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Answer» यह सत्य है कि चिन्तन की विकसित प्रक्रिया केवल मनुष्यों में ही पायी जाती है अर्थात् केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो व्यवस्थित चिन्तन करता है तथा उससे लाभान्वित भी होता है। मनुष्यों द्वारा चित्तने की उन्नत प्रक्रिया को सम्पन्न करने में सर्वाधिक योगदान भाषा का है। विकसित भाषा भी मनुष्य की ही एक मौलिक क्षमता है। मनुष्यों के अतिरिक्त किसी अन्य प्राणी को विकसित भाषा की क्षमता उपलब्ध नहीं है। भाषा एक ऐसा प्रबल एवं व्यवस्थित माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान किया करते हैं तथा सभी सामाजिक अन्तक्रियाएँ स्थापित किया करते हैं। भाषा का मुख्य रूप शाब्दिक ही होता है तथा भाषा में विभिन्न प्रतीकों को प्रयोग किया जाता है। जहाँ तक चिन्तन की प्रक्रिया का प्रश्न है, इसमें भी भाषा द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जाती है। वास्तव में, चिन्तन की प्रक्रिया को हम आत्म-भाषण या आन्तरिक सम्भाषण भी कह सकते हैं। चिन्तन में भाषा की भूमिका मानवीय चिन्तन अपने आप में एक अत्यधिक तथा विकसित प्रक्रिया है। मानवीय चिन्तन में भाषा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। चिन्तन में भाषा की भूमिका का विवरण निम्नलिखित (1) निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि हमारी चिन्तन की प्रक्रिया सदैव शब्दों अथवा भाषा के माध्यम से सम्पन्न होती है। मॉर्गन तथा गिलीलैण्ड ने इससे सम्बन्धित परीक्षण किये तथा स्पष्ट किया कि चिन्तन में भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भाषा में चिह्नों का प्रयोग होता है तथा ये विचारों के माध्यम की भूमिका निभाते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि शब्द-विन्यास विचारों के संकेत के रूप में भूमिका निभाते हैं। (2) चिन्तन की प्रक्रिया में स्मृति की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। जहाँ तक व्यक्ति के विचारों की स्मृति का प्रश्न है, उसके निर्माण का कार्य भी भाषा द्वारा होता है। व्यक्ति के विचार उसके मस्तिष्क में मानसिक संस्कारों के रूप में स्थान ग्रहण कर लेते हैं तथा जब कभी आवश्यकता पड़ती है तो यही मानसिक संस्कार भाषा के आधार पर सरलता से याद कर लिये जाते हैं। (3) जहाँ तक चिन्तन की प्रक्रिया की अभिव्यक्ति का प्रश्न है, उसमें भी भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। व्यक्ति द्वारा किये गये चिन्तन की अभिव्यक्ति भी भाषा के ही माध्यम से होती है। व्यक्ति अपने विचारों को अन्य व्यक्तियों के सम्मुख सदैव भाषा के ही माध्यम से प्रस्तुत करता है।समाज में व्यक्तियों के विचारों का आदान-प्रदान भी भाषा के ही माध्यम से होता है। कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को लिखित भाषा के माध्यम से संगृहीत कर सकता है। चिन्तन की प्रक्रिया विचारों के माध्यम से चलती है तथा विचार भाषा के माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि चिन्तन में भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। (4) चिन्तन की प्रक्रिया को कम समय में पूर्ण होने में भी भाषा का सर्वाधिक योगदान होता है। भाषा द्वारा विचारों की विस्तृत श्रृंखला को सीमित रूप प्रदान किया जा सकता है। इस प्रकार चिन्तन की प्रक्रिया को भी सीमित बनाया जा सकता है। (5) चिन्तन तथा भाषा में अन्योन्याश्रिता का भी सम्बन्ध है। जहाँ एक ओर चिन्तन की प्रक्रिया में भाषा का योगदान है वहीं दूसरी ओर भाषा के विकास में भी चिन्तन द्वारा उल्लेखनीय योगदान प्रदान किया जाता है। व्यक्ति के विचारों के समृद्ध होने के साथ-साथ चिन्तन का विकास होता है तथा चिन्तन एवं विचार के विकास का भाषा के विकास पर भी विशेष प्रभाव पड़ता है। (6) हम जानते हैं कि समस्त साहित्य की रचना भाषा के माध्यम से हुई है। सम्पूर्ण साहित्य व्यक्ति को चिन्तन के लिए प्रेरित करता है तथा साहित्य-अध्ययन के माध्यम से व्यक्ति की चिन्तन-क्षमता का भी विकास होता है। इस दृष्टिकोण से भी चिन्तन के क्षेत्र में भाषा का योगदान उल्लेखनीय है।
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