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Vaishvikaran ke kinhi char arthik parinaam ok vyakhya Karen

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1. अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास सुनिश्चित करने के लिये बुनियादी ढाँचे और संसाधनों के दोहन की क्षमता में भारी इजाफा जरूरी था। इसके लिये सम्पन्न वर्ग द्वारा अन्धाधुन्ध उपभोग को बढ़ावा दिया गया। इस दौरान हमारी अर्थव्यवस्था माँग केन्द्रित रही है और इस बात पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता कि कितनी माँग (और किस उद्देश्य से) जायज व वांछनीय मानी जा सकती है और उसके क्या परिणाम हो रहे हैं।

2. व्यापाार (निर्यात व आयात) उदारीकरण के दो परिणाम रहे हैं : विदेशी मुद्रा जुटाने के लिये प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से दोहन तथा भारत में उपभोक्ता वस्तुओं व कचरे का बड़े पैमाने पर आयात (तेजी से बढ़ते घरेलू कचरे के अलावा)। इससे कचरे के निस्तारण और स्वास्थ्य के लिये गम्भीर समस्याएँ पैदा हुई हैं तथा वानिकी, मछुवाही, चरवाही, खेती, स्वास्थ्य व दस्तकारी से जुड़े परम्परागत रोजगारों पर बहुत बुरा असर पड़ा है।

3. पर्यावरणीय मानकों व नियमों में ढील दे दी गई है या उनके उल्लंघन को नजरअन्दाज कर दिया जा रहा है ताकि देशी और विदेशी, दोनों तरह की कम्पनियों को निवेश के लिये अनुकूल माहौल मिले।

4. अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिये खोल देने की वजह से ऐसी-ऐसी कम्पनियाँ भी भारत में चली आई हैं जिनका पर्यावरण (और/या सामाजिक मुद्दों) पर बहुत बदनाम ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। ऊपर से उनके लिये पर्यावरण और सामाजिक समानता प्रावधानों को और कमजोर करने के लिये दबाव बनाया जा रहा है। घरेलू कम्पनियों के आकार और ताकत में भी जबर्दस्त इजाफा हुआ है और अब वे भी इसी तरह का दबाव बनाने लगी हैं।

5. विभिन्न क्षेत्रों के निजीकरण से उनके प्रदर्शन में कुछ हद तक सुधार तो आता है लेकिन यह व्यवस्था पर्यावरणीय मानकों की अवहेलना या उनमें ढील को भी बेलगाम छूट दे देती है।



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