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1.

‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर काव्य के नायक (प्रमुख पात्र) महात्मा गाँधी का चरित्र-चित्रण कीजिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि गाँधीजी को मुक्ति-दूत क्यों कहा गया है ? उनके चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डालिए।या‘मुक्ति-दूत’ के आधार पर गाँधीजी के लोकोत्तर गुणों का वर्णन कीजिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य में मुक्ति-दूत कौन हैं ? उनके चरित्र की तीन विशेषताएँ बताइए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के पुरुष पात्र के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए।या‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के उस पात्र का चरित्र-चित्रण लिखिए जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है।

Answer»

डॉ० राजेन्द्र मिश्र द्वारा रचित ‘मुक्ति-दूत’ नामक खण्डकाव्य में महात्मा गाँधी के पावन चरित्र का वर्णन किया गया है। गाँधीजी इस खण्डकाव्य के नायक हैं।

प्रस्तुत काव्य के आधार पर महात्मा गाँधी के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं-

(1) अलौकिक दिव्य पुरुष—कवि ने गाँधीजी को ईश्वर का अवतार बताया है जो पृथ्वी पर दु:खों का हरण करने के लिए यदा-कदा आते हैं। जिस श्रेणी में राम, कृष्ण, ईसा मसीह, पैगम्बर, बुद्ध, महावीर आदि हैं, उसी श्रेणी में कवि ने गाँधीजी को  भी रखा है। भारत में अंग्रेजों के अत्याचार बढ़ जाने पर देश को स्वतन्त्र कराने के लिए मानो स्वयं परमात्मा ने महात्मा गाँधी के रूप में जन्म लिया था। इस प्रकार मुक्ति–दूत के नायक महात्मा गाँधी साधारण पुरुष न होकर दिव्य पुरुष थे।

(2) महान् देशभक्त-गाँधीजी