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‘विरक्त अब फिर से राग के बन्धनों में नहीं बँध सकता।’ यह कथन है –(क) रत्नावली का(ख) तुलसीदास का(ग) राजा भगत का(घ) टोडरमल का।

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(ख) तुलसीदास का



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