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‘यांत्रिक’ और ‘सावयवी एकता में क्या अंतर है?

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दुर्खोम ने सामाजिक एकता (जिसे सामाजिक संश्लिष्टता अथवा सामाजिक मतैक्य भी कहा जाता है) के सिद्धांत का प्रतिपादन अपनी सर्वप्रथम पुस्तक ‘दि डिविजन ऑफ लेबर इन सोसायटी में किया है। यह पुस्तक 1893 ई० में फ्रेंच भाषा में प्रकाशित हुई तथा बाद में 1933 ई० में उसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। वास्तव में, दुर्खोम की यह पुस्तक सामान्य जीवन के तथ्यों का वैज्ञानिक विधि द्वारा विश्लेषण का प्रथम प्रयास था। इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा उन्हें अर्थशास्त्री ऐडम स्मिथ के विचारों से मिली।
सामाजिक एकता का अर्थ समाज की विभिन्न इकाइयों में सामंजस्य से है अर्थात् यह ऐसी परिस्थिति है। जिसमें समाज की विभिन्न इकाइयाँ अपनी भूमिका निभाती हुई संपूर्ण समाज में संतुलन बनाए रखती हैं। उनके अनुसार सामाजिक एकता पूर्णतः एक नैतिक घटना है क्योंकि इसी के द्वारा पारस्परिक सहयोग तथा सद्भावना को बढ़ावा मिलता है। दुर्खोम ने सामाजिक एकता को दो श्रेणियों में बाँटा है –

1. यांत्रिक एकता – यांत्रिक एकता आदिम समाजों में अथवा सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से पिछड़े हुए समाजों में पायी जाती है। इन समाजों में विभेदीकरण अर्थात् कार्यों का वितरण न के बराबर होता है तथा केवल लिंग और आयु के आधार पर ही कार्यों में थोड़ा-बहुत विभेदीकरण पाया जाता है। सामूहिक चेतना (Collective conscience) द्वारा,सभी व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं तथा इस सामूहिक चेतना को बनाए रखना सभी व्यक्ति अपना परम कर्तव्य मानते. हैं। यांत्रिक एकता वह एकता है जो कि व्यक्तियों द्वारा एक जैसे कार्यों के कारण आती है। अर्थात् जो समरूपता (Likeness) का परिणाम है यह एक सरल प्रकार की एकता है जो दमनकारी कानून द्वारा बनाए रखी जाती है।

2. सावयवी एकता – सावयवी एकता असमानताओं से विकसित होती है। इसका प्रमुख आधार श्रम-विभाजन है। यह एकता आधुनिक समाज की प्रमुख विशेषता मानी जाती है। दुर्खोम का कहना है कि जैसे-जैसे समाज की जनसंख्या का घनत्व तथा आयतन बढ़ता जाता है वैसे-वैसे व्यक्तियों की आवश्यकताएँ भी बढ़ती जाती हैं। इन बढ़ती हुई आवश्यकताओं के कारण व्यक्तियों के कार्यों में भिन्नता आती है तथा इसके साथ ही इनमें विशेषीकरण बढ़ता है अर्थात् श्रम-विभाजन की वृद्धि होती है। उस एकता को, जो कि कार्यों की भिन्नता द्वारा विशेषीकरण (अर्थात् श्रम-विभाजन) और इसके परिणामस्वरूप व्यक्तियों की अन्योन्याश्रितता के कारण आती हैं, दुर्वीम सावयवी एकता कहते हैं। सावयवी एकता की पुष्टि क्षतिपूरक कानून द्वारा होती है।

‘यांत्रिक’ और ‘सावयवी’ एकता में निम्नलिखित अंतर पाए जाते हैं-
⦁    यांत्रिक एकता समानताओं पर आधारित होती है, जबकि सावयवी असमानताओं अर्थात् श्रम-विभाज़न पर आधारित होती है।
⦁    यांत्रिक एकता सरल समाजों में पायी जाती है, जबकि सावयवी एकता आधुनिक समाजों को प्रमुख लक्षण है।
⦁    यांत्रिक एकता बनाए रखने में दमनकारी कानून की प्रमुख भूमिका होती है, जबकि सावयवी एकता बनाए रखने में क्षतिपूरक कानून की।
⦁    यांत्रिक एकता का प्रारूप खंडात्मक होता है, जबकि सावयवी एकता का संगठित।
⦁    यांत्रिक एकता जनसंख्या के सापेक्षिक रूप से कम घनत्व वाले समाजों में पायी जाती है, जबकि सावयवी एकता जनसंख्या में घनत्व की ऊँची मात्रा वाले समाजों में।



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