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1.

‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर महाराणा प्रताप (खंण्डकाव्य के नायक) का चरित्र-चित्रण कीजिए।यामेवाइ-मुकुट खण्डकाव्य के नायक कौन हैं ? उनके चरित्र की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।या‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के जिस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया हो, उसका चरित्रांकन कीजिए।या“महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के एक ऐसे महापुरुष हैं, जिनसे जातीय स्वाभिमान, देशप्रेम व स्वाधीनता के लिए सर्वस्व बलिदान की सीख राष्ट्र की पीढ़ियाँ निरन्तर ग्रहण करती रहेंगी।” मेवाड़-मुकुट के आधार पर स्पष्ट कीजिए।या‘मेवाड़-मुकुट के आधार पर राणा प्रताप के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।या‘मेवाड़-मुकुट के नायक के त्याग और पराक्रम का वर्णन कीजिए।या‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर राणा प्रताप के योगदान का उल्लेख कीजिए।

Answer»

महाराणा प्रताप ‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के नायक हैं। कवि ने इस काव्य में भारतीय इतिहास के विख्यात महापुरुष महाराणा प्रताप के त्याग, संघर्ष, देशभक्ति, उदारता और बलिदान का चित्रण किया है। वे हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर से पराजित होकर अरावली के सघन वनों में भटकते हुए भी अपनी प्यारी मातृभूमि मेवाड़ की स्वतन्त्रता के लिए साधन की खोज करते रहते हैं। राणा प्रताप के इन गुणों को अपनाने हेतु प्रेरित करना ही कवि का उद्देश्य रहा है।

महाराणा प्रताप के चरित्र में निम्नवत् विशेषताएँ हैं—

(1) स्वतन्त्रता-प्रेमी–स्वतन्त्रता के प्रति प्रेम प्रताप के रोम-रोम में व्याप्त है। भारत के सभी शासक अकबर की शक्ति के कारण उसकी अधीनता स्वीकार कर लेते हैं, परन्तु वह जब तक साँस है स्वतन्त्र रहूँगा, दास नहीं हो सकता” कहते हुए पराधीनता स्वीकार नहीं करते और पराजित होकर अरावली की पहाड़ियों में भटकते रहते हैं और मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए युक्ति सोचते रहते हैं

मैं मातृभूमि को अपनी पुनः स्वतन्त्र करूंगा।
या स्वतन्त्रता की वेदी पर लड़ता हुआ मरूसँगा॥

(2) देशभक्त-प्रताप में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ है। वे मेवाड़ की मुक्ति के लिए अरावली की घाटियों में भटकते हुए भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होते। वे अपना सर्वस्व गॅवाकर भी मातृभूमि की रक्षा के लिए कृतसंकल्प हैं। उन्हें मेवाड़ से, वहाँ की धरती से, नदी-पर्वतों से और वनों-मैदानों से भी असीम प्यार है। वे देश की स्वतन्त्रता व सेवा का आमरण व्रत लिये हुए हैं-

मैं स्वदेश के हित जीवित हूँ, उसके लिए मरूंगा।

(3) उदार और भावुक हृदय-प्रताप का हृदय अत्यधिक उदार है। वे शत्रु की कन्या ‘दौलत’ को भी पुत्रीवत् पालते हैं। अपने भाई शक्तिसिंह के अकबर से मिल जाने पर भी वे उसे उसकी मूर्खता ही मानते हैं। और उसे क्षमा कर देते हैं। उनके शब्दों से भाई के प्रति उनकी  सहृदयता झलकती है—मेरा ही है मुझसे दूर कहाँ जाएगा। इसी प्रकार घोड़े चेतक की मृत्यु पर वे बहुत शोक-विह्वल हो उठते हैं। वे अकबर के मित्र पृथ्वीराज और भामाशाह से भी आत्मीयता से मिलते हैं।

