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वह कभी भी अपने शिकार के भक्षण के लिए झपट सकती है। वह चुपचाप ही आक्रमणलेखक भय का क्या कारण मानता हऔर क्यों?लेखक दुख की स्थिति कब मानता है?जी की चेतावनी का क्या अभिप्राय है?प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।यद्यपि यह एक शाश्वत सत्य है, फिर भी मृत्यु से सब को भय लगता है। वास्तव मेंभय किसी वस्तु से अलग हो जाने का है। जो छूटता है, उसमें भय है। धन छूट जाएगा,परिवार छूट जाएगा, इसका भय है। त्याग में भय है। किस त्याग में भय है? जिनवस्तुओं को या परिजनों को हम उपयोगी समझते हैं उनके त्याग में भय है। वहां भयनहीं होता ,जहां त्याग अपनी इच्छा से किया जाए। जैसे कपड़ा पुराना हो जाता है तोइच्छा से त्याग करते हैं। ऐसे त्याग में संतोष है। दुःख वहां होता है, जहां कोई अपनीवस्तु छिन या छूट जाती है। हम कपड़ा या धन दूसरों को दे सकते हैं, परंतु एक वस्तु है'प्राण' जो हम नहीं दे सकते हैं। शरीर से 'प्राण' निकल जाए तो कहते हैं मृत्यु हो गई।इसमेंदुख होता है, क्योंकि प्राण को हम इच्छा से नहीं छोड़ते। पंचभूतों से बना यह शरीरपहले विकास को प्राप्त होता है और फिर ह्रास की ओर उन्मुख होता है। पंच महाभूतों केसाथ आत्मा का जुड़ जाना जन्म है। पंच महाभूतों से आत्मा का अलग हो जाना मृत्यु है।हमारे मनीषी बताते हैं कि जो लोग मृत्यु से निर्भय होकर जीवन को पूर्णता के साथऔर अर्थपूर्ण जीते हैं, वे ही अपना जीवन विश्वास से जी लेते हैं। परंतु, हममें सेअधिकतर जीवन के परिवर्तन और उलट-फेर में इतन तटस्थ और उदासीन रहते हैं किमृत्युके बारे में अज्ञानी बने रहते हैं। मृत्यु अपने शिकार पर बाज पक्षी की तरह चुपचापआक्रमण कर देती है। गुरु तेग बहादुर जी चेतावनी देते हैं, 'प्रिय मित्र, मृत्यु स्वच्छंद है,कर देती है, अत: आनंद और प्रेम के साथ जियो।इच्छा किस प्रकार भय उत्पन्न करती है ?जन्म तथा मृत्यु को गद्यांश में किस प्रकार परिभाषित किया गया है ?गुरुतेगबहादुरख-2122​

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