1.

विभिन्न आधारों पर किये गये व्यक्तिगत भिन्नताओं के वर्गीकरण का विवरण प्रस्तुत कीजिए।यावैयक्तिक विभिन्नता के प्रकारों का वर्णन कीजिए।याशेल्डन के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार का उल्लेख कीजिए।

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व्यक्तिगत भिन्नताओं का वर्गीकरण(Classification of Individual Differences)

व्यक्तिगत भिन्नता के सम्बन्ध में टरमन ने लिखा है, “उच्च योग्यता वालों या प्रतिभाशाली बालकों में कुछ सीमा तक अपनी अनेक योग्यताओं के मामले में अपने ही भीतर या अन्य व्यक्तियों के साथ भिन्नताएँ होती हैं।” व्यक्तियों में निम्नांकित प्रकार की भिन्नताएँ पायी जाती हैं’

1. शारीरिक भिन्नता- शरीर की बनावट, रूप, रंग, आकृति, यौन में अन्तर को शारीरिक भिन्नता कहते हैं। शरीर के स्वास्थ्य एवं अंगों की क्रियाशीलता में भेद होने से शारीरिक भिन्नता पायी जाती है। भिन्न-भिन्न विद्वानों ने व्यक्ति में विभिन्न भिन्नताएँ पायी हैं और उसके अनुसार उन्हें निम्न वर्गों में बाँटा है

(i) क्रेश्मर का वर्गीकरण
⦁    ऐथलेटिक- मजबूत हड्डी, स्वस्थ मांसपेशियों, चौड़े सीने, लम्बे हाथ-पैर और लम्बे चेहरे वाले, क्रियाशील, चिन्तारहित, उचित रूप से समायोजित करने वाले।
⦁    ऐसथेनिक- लम्बे, पतले हाथ-पैर वाले, तिकोने चेहरे, चपटे सीने और छोटी ठोढ़ी वाले, अपनी निन्दा न सुनने वाले, दूसरों की निन्दा करने वाले।
⦁    पिकनिक- बड़े सिर और धड़ वाले, छोटे पैर, गोल सीने व कन्धे, छोटे हाथ-पैर वाले।
⦁    डिसप्लास्टिक- असाधारण शरीर वाले, रोगग्रस्त, ग्रन्थि रोग वाले, उपर्युक्त तीनों प्रकार के लोगों का मिश्रण।

(ii) केनन का वर्गीकरण
⦁    थायरॉइड ग्रन्थि-प्रधान-पर्याप्त शक्ति वाले, स्वस्थ, ओजस्वी व्यक्ति।
⦁    थायरॉइड ग्रन्थि से न्यून स्राव वाले-कमजोर, अस्वस्थ, आलसी, क्रियाहीन व्यक्ति।
⦁    एड्रीनल ग्रन्थि-प्रधान-बहादुर, लड़ाकू, क्रोधी, साहसी, कर्मठ व्यक्ति।
⦁    पिट्यूटरी ग्रन्थि-प्रधान-क्रियाशील, हँसी-मजाक में निपुण, प्रसन्नचित्त व्यक्ति।
⦁    गोनाड ग्रन्थि-प्रधान-अधिक क्रियाशील, कामुक, नाटे, स्वस्थ व्यक्ति।

(iii) शेल्डन का वर्गीकरण
⦁    कोमल, गोल तथा मोटे शरीर वाले व्यक्ति।
⦁    हृष्टपुष्ट, शक्तिशाली, भारी और मजबूत व्यक्ति।
⦁    लम्बे आकार वाले, शक्तिहीन, दुर्बल मांसपेशियों वाले, शीघ्र उत्तेजित होने वाले व्यक्ति।