(4) स्वाभिमानी–राणा प्रताप में क्षत्रियोचित स्वाभिमान विद्यमान है, इसलिए भामाशाह के द्वारा सैन्य-संग़ठन के लिए दिये जाने वाले अपरिमित धन को स्वीकार करना वे अपने स्वाभिमान के विरुद्ध मानते हैं। राजवंश के द्वारा दिये गये धन को भी स्वीकार करना वे उचित नहीं मानते–

राजवंश ने जिसको जो कुछ दिया, न वापस लँगा।
शेष प्राण हैं अभी, देश-हित हँस-हँस होम करूंगा।

महाराणा प्रताप की नस-नस में स्वाभिमान समस्या हुआ है। उन्हें अपनी जाति, कुल और देश पर अभिमान है। वे जाति और देश पर मर-मिटना भी जानते थे। स्वाभिमान के कारण वह मेवाड़ की मुक्ति के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहे, परन्तु अकबर के सामने सिर झुकाने को किसी भी मूल्य पर तैयार न हुए।

(5) दृढ़-प्रतिज्ञ-राणा प्रताप दृढ़-प्रतिज्ञ हैं। वह अपने संकल्प को बार-बार दुहराते हैं। वे प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक शरीर में श्वास है, मेवाड़ की भूमि को स्वतन्त्र करने का प्रयास करता रहूंगा- .

जब तक तन में प्राण, लड़ेगा, पलभर चैन न लेगा।
सूर्य चन्द्रटल जाये, किन्तु व्रत उसका नहीं टलेगा।

राणा प्रताप अपने संकल्प को पूरा करने के लिए सिन्धु-देश में जाकर धन और सैन्य-संग्रह करना । चाहते हैं और अपनी प्रतिज्ञा को कार्यरूप देने के लिए सदैव चिन्तित रहते हैं।

(6) धैर्यवान् महाराणा निर्भीक, साहसी और धैर्यशाली हैं। वे दुःखमय जीवन व्यतीत करते हैं, फिर भी शत्रु के सामने नहीं झुकते। वे कन्द-मूल-फल खाकर और भूमि पर सोकर भी धैर्य नहीं छोड़ते । स्वयं अरावली पर्वत भी उनकी धीरता के विषय में कहता है–

वह मति-धीरवीर, विपदा से किंचित् नहीं डरेगा।
फिर मेरे अतीत गौरव का, जीर्णोद्धार करेगा।

(7) शरणागतवत्सल और वात्सल्यपूर्ण पिता-राणा प्रताप का हृदय अत्यन्त  उदार एवं विशाल है। वे शत्रुपक्ष की कन्या दौलत को शरण देते हैं और उसे अपनी पुत्री के समान ही पालते हैं। इस सम्बन्ध में कवि के उद्गार हैं-

अरि की कन्या को भी उसने रख पुत्रीवत वन में।
एक नया आदर्श प्रतिष्ठित किया वीर जीवन में।

दौलत के मुख से निकले हुए शब्द राणा प्रताप के उसके प्रति वात्सल्य भाव को प्रकट करते हैं

सचमुच ये कितने महान् हैं कितने गौरवशाली।
इनको पिता बनाकर मैंने बहुत बड़ी निधि पा ली।

(8) पराक्रमी–महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व की ओजस्विता दर्शनीय है। वे युद्धस्थल में शत्रुओं को धराशायी करने में पूर्ण सक्षम हैं। वे अपरिमित सैन्य-शक्तिसम्पन्न अकबर से युद्ध करते हैं तथा उसकी सेना के दाँत खट्टे कर देते हैं। उनके पराक्रम का लोहा स्वयं अकबर भी मानता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि महाराणा प्रताप स्वतन्त्रता-प्रेमी, देशभक्त, उदारहृदय, त्यागी, दृढ़-प्रतिज्ञ, निर्भीक और स्वाभिमानी लौह-पुरुष हैं। वे भारतीय इतिहास में सदैव वन्दनीय रहेंगे।