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1.

कांसे की बनी नर्तकी की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है?

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कांसे की बनी नर्तकी की मूर्ति हड़प्पाकालीन नगर मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है।

2.

पुरातत्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौन-सी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?

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पुरातत्त्वविद किसी संस्कृति विशेष के लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए अनेक विधियों का प्रयोग करते हैं। इनमें से दो प्रमुख विधियाँ हैं-शवाधानों का अध्ययन और विलासिता की वस्तुओं की खोज। |

1. शवाधानों का अध्ययन-
शवाधानों का अध्ययन सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका है। हड़प्पाई शवाधानों का अध्ययन करते हुए पुरातत्त्वविदों को अनेक भिन्नताएँ दृष्टिगोचर हुईं। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न पुरास्थलों से जो शवाधान मिले हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि मृतकों को सामान्य रूप से गर्ते अथवा गड्ढों में दफनाया जाता था। किंतु सभी शवाधान गर्तों की बनावट एक जैसी नहीं थी। अधिकांश शवाधान गर्तो की बनावट सामान्य थी, किंतु कुछ सतहों पर ईंटों की चिनाई की गई थी। गर्गों की बनावट में पाई जाने वाली विविधताओं से लगता है कि संभवतः हड़प्पाई समाज में भिन्नताएँ विद्यमान थीं। ईंटों की चिनाई वाले गर्त उच्चाधिकारी वर्ग अथवा संपन्न वर्ग के शवाधान रहे होंगे। शवाधान गर्गों में शव सामान्य रूप से उत्तर-दक्षिण दिशा में रखकर दफनाए जाते थे। कुछ कब्रों में शव मृदभांडों और आभूषणों के साथ दफनाए गए मिले हैं और कुछ में ताँबे के दर्पण, सीप और सुरमे की सलाइयाँ भी मिली हैं। कुछ शवाधानों से बहुमूल्य आभूषण एवं अन्य सामान मिले हैं, तो कुछ से बहुत ही सामान्य आभूषणों की प्राप्ति हुई है। हड़प्पा में एक कब्र में ताबूत भी मिला है।

एक शवाधान में एक पुरुष की खोपड़ी के पास से एक ऐसा आभूषण मिला है जिसे शंख के तीन छल्लों, जैस्पर (एक प्रकार का उपरत्न) के मनकों और सैकड़ों छोटे-छोटे मनकों से बनाया गया था। कालीबंगन में छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्ढों में राखदानियाँ तथा मिट्टी के बर्तन मिले हैं। कुछ गड्ढों में हड्डियाँ एकत्रित मिली हैं। इनसे स्पष्ट होता है कि हड़प्पाई समाज में शव का अंतिम संस्कार विभिन्न तरीकों से, कम-से-कम तीन तरीकों से, किया जाता था। शवों का सावधानीपूर्वक अंतिम संस्कार करने और आभूषण एवं प्रसाधन सामग्री उनके साथ रख देने जैसे तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हड़प्पावासी मरणोपरांत जीवन में विश्वास करते थे। उल्लेखनीय है कि संभवतः हड़प्पाई लोग शवों के साथ बहुमूल्य वस्तुएँ दफनाने में विश्वास नहीं करते थे।

2. विलासिता की वस्तुओं का पता लगाना-
सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं के अस्तित्व का पता लगाने की एक अन्य विधि ‘विलासिता’ की वस्तुओं का पता लगाना है। शवाधानों से उपलब्ध होने वाली पुरावस्तुओं का अध्ययन करके पुरातत्त्वविद उन्हें दो वर्गों अर्थात् उपयोगी और विलास की वस्तुओं में विभक्त कर देते हैं। प्रथम वर्ग अर्थात् उपयोगी वस्तुओं के अंतर्गत दैनिक उपयोग की वस्तुएँ; जैसे–चक्कियाँ, मृभांड, सूइयाँ, झाँवा आदि आती हैं। इन्हें पत्थर अथवा मिट्टी जैसे सामान्य पदार्थों से सरलतापूर्वक बनाया जा सकता था। इस प्रकार की वस्तुएँ सामान्यतः सभी हड़प्पाई पुरास्थलों से प्राप्त हुई हैं। विलासिता की वस्तुओं के अन्तर्गत वे महँगी अथवा दुर्लभ वस्तुएँ सम्मिलित थीं जिनका निर्माण स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों द्वारा किया जाता था।

ऐसी वस्तुएँ मुख्य रूप से हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे महत्त्वपूर्ण नगरों से ही मिली हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पाई समाज में विद्यमान विभिन्नताओं का प्रमुख आधार आर्थिक घटक ही रहे होंगे। उदाहरण के लिए, कालीबंगन में मिले साक्ष्य से पता लगता है कि पुरोहित दुर्ग के ऊपरी भाग में रहते थे और निचले भाग में स्थित अग्नि वेदिकाओं पर धार्मिक अनुष्ठान करते थे। इस प्रकार पुरातत्त्वविद हड़प्पाई समाज की सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण बातों जैसे विभिन्न लोगों की सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, नगरों अथवा छोटी बस्तियों में निवास, खान-पान एवं रहन-सहन और शवाधानों से प्राप्त होने वाली बहुमूल्य अथवा सामान्य वस्तुओं आदि पर विशेष रूप से ध्यान देते हैं।

3.

हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।

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शहरों में रहने वाले हड़प्पा सभ्यता के लोगों की भोजन सामग्रियाँ हैं-

⦁    पेड़-पौधों के उत्पाद,
⦁    अंडे, मांस और मछली,
⦁    विभिन्न प्रकार के अनाज; जैसे-गेहूँ, जौ, चावल, सफ़ेद चना, दालें और तिलहन आदि
⦁    दूध, दही, घी एवं संभवत: शहद। पुरातत्वविदों ने हड़प्पा से प्राप्त जले हुए अनाज के दानों, बीजों और हड्डियों आदि की सहायता से वहाँ के लोगों की खान-पान की आदतों का पता लगाया है।

हड़प्पा के लोग अधिक मात्रा में पेड़-पौधों के उत्पादों और जानवरों से प्राप्त उत्पादों का सेवन करते थे तथा भेड़-बकरी, गाय, भैंस आदि को दूध के लिए पालते थे तथा मछली, हिरन, सांभर बारहसिंगा और सूअर को मांस के लिए पालते थे। पूर्व और प्रौढ़ हड़प्पाई लोगों द्वारा इसी भोजन का उपयोग किया जाता था। गुजरात के लोग दुधारू पशुओं को ज्यादातर पालते थे। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा आदि की खुदाई से कछुओं की भी हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं। सेलखड़ी की बनी नींबू की पत्ती से स्पष्ट है कि लोग नींबू, खजूर, अनार और नारियल जैसे फलों की भी जानकारी रखते थे। बड़े-बड़े घरों में अन्न के भंडार थे। अनाज के संरक्षण से पता चलता है कि हड़प्पा में अन्न का आगमन और निर्गमन शासन द्वारा नियंत्रित रहा होगा। यही नहीं, अनाज विनिमय का एक सबसे महत्त्वपूर्ण साधन रहा होगा।