(iv) वार्नर का वर्गीकरण
⦁    सामान्यतया स्वस्थ, सुडौल, गठीले शरीर वाले व्यक्ति।
⦁    अविकसित अंग वाले, छोटे हाथ, पैर, गर्दन वाले व्यक्ति।
⦁    असन्तुलित शरीर वाले, निर्बल, अपरिपुष्ट व्यक्ति।
⦁    स्नायुविक गड़बड़ी वाले, शीघ्र घबराने वाले व्यक्ति।
⦁    अंगहीन, हाथ, पैर, आँख, कान ठीक न होने वाले व्यक्ति
⦁    आलसी, सुस्त, इच्छाविहीन, निर्जीव से व्यक्ति।
⦁    पिछड़े हुए, आयु के अनुकूल कार्य करने में असमर्थ व्यक्ति।
⦁    प्रतिभाशाली, अपनी आयु से अधिक कार्य करने वाले व्यक्ति।
⦁    मिर्गी रोगग्रस्त व्यक्ति।
⦁    स्नायु रोगग्रस्त व्यक्ति।

2. बौद्धिक भिन्नता- टरमन (Turman) ने बुद्धिलब्धि निकालकर निम्नलिखित भिन्नताएँ बतायी।
           प्रकारे                                        बुद्धिलब्धि
⦁    अति प्रतिभाशाली               200 या इससे अधिक
⦁    प्रतिभाशाली                       140 से 200 तक
⦁    अति उत्कृष्ट                       120 से 140 तक
⦁    उत्कृष्ट                               110 से 120 तक
⦁    साधारण                            90 से 110 तक
⦁    मन्दबुद्धि                           80 से 90 तक
⦁    निर्बल बुद्धि                       70 से 80 तक
⦁    हीन बुद्धि                          70 से कम
⦁    मूर्ख                                  50 से 70 तक
⦁    मूढ़                                   20 से 50 तक
⦁    जड़                                  20 से कम

3. मानसिक योग्यताओं की भिन्नता- व्यक्ति संवेदनशीलता, प्रत्यक्षीकरण, निरीक्षण, स्मरण, कल्पना, चिन्तन, तर्क, अधिगम आदि मानसिक योग्यताओं में भिन्न पाये जाते हैं। कुछ बड़े संवेदनशील होते हैं, कुछ तीव्र स्मरण करने वाले होते हैं, कुछ बड़े तार्किक होते हैं, कुछ की कल्पना-शक्ति बहुत तीव्र होती है, कुछ देर से सीखते हैं आदि। कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा इस सम्बन्ध में किये गए वर्गीकरण इस प्रकार हैं—

(i) थॉर्नडाइक का वर्गीकरण- यह वर्गीकरण विचारशक्ति पर आधारित है
⦁    सूक्ष्म विचारक; जैसे-गणितज्ञ, तर्कशास्त्री, वैज्ञानिक।
⦁    प्रत्यय विचारक; जैसे-कवि, साहित्यकार, नाटककार।
⦁    स्थूल विचारक; जैसे-वस्तुओं के साथ विचार करने वाले।
⦁    ज्ञानेन्द्रिय-प्रधान विचारक; जैसे-आँख से देखकर समझने वाले।

(ii) थॉर्नडाइक का कल्पना- शक्ति पर आधारित वर्गीकरण
⦁    दर्शनालु अर्थात् आँख की इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
⦁    श्रवणालु अर्थात् कान की इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
⦁    गमनालु अर्थात् क्रिया, इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
⦁    स्पर्शालु, अर्थात् त्वक इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
⦁    घृणालु अर्थात् नासिको इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
⦁    मिश्रित अर्थात् कई इन्द्रियों को एक-साथ मिलाकर कार्य करने वाले व्यक्ति।

(iii) स्टीफेन्सन का वर्गीकरण- इनका वर्गीकरण बाह्य उत्तेजकों द्वारा मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों पर आधारित है
⦁    प्रसारक- अर्थात् स्थायी प्रभाव वाले व्यक्ति।
⦁    अप्रसारक-अर्थात् क्षणिक प्रभाव वाले व्यक्ति।

4. स्वभावगत भिन्नता- व्यक्तियों में स्वभावगत भिन्नता भी पायी जाती है। इसका ज्ञान मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिये गये वर्गीकरण से होता है। इनका विवरण इस प्रकार है

