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(1) “तूफानों की ओर ……. उठा है ज्वार।”

हे नाविक! तुम तूफानों का सामना करने के लिए अपनी पतवार तूफानों की दिशा में मोड़ दो। आज समुद्र ने जहर उगल दिया है – कठिन परिस्थितियाँ पैदा की हैं। लहरें भी उमड़कर तुम्हारी नाव को निगल जाना चाहती हैं, फिर भी परवाह नहीं। उधर समुद्र में ज्वार उठा है तो कवि के हृदय में भी भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा है।

(2) “लहरों के स्वर में ………. तूफानों का प्यार।”

जैसे लहरों का स्वर ऊँचा हो रहा है और उनका जोर बढ़ रहा है, वैसे ही तुम भी तैयार होकर आँधियों के सामने उठ जाओ और स्वयं आजमाकर देखो कि तुममें कितनी हिम्मत है। जीवन में तूफानों का प्यार कभी – कभी ही मिलता है – भाग्यशाली लोग ही जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं।

(3) “यह असीम, ……………. न मानी हार।” 

यह समुद्र और वह तूफान आज असीम दिखाई देते हैं।
इनका सामना शायद ही कोई कर सके। लेकिन, मनुष्य सब कुछ कर सकता है। हे नाविक ! तुम अपनी नाव लेकर चलो और सागर को भी बता दो कि मानव मिट्टी का पुतला है, पर समुद्र के सामने हार नहीं मानेगा। मनुष्य ने कहीं भी अपनी हार नहीं मानी।

(4) “सागर की अपनी ………. सागर पार।”

समुद्र के पास उसकी अपनी लहरों की शक्ति है। पर, माझी के पास भी हिम्मत है, आत्मविश्वास है। वह थकना नहीं जानता। जब तक नाविक की साँसें चल रही हैं तब तक वह अपनी नाव आगे बढ़ाता ही जाएगा। हे नाविक! तुमने अपनी हिम्मत और ताकत के सहारे सात समुद्र पार कर डाले हैं। अपनी नाव के साथ इसी प्रकार आगे बढ़ते रहो। हे नाविक, तुम अपनी पतवार तूफानों की ओर घुमा दो।



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