1.

वे आँखेंहरियाली जिनके तृन-तृन से!पमा प्रलबारलहराते वे खेत दृगों मेंहुआ बेदखल वह अब जिनसे,हँसती थी उसके जीवन कीअंधकार की गुहा सरीखीउन आँखों से डरता है मन,भरा दूर तक उनमें दारुणदैन्य दुख का नीरव रोदन!वह स्वाधीन किसान रहा,अभिमान भरा आँखों में इसका,छोड़ उसे मँझधार आजसंसार कगार सदृश बह खिसका!आँखों ही में घूमा करतावह उसकी आँखों का तारा,कारकुनों की लाठी से जोगया जवानी ही में मारा!कातोजमापारसागसाते हैं।​

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I can't understand

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