(i) मॉर्गन और गिलीलैण्ड का वर्गीकरण- यह वर्गीकरण मनोभावों पर आधारित है-
⦁    प्रफुल्ल, जो हमेशा हँसने वाले, आशावादी, गम्भीरतारहित काम करने वाले, संकट में प्रसन्न रहने वाले, जीवन को खेल समझने वाले होते हैं।
⦁    उदास, जो सदैव दु:खी रहते हैं और निराशावादी अभिवृत्ति रखते हैं।
⦁    चिड़चिड़े जो छोटी-छोटी बातों में खीझ उठते हैं, जल्दी क्रुद्ध हो जाते हैं और मजाक को सहन नहीं करते हैं।
⦁    अस्थिर, जो शीघ्र क्रुद्ध, शीघ्र प्रसन्न, शीघ्र दुःखी, अनियन्त्रित भावना वाले होते हैं।

(ii) गैलन का वर्गीकरण- यह शारीरिक क्रियाओं पर आधारित है
⦁    अति रुधिरयुक्त, जो अत्यन्त संवेदनशील, परिवर्तनशील, शीघ्र उत्तेजित होने वाले, उत्साही एवं कार्य करने वाले होते हैं।
⦁    पीतपित्त-प्रधान, जो क्रोधी, वीर, साहसी, हठी, दृढ़-प्रतिज्ञ तथा कठोर स्वभाव वाले होते हैं।
⦁    श्याम पित्त-प्रधान, जो दुःखी, चिन्तित, हतोत्साही, निराशावादी तथा कार्य में अरुचि रखने वाले होते हैं।
⦁    कफ-प्रधान, जो आलसी, सुस्त, कम संवेदनशील, काम से भागने वाले तथा परिश्रमहीन होते हैं।

(iii) शेल्डन का वर्गीकरण- यह स्वाभाविक गुणों पर आधारित है-
⦁    आलसी, जो आराम-पसन्द, निद्रा-प्रेमी, पराश्रित, परामुखी तथा काम न करने वाले होते हैं।
⦁    कर्मठ, जो सक्रिय, परिश्रमी, साहसी, अधिकार-प्रेमी, कार्यरत तथा शक्तिशाली होते हैं।
⦁    संयमी, जो अपने पर नियन्त्रण रखने वाले, संकोची, कार्याभ्यस्त तथा एकान्त प्रेमी होते हैं।

5. सामाजिकता सम्बन्धी भिन्नता- व्यक्तियों में सामाजिकता अधिक या कम होती है। कुछ अपने आप में, कुछ दूसरों में और कुछ अपने तथा दूसरों में बराबर-बराबर रुचि रखते हैं। प्रोफेसर गुंग ने व्यक्तियों को तीन वर्गों में विभक्त किया है-
⦁    अन्तर्मुखी- जो आत्म-केन्द्रित, समाज के कार्यों में रुचि न लेने वाले, एकान्त प्रेमी, भविष्य की चिन्ता अधिक करने वाले, अधिक सोच-विचार करने वाले, देर से निर्णय लेने वाले, अव्यावहारिक तथा चिन्ता से घिरे होते हैं।
⦁    बहिर्मुखी- जो सामाजिक कार्यों में भाग लेने वाले, दूसरों की भलाई में लगे रहने वाले, अकेले ऊबने वाले, व्यवहार-कुशल, सक्रिय, शीघ्र निर्णय लेने वाले, दृढ़ निश्चयी, मिलनसार, नेता, प्रशासक तथा वक्ता होते हैं।
⦁    उभयमुखी- इनमें उपर्युक्त दोनों प्रकार के गुणों से सम्पन्न व्यक्ति होते हैं। अधिकांश व्यक्ति इसी वर्ग में आते हैं।

6. सीखने की क्षमता में भिन्नता- एबिंगहास ने अनेक परीक्षणों के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि विभिन्न आयु के बालकों एवं वयस्कों में भी सीखने की क्षमता भिन्न पायी जाती है। कोई बालक जल्दी सीखता है तो कोई देर से। कक्षा में एक बात को कुछ बालक जल्दी समझने लगते हैं और दूसरों को बहुत समय लगता है।

7. रुचि की भिन्नता- प्रत्येक व्यक्ति की रुचि दूसरे की रुचि से भिन्न होती है। कुछ बालक पढ़ने में रुचि रखते हैं तो कुछ वैज्ञानिक कार्य करने और कुछ शिल्प-कार्यों में।

