1.

यदि परिपथ को उच्च आवृत्ति की आपूर्ति (240 V, 10 kHz) से जोड़ा जाता है तो प्रश्न 13 (a) तथा (b) के उत्तर निकालिए । इससे इस कथन की व्याख्या कीजिए कि अति उच्च आवृत्ति पर किसी परिपथ में प्रेरक लगभग खुले परिपथ के तुल्य होता है । स्थिर अवस्था के पश्चात किसी D.C. परिपथ में प्रेरक किस प्रकार का व्यवहार करता है ?

Answer» दिया है - `v=10kHz=10^(4)Hz`
`omega=2piv=2pixx10^(4)"rad s"^(-1),V_(rms)=240`
`:." "I_(0)=(V_(0))/(sqrt(R^(2)+omega^(2)L^(2)))`
`=(sqrt(2)xx240)/(sqrt((100)^(2)+(2pixx10^(4))^(2)xx(0*5)^(2)))`
`=1*08xx10^(-2)A`
`X_(L)` की तुलना में R को नगण्य लेने पर,
`tanphi=(X_(L))/(R)=(2pixx10^(4)xx0*5)/(100)=100pi`
`phi` का मान रेडियन में होगा ।
`:.` समय पश्चात `=(phi)/(2piv)=(pi)/(4pixx10^(4))`
`=0.25xx10^(-4)` सेकण्ड
इस स्थिति में `I_(0)` का मान अत्यंत कम होने के कारण यह मान सकते है कि उच्च आवृत्ति पर प्रेरक कुण्डली एक खुले परिपथ के समान व्यवहार करती है स्थायी D.C. परिपथ के लिए v=0 अतः प्रेरकत्व एक शुद्ध चालक के समान व्यवहार करता है ।


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