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वायुदाब व पवन-तंत्र किसी स्थान की जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? स्पष्ट कीजिए।

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भूगोल वेत्ताओं के अनुसार पवनें उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती हैं। सर्दियों में हिमालय के उत्तर में उच्च वायुदाब क्षेत्र बना होता है। इसीलिए ठण्डी शुष्क पवनें इस क्षेत्र से महासागरों की ओर निम्न दाब क्षेत्रों की ओर दक्षिण दिशा में बहती हैं। गर्मियों में भीतरी एशिया तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण-पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती है।

इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है। ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हैं, नमी ग्रहण करती हैं तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं। इस प्रदेश में, ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है। भारत में होने वाली वर्षा मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के कारण होती है। मानसून की अवधि 100 से 120 दिन के बीच होती है। इसलिए देश में होने वाली अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में केंद्रित है।

(1) पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्णकटिबंधीय चक्रवात – हिमालय के दक्षिण से बहने वाली उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ शीत ऋतु के महीनों में देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भागों में उत्पन्न होने वाले पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभों के लिए जिम्मेदार हैं। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल में भूमध्यसागर से उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय तूफानों का पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है जो सर्दियों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों में अचानक वर्षा एवं हिमपात का कारण बनते हैं। यह पश्चिमी विक्षोभों के कारण होने वाला गैर-मानसूनी वर्षण है। इन तूफानों को मिलने वाली आर्द्रता का स्रोत भूमध्य सागर एवं अटलांटिक महासागर है।

(2) कोरिआलिस बल – भारतीय उपमहाद्वीप में पवनों की दिशा में मौसम के अनुरूप परिवर्तन कोरिआलिस बल के कारण होता है। भारत उत्तर पूर्वी पवनों के क्षेत्र में स्थित है। ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध के उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती हैं। ये दक्षिण की ओर बहती, कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं।

(3) जेट धाराएँ – क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई पर एक सँकरी पट्टी में स्थित हवाएँ होती हैं। इनकी गति गर्मी में 110 किमी प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 किमी प्रति घंटा के बीच विचलन करती है। हिमालय के उत्तर की ओर पश्चिमी जेट धाराओं की गतिविधियों एवं गर्मियों के दौरान भारतीय प्रायद्वीप पर बहने वाली पश्चिमी जेट धाराओं की उपस्थिति मानसून को प्रभावित करती है। प्रायः जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च वायुदाब होता है। तो-उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है।

किन्तु कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं और पूर्वी प्रशांत महासागर में पूर्वी हिन्द महासागर की अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब होता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है। एलनीनो, दक्षिणी दोलन । से जुड़ा हुआ एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अंतराल में पेरू तट से होकर बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का संबंध एलनीनो से है।

इसलिए इस परिघटना को एंसो-(ENSO) (एलनीनो दक्षिणी दोलन) कहा जाता है। हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा से उठने वाली आर्ट पवनें जैसे-जैसे आगे, और आगे बढ़ती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।



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