8. अभिरुचि की भिन्नता- कुछ व्यक्ति संगीत में अभिरुचि रखते हैं, तो दूसरे हस्तकौशल या तकनीकी कार्यों में। वकील, डॉक्टर, मास्टर, इंजीनियर, कारीगर, क्लर्क व प्रशासक में अभिरुचि की भिन्नता पायी जाती है।

9. चारित्रिक भिन्नता- आचरण, व्यवहार, अभिवृत्ति, आदत, स्थायी भाव ये सब मिलकर चरित्र को निर्माण करते हैं। चोर, लुटेरे, अपराधी, हत्यारे, उदार, दृढ़ प्रतिज्ञ, कृत संकल्पी, शीलवान, लज्जाशील चारित्रिक भिन्नता के व्यक्ति होते हैं।

10. ज्ञानात्मक भिन्नता- व्यक्ति प्रायः व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक ज्ञान वाले होते हैं। व्यावहारिक ज्ञान के कारण संसार के क्रिया-कलापों में, विषम परिस्थितियों में और पारस्परिक सम्पर्क में व्यक्ति आगे बढ़ता है। सैद्धान्तिक ज्ञान-भाषा, गणित, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, कृषि आदि का ज्ञान होता है। ज्ञान की भिन्नता आयु, बुद्धि, सामाजिक व आर्थिक स्थिति, सीखने के अवसर व प्रेरणा आदि पर कम या अधिक हो सकती है। व्यावहारिक ज्ञान वास्तविक परिस्थितियों में कार्य करने से मिलता है।

11. व्यक्तित्व की भिन्नता- व्यक्ति के विभिन्न गुणों के समूह का मनोवैज्ञानिक नाम व्यक्तित्व होता है। सभी व्यक्तियों में सभी गुण नहीं होते हैं। व्यक्तित्व की भिन्नता के निम्नलिखित वर्ग हैं

(i) स्पेल्जर का वर्गीकरण- इन्होंने छह प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख किया है-
⦁    ऐन्द्रिय सुख चाहने वाला, जो अपनी इन्द्रियों को सतुष्ट करने में संलग्न रहे; जैसे-लोभी, लालची, कामी, घूसखोर, कालाबाजारी, तस्कर, व्यापारी, बेईमान आदि।
⦁    धन से प्रेम रखने वाला, जो व्यापार एवं वाणिज्य में दिन-रात लगा रहता है और धन कमाने के पीछे तन-मन सब कुछ खराब कर देता है।
⦁    चिन्तन-मनन करने वाला, जो दार्शनिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक, अध्ययन में, शोध कार्य में अपना सारा समय लगता है।
⦁    राजनीति में संलग्न रहने वाला, जो शासन के कार्यों में, दलबन्दी करने में, दाँव-पेंच व घात-प्रतिघात में लगा हुआ पाया जाता है।
⦁    समाज के कार्यों में लगा रहने वाला, जो जाति-पाँति से दूर सभी समाजों के समस्त कार्यों में सजग रूप में लगा रहता है।
⦁    धर्मनिष्ठ, जो ईश्वर के भजन, पूजा-पाठ, स्थान-ध्यान, रोजा-नमाज व चर्च की सेवा में लगा पाया जाता है।

(ii) सामान्य वर्गीकरण- इनके तीन वर्ग हैं-
⦁    भाव-प्रधान व्यक्ति, जो जल्दी ही संवेदनशील हो उठते हैं। कोमल हृदय वाले होते हैं; जैसे-कवि, सेवक, भक्त, दयालु।
⦁    विचार-प्रधान व्यक्ति, जो जीवन की समस्याओं के सम्बन्ध में काफी सोच-विचार और चिन्तन किया करते हैं; जैसे–दार्शनिक, लेखक, वैज्ञानिक आदि।
⦁    हिंसा-प्रधान व्यक्ति, जो अपने जीवन में क्रिया ही करना पसन्द करते हैं; जैसे-सैनिक, खिलाड़ी श्रमिक, कारीगर आदि।



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