।
- घरों में ईंधन के जलने से उत्पन्न धुएँ के निष्कासन की व्यवस्था चिमनी के द्वारा होनी चाहिए, जिससे कि वह घरों में एकत्रित न हो।
- सरकार द्वारा संचालित वृक्षारोपण कार्यक्रम में हम सभी अपना योगदान दें। इसके लिए बस्ती व इसके आस-पास वृक्ष लगाने चाहिए।
- बस्ती के आस-पास रिक्त भूमि न छोड़े तथा गन्दगी न डालें। धूल व गन्दगी उड़कर वायु को दूषित कर सकती हैं।
- वाहनों के लिए पक्की सड़कें होनी चाहिए ताकि उनके चलने से धूल न उड़े।
- वाहनों के इंजन सही अवस्था में होने चाहिए, अन्यथा पेट्रोल व डीजल के अपूर्ण ज्वलन से अधिक धुआँ बनने के कारण प्रदूषण अधिक होता है। इस विषय में सरकार ने आवश्यक कदम उठाए हैं। तथा इस प्रकार के वाहन स्वामियों के लिए आर्थिक दण्ड का प्रावधान निश्चित किया है।
- विभिन्न औद्योगिक संस्थानों को नागरिक सीमा से दूर स्थित होना चाहिए। इनसे निकलने वाले धुएँ के लिए ऊँची-ऊँची चिमनियाँ हों। विभिन्न प्रदूषकों को वायुमण्डल में आने से रोकने के लिए चिमनियों में आवश्यक निस्यन्दक अथवा फिल्टर लगे होने चाहिए।
- पी० सी० बी० व क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन जैसे पदार्थों के उपयोग को नियन्त्रित किया जाए।
वायु शुद्धिकरण के प्राकृतिक साधन हम जानते हैं कि वायु का आदर्श संगठन पृथ्वी के सभी जीवधारियों के लिए अति आवश्यक है। अनेक (पूर्व वर्णित) कारणों से यह संगठन प्रभावित होता रहता है। संगठन के इस परिवर्तन को हम वायु-प्रदूषण कहते हैं। प्रकृति ने अनेक ऐसे साधन उत्पन्न किए हैं जो कि वायु का शुद्धिकरण कर वायु-प्रदूषण को एक सीमा तक नियन्त्रित रखते हैं। ये साधन निम्नलिखित हैं (1) पेड़-पौधे: विशेष रूप से हरे पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साईड लेकर सूर्य के | प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन निर्मित करते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस वातावरण में मुक्त होती है। इस प्रकार हरे पेड़-पौधे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा में यथासम्भव सन्तुलन बनाए रखते हैं। (2) सूर्य: सूर्य पृथ्वी के लिए ऊर्जा का अमूल्य व अमर स्रोत है। सूर्य का प्रकाश पेड़-पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को सम्भव बनाता है जो कि वायुमण्डल में ऑक्सीजन मुक्त करती है। सूर्य के प्रकाश में पाई जाने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें वायु के कीटाणुओं को नष्ट करती हैं। सूर्य का ताप वायुमण्डल में जल-वाष्प की मात्रा को नियन्त्रित रखता है। (3) वर्षा: वर्षा को जल वायुमण्डल की अनेक अशुद्धियों (जैसे-धूल के कण, अनेक गैसें वे कीटाणु आदि) को अपने साथ बहाकर ले जाता है तथा इस प्रकार वायुमण्डल की शुद्धता में वृद्धि करता क्रिया द्वारा पधि वायुमण्ड निम्नलिखित वायु का शुद्धि है। (4) ऑक्सीजन: ऑक्सीजन वायु की अनेक अशुद्धियों को ऑक्सीकृत कर नष्ट कर देती है। (5) ओजोन: इसके दो महत्त्वपूर्ण कार्य हैं। यह वायु के कीटाणुओं को नष्ट करती है तथा साथ-साथ सूर्य के प्रकाश को फिल्टर कर अनावश्यक परा-बैंगनी अथवा अल्ट्रावायलेट किरणों को पृथ्वी तक नहीं आने देती। (6) विसरण: विसरण प्रायः सभी पदार्थों का प्राकृतिक गुण है। गैसों में विसरण सर्वाधिक पाया जाता है, जिससे गैसें अधिक सान्द्रता वाले क्षेत्र से कम सान्द्रता वाले क्षेत्रों की ओर सदैव बहती रहती हैं। विसरण के फलस्वरूप विषैली गैसों की वायुमण्डल में सान्द्रता अधिक समय तक नहीं रह पाती है। इसी प्रकार वायु का अधिक वेग भी अशुद्धियों को दूर तक बहा ले जाती है। इससे यह लाभ होता है कि वायु की अशुद्धियाँ दूर-दूर तक विसरित हो जाती हैं और किसी स्थान विशेष पर अधिक समय तक केन्द्रित नहीं हो पातीं।
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