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डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के जीवन-परिचय एवं रचनाओं पर प्रकाश डालिए।याडॉ० राजेन्द्र प्रसाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।याडॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जीवन-परिचय दीजिए तथा उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।

Answer»

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद एक सादगीपसन्द कृषक पुत्र थे। जहाँ वे एक देशभक्त राजनेता थे, वहीं कुशल वक्ता एवं श्रेष्ठ लेखक भी थे। सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और निर्भीकता इनके रोम-रोम में बसी हुई थी। साहित्य के क्षेत्र में भी इनका योगदान बहुत स्पृहणीय रहा है। अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से इन्होंने हिन्दी-साहित्य को समृद्ध किया है। सांस्कृतिक, शैक्षिक, सामाजिक आदि विषयों पर लिखे गये इनके लेख हिन्दी-साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।

जीवन-परिचय-देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म सन् 1884 ई० में बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था। इनका परिवार गाँव के सम्पन्न और प्रतिष्ठित कृषक परिवारों में से धा। इन्होंने कलकत (कोलकाता) विश्वविद्यालय से एम० ए०: t!ल-एल० बी० की परीक्षा उतीर्ण की थी। ये प्रतिभासम्पन्न और मेधावी छात्र थे और परीक्षा में सदैव प्रथम आते थे।  कुछ समय तक मुजफ्फरपुर कॉलेज में अध्यापन कार्य करने के पश्चात् ये.पटना और कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील भी रहे। इनका झुकाव प्रारम्भ से ही राष्ट्रसेवा की ओर था। सन् 1917 ई० में गाँधी जी के आदर्शों और सिद्धान्तों से प्रभावित होकर इन्होंने चम्पारन के आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और वकालत छोड़कर पूर्णरूप से राष्ट्रीय स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े। अनेक बार जेल की यातनाएँ भी भोगीं। इन्होंने विदेश जाकर भारत के पक्ष को विश्व के सम्मुख रखा। ये तीन बार अखिल भारतीय कांग्रेस के सभापति तथा भारत के संविधान का निर्माण करने वाली सभा के सभापति चुने गये।।

राजनीतिक जीवन के अतिरिक्त बंगाल और बिहार में बाढ़ और भूकम्प के समय की गयी इनकी सामाजिक सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता। ‘सादा जीवन उच्च-विचार’ इनके जीवन को पूर्ण आदर्श था। इनकी प्रतिभा, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी और निष्पक्षता से प्रभावित होकर इनको भारत गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया। इस पद को ये संन् 1952 से सन् 1962 ई० तक सुशोभित करते रहे। भारत सरकार ने इनकी महानताओं के सम्मान-स्वरूप देश की सर्वोच्च उपाधि ‘भारतरत्न’ से सन् 1962 ई० में इनको अलंकृत किया। जीवन भर राष्ट्र की नि:स्वार्थ सेवा करते हुए ये 28 फरवरी, 1963 ई० को दिवंगत हो गये।

रचनाएँ-राजेन्द्र बाबू की प्रमुख रचनाओं का विवरण निम्नवत् है

(1) ‘चम्पारन में महात्मा गाँधी’—इसमें किसानों के शोषण और अंग्रेजों के विरुद्ध गाँधीजी के . आन्दोलन का बड़ा मार्मिक वर्णन है।

(2) ‘बापू के कदमों में-इसमें महात्मा गाँधी के प्रति श्रद्धा-भावना व्यक्त की गयी है।

(3)‘मेरी आत्मकथा’—यह राजेन्द्र बाबू द्वारा सन् 1943 ई० में जेल में लिखी गयी थी। इसमें तत्कालीन भारत की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति का लेखा-जोखा है।

(4) ‘मेरे यूरोप के अनुभव’-इसमें इनकी यूरोप की यात्रा का वर्णन है। इनके भाषणों के भी कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इसके अतिरिक्त

(5) शिक्षा और संस्कृति

(6) भारतीय शिक्षा

(7) गाँधीजी की देन

(8) साहित्य

(9) संस्कृति का अध्ययन

(10) खादी का अर्थशास्त्र आदि इनकी अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं। |

साहित्य में स्थान–डॉ० राजेन्द्र प्रसाद सुलझे हुए राजनेता होने के साथ-साथ उच्चकोटि के विचारक, साहित्य-साधक और कुशल वक्ता थे। ये ‘सादी भाषा और गहन विचारक’ के रूप में सदैव स्मरण किये जाएँगे। हिन्दी की आत्मकथा विधा में इनकी पुस्तक मेरी आत्मकथा’ का उल्लेखनीय स्थान है। ये हिन्दी के अनन्य सेवक और प्रबल प्रचारक थे। राजनेता के रूप में अति-सम्मानित स्थान पर विराजमान होने के साथ-साथ  हिन्दी-साहित्य में भी इनका अति विशिष्ट स्थान है।