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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. | पूर्वजता या प्रत्यावर्तन को उदाहरण सहित समझाइए। | 
| Answer» किसी जीव या जीवों के समूह में किसी ऐसे लक्षण का आकस्मिक आना जो सामान्य रूप से उस जाति में नहीं पाया जाता परन्तु पहले किसी पूर्वज में पाया जाता था पूर्वजता या प्रत्यावर्तन कहलाता है। जैसे कभी-कभी बच्चे में जन्म के समय एक छोटी पूँछ का पाया जाना। | |
| 2. | मानव विकास के विभिन्न घटकों का पता कीजिए (संकेत-मस्तिष्क साइज और कार्य, कंकाले संरचना, भोजन में पसंदगी आदि)। | 
| Answer» लगभग 16 मिलियन वर्ष पूर्व ड्रायोपिथिकस (Dryopithecus) तथा रामापिथिकस (Ramapithecus) प्राइमेट्स विद्यमान थे। इनके शरीर पर भरपूर बाल थे तथा ये गोरिल्ला एवं चिम्पैंजी जैसे चलते थे। इनमें ड्रायोपिथिकस वनमानुष (ape) जैसे और रामापिथिकस मनुष्यों जैसे थे। इथोपिया तथा तंजानिया में अनेक मानवी विशेषताओं को प्रदर्शित करते जीवाश्म प्राप्त हुए। इससे यह स्पष्ट होता है कि 3-4 मिलियन वर्ष पूर्व मानव जैसे वानर गण (प्राइमेट्स) पूर्वी अफ्रीका में विचरण करते थे। ये लगभग 4 फुट लम्बे थे और सीधे खड़े होकर चलते थे। लगभग 2 मिलियन वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलोपिथेसिन (Australopithecines) अर्थात् आदि मानव सम्भवतः पूर्वी अफ्रीका के घास स्थलों में विचरण करता था। होमो हैबिलिस (Homo habilis) को प्रथम मानव जैसे प्राणी के रूप में जाना जाता है। होमो इरेक्टस (Homo erectus) के जीवाश्म लगभग 1.5 मिलियन वर्ष पूर्व के हैं। इसके अन्तर्गत जावा मानव, पेकिंग मानव, एटलांटिक मानवे आते हैं। प्लीस्टोसीन युग के अन्तिम काल में होमो सेपियन्स (वास्तविक मानव) ने होमो इरेक्टस का स्थान ले लिया। इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से निएण्डरथल मानव, क्रोमैगनॉन मानव एवं वर्तमान मानवे आते हैं। मानव विकास के विभिन्न घटक विकास के अन्तर्गत उपार्जित निम्नलिखित विशिष्ट घटकों (लक्षणों) के कारण मानव का विकास हुआ – 1. द्विपाद चलन (Bipedal locomotion) – मानव पिछली टाँगों की सहायता से चलता है। अग्रपाद (भुजाएँ) अन्य कार्यों के उपयोग में आती हैं। पश्चपाद लम्बे और मजबूत होते हैं। 2. सीधी मुद्रा (Erect posture) – इसके लिए निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं – 1. टाँगें लम्बी होती हैं। धड़ छोटा और वक्ष चौड़ा होता है। 2. कशेरुक दण्ड में लम्बर कशेरुकाओं की संख्या 4-5 होती है। त्रिक कशेरुकाएँ समेकित होती हैं। 3. कशेरुक दण्ड में कटि आधान (lumbar curve) होता है। 4. श्रोणि मेखला चिलमचीनुमा (basin shaped) होती है। 5. खोपड़ी कशेरुक दण्ड पर सीधी-सधी होती है महारन्ध्र नीचे की ओर होता है। 3. चेहरा (Face) – मानव का चेहरा उभर कर सीधा रहता है। इसे ऑर्थोग्नेथस (orthognathous) कहते हैं। मानव में भौंह के उभार हल्के होते हैं। 4. दाँत (Teeth) – सर्वाहारी होने के कारण अविशिष्टीकृत होते हैं। इनकी संख्या 32 होती है। मानव पहले शाकाहारी था, बाद में सर्वाहारी हो गया। 5. वस्तुओं को पकड़ने की क्षमता (Grasping ability) – मानव के हाथ वस्तुओं को पकड़ने के लिए रूपान्तरित हो गए हैं। अँगूठा सम्मुख (opposable) हो जाने के कारण वस्तुओं को पकड़ने व उठाने की क्षमता का विकास हुआ। 6. मस्तिष्क व कपाल क्षमता (Brain & Cranial Capacity) – प्रमस्तिष्क तथा अनुमस्तिष्क(cerebrum & cerebellum) सुविकसित होता है। कपाल क्षमता लगभग 1450 cc होती है। शरीर के भार वे मस्तिष्क के भार का अनुपात सबसे अधिक होता है। मस्तिष्क के विकास होने के कारण मानव का बौद्धिक विकास (intelligence) चरम सीमा पर पहुँच गया है। इसमें अक्षरबद्ध वाणी, भावनाओं की अभिव्यक्ति, चिन्तन, नियोजन एवं तर्क संगतता की अपूर्ण क्षमता होती है। 7. द्विनेत्री दृष्टि (Binocular vision) – द्विपादगमन के फलस्वरूप इसमें द्विनेत्री (binocular) तथा त्रिविमदर्शी (stereoscopic) दृष्टि पायी जाती है। 8. जनन क्षमता (Breeding capacity) में कमी, शरीर पर बालों की कमी, घ्राण शक्ति (Olfactory sense) में कमी, श्रवण शक्ति (hearing) में कमी आदि अन्य विकासीय लक्षण हैं। | |
| 3. | निम्नलिखित किस सिद्धान्त को डार्विन ने प्रतिपादित नहीं किया था?(क) पैंजेनेसिस(ख) प्राकृतिक चयन (ग) जनन प्रबल की निरन्तरता(घ) लैंगिक चयन | 
| Answer» (ग) जनन प्रबल की निरन्तरता | |
| 4. | इंटरनेट (अंतरजाल तन्त्र) या लोकप्रिय विज्ञान लेखों से पता कीजिए कि क्या मानवेत्तर किसी प्राणी में आत्म संचेतना थी? | 
| Answer» प्रकृति उपयुक्तता को चुनती है। तथाकथित उपयुक्तता प्राणी की विशिष्टताओं पर आधारित होती है जो वंशानुगत होती है। अत: चयनित होने तथा विकास हेतु निश्चित ही एक आनुवंशिक आधार होना चाहिए। इसका तात्पर्य है कि वे जीवधारी (प्राणी) प्रतिकूल वातावरण में जीवित रहने से बेहतर अनुकूलित होते हैं। अनुकूलन क्षमता वंशानुगत होती है। अनुकूलन के लिए प्राणियों की आत्म संचेतना महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। अनुकूलनशीलता एवं प्राकृतिक चयन को अन्तिम परिणाम उपयुक्तता है। जीववैज्ञानिकों के अनुसार अनेक प्राणियों में मानवेत्तर आत्म संचेतना (self-consciousness) पायी जाती है। | |
| 5. | संयोजक कड़ी से आप क्या समझते हैं। उस जीवाश्म जन्तु का नाम बताइए जो प्रमाणित | करता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है।या आर्किओप्टेरिक्स किन वर्गों की संयोजी कड़ी है? | 
| Answer» जन्तु जगत में कुछ जीव ऐसे हैं जिनके लक्षण दो समीप वर्गों के लक्षणों से मिलते हैं। इनमें से एक वर्ग के जन्तु कम विकसित तथा दूसरे वर्ग के जन्तु अधिक विकसित होते हैं। ऐसे जन्तुओं को संयोजी कड़ियाँ(Connecting links) कहा जाता है। उदाहरण – आर्किओप्टेरिक्स जो पक्षी तथा सरीसृप वर्ग के बीच की कड़ी है। | |
| 6. | डार्विन के चयन सिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में जीवाणुओं में देखे गए प्रतिजैविक प्रतिरोध का स्पष्टीकरण कीजिए। | 
| Answer» रोगजनक जीवाणुओं के विरुद्ध प्रतिजैविक अत्यन्त प्रभावी होते हैं किन्तु किसी नये प्रतिजैविक के विकास के 2 – 3 वर्ष पश्चात् नये प्रतिजैविक प्रतिरोधी, समष्टि में प्रकट हो जाते हैं। कभी-कभी एक जीवाणुवीय समष्टि में एक अथवा कुछ ऐसे जीवाणु उत्परिवर्तन युक्त होते हैं जो उन्हें प्रतिजैविक के लिए प्रतिरोधी बनाते हैं। इस प्रकार के प्रतिरोधी जीवाणु तेजी से गुणन व उत्तरजीविता करने लगते हैं। शीघ्र ही प्रतिरोधिता प्रदान करने वाले जीन दूर-दूर तक फैल जाते हैं व सम्पूर्ण जीवाणु समष्टि प्रतिरोधी बन जाते हैं। कुछ अस्पतालों में प्रतिजैविक प्रतिरोधी पनपते रहते हैं क्योंकि वहाँ प्रतिजैविकों का अत्यधिक प्रयोग होता है। | |
| 7. | प्रजाति की स्पष्ट परिभाषा देने का प्रयास कीजिए। | 
| Answer» प्रजाति आकारिकी रूप से प्रथम व प्रजनन रूप से विलगित व्यष्टियों की एक या ज्यादा प्राकृतिक समष्टि होती है जो एक-दूसरे से अत्यधिक मिलती-जुलती है तथा आपस में एक-दूसरे के बीच स्वतंत्र रूप से प्रजनन करते हैं। | |
| 8. | समाचार-पत्रों और लोकप्रिय वैज्ञानिक लेखों से विकास सम्बन्धी नए जीवाश्मों और मतभेदों की जानकारी प्राप्त कीजिए। | 
| Answer» जीवाश्म (fossils) चट्टानों से प्राप्त आदिकालीन जीवधारियों के अवशेष या चिह्न होते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन को जीवाश्म विज्ञान (Palaeontolgy) कहते हैं अर्थात् जीवाश्म विज्ञान में लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व के जीवधारियों के अवशेषों का अध्ययन करते हैं। जीवाश्म वैज्ञानिकों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि किस काल में किस प्रकार के जीवधारी पृथ्वी पर उपस्थित थे। चट्टानों और पृथ्वी की पर्ती में दबे जीवाश्मों को खोदकर निकाला जाता है। इन चिह्नों या अवशेषों से जीवधारी की संरचना की परिकल्पना की जाती है। चट्टानों की आयु ज्ञात करके जीवाश्मों की अनुमानित आयु भी ज्ञात कर ली जाती है। अतः वैज्ञानिक जीवाश्मों को जैव विकास के सशक्त प्रमाण मानते हैं। जीवाश्मों के सबसे परिचित उदाहरणे आर्किओप्टेरिक्स तथा डायनोसोर हैं। डायनोसोर विशालकाये सरीसृप थे। मीसोजोइक युग में इनका पृथ्वी पर साम्राज्य स्थापित था। इस युग को सरीसृपों का स्वर्ण युग (golden age of reptiles) कहा जाता है। भिन्न आयु की चट्टानों से भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवधारियों के जीवाश्म पाए गए हैं, जो कि सम्भवत: उस चट्टान के निर्माण के दौरान उनमें दब गए। वे विलुप्त जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पृथ्वी पर जीवन को स्वरूप बदलता रहा है। इथोपिया तथा तंजानिया से कुछ मानव जैसी अस्थियों के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। मानव पूर्वजों के जीवाश्मों से मानव विकास का इतिहास ज्ञात हुआ है। | |
| 9. | जैव विकास के पक्ष में जीवाश्म विज्ञान के प्रमाण पर टिप्पणी लिखिए। | 
| Answer» जैव विकास के जीवाश्म विज्ञान से प्रमाण (Gr. Palaeos = ancient, onta – existing things and logous = science) जीवाश्म (fossil) का अध्ययन जीवाश्म विज्ञान (Palaeontology) कहलाता है। जीवाश्म का अर्थ उन जीवों के बचे हुए अंश से है जो अब से पहले लाखों-करोड़ों वर्षों पूर्व जीवित रहे होंगे। जीवाश्म लैटिन शब्द फॉसिलिस (fossilis) से बना है जिसका मतलब है खोदना (dug up)। यह जीव विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है जो जीव विज्ञान (Biology) और भूविज्ञान (Geology) को जोड़ती है। जीवाश्म का बनना 1. अश्मीभूत जीवाश्म (Petrified Fossils) – जीवाश्म मुख्यत: अवसादी शैल (sedimentary rocks) में पाये जाते हैं जो समुद्र या झीलों के तल पर रेत के जमा हो जाने से बनते हैं। मरे हुए जीवों का पूरा शरीर रेत से ढक जाता है तथा धीरे-धीरे यह ठोस पत्थर में परिवर्तित हो जाता है। इसी प्रकार मृत जीवों के विभिन्न भागों का एक स्पष्ट अक्स (चित्र) पत्थर पर बन जाता है इस क्रिया को अश्मीभवन (petrifaction) कहते हैं तथा इस प्रकार बने जीवाश्मों को अश्मीभूत जीवाश्म (perified fossils) कहते हैं। 2. साँचा जीवाश्म (Mould Fossils) – उन जीवाश्मों में जिनमें शरीर का कोई भाग शेष नहीं | रहता केवल शरीर का साँचा मात्र रह जाता है, इसे साँचा जीवाश्म (mould fossils) कहते हैं। 3. अपरिवर्तित जीवाश्म (Unaltered Fossils) – जब जीवधारी का पूरा शरीर बर्फ में भली प्रकार से सुरक्षित रहकर सम्पूर्ण जीवाश्म बनाता है तब इन्हें अपरिवर्तित जीवाश्म (unaltered fossils) कहते हैं। 4. ठप्पा जीवाश्म (Print Fossils) – कभी-कभी मरने के बाद सड़ने से पहले जीव चट्टानों पर अपना ठप्पा बना जाते हैं, ऐसे जीवाश्म को ठप्पा जीवाश्म (print fossils) कहते हैं। जीवाश्म का महत्त्व जीवाश्म के अध्ययन से जीवों की उपस्थिति का पता चलता है। जीवाश्म यह भी दर्शाते हैं कि विभिन्न पौधों एवं जन्तुओं में जैविक विकास किस तरह हुआ। निम्न तथ्यों से इसका पता चलता है – 1. विभिन्न भूवैज्ञानिक स्तरों से प्राप्त जीवाश्म विभिन्न वंशों के होते हैं। 2. सबसे नीचे पाये जाने वाले भूवैज्ञानिक स्तरों में सबसे सरल जीव होते थे, उससे ऊपर पाये जाने वाले स्तरों में क्रमशः जटिल जीवों के जीवाश्म पाये जाते हैं। इससे पता चलता है कि जन्तुओं का विकास निम्न प्रकार से हुआ – एककोशिकीय प्रोटोजोआ → बहुकोशिकीय जन्तु → अकशेरुक जन्तु → कशेरुक जन्तु। 3. विभिन्न स्तरों से प्राप्त जीवाश्मों से पता चलता है कि विभिन्न वर्गों के जीवों के बीच की संयोजी कड़ी भी थी जो जैव विकास की जटिल गुत्थी को सुलझाने में सहायक है। 4. जीवाश्मों के अध्ययन से किसी एक जन्तु की वंशावली (pedigree) का क्रम पता चलता है। 5. जीवाश्मों के आधार पर भूवैज्ञानिकों ने भूवैज्ञानिक समय सारणी बनायी जिसके आधार पर यह कह सकते हैं कि पौधों में पुष्पधारी पौधे (angiosperms) तथा जन्तुओं में स्तनधारी (mammals) सबसे आधुनिक एवं विकसित हैं। | |
| 10. | एनेलिडा एवं आर्थोपोडा संघ तथा सरीसृप एवं पक्षी वर्ग को जोड़ने वाली कड़ियों के नाम लिखिए। | 
| Answer» एनेलिडा एवं आर्थोपोडा संघ को जोड़ने वाली कड़ी-पेरीपैटस सरीसृप एवं पक्षी वर्ग को जोड़ने वाली कड़ी-आर्किओप्टेरिक्स। | |
| 11. | अवशेषी अंग से आप क्या समझते हैं? मनुष्य में पाये जाने वाले एक अवशेषी अंग का नाम लिखिए। | 
| Answer» वे अंग जो हमारे पूर्वजों में क्रियाशील थे किन्तु उनका उपयोग न होने के कारण वे धीरे-धीरे । लुप्त हो गये और केवल अवशेष के रूप में पाये जाते हैं, अवशेषी अंग कहलाते हैं; जैसे- कृमिरूप परिशेषिका, पूँछ कशेरुका आदि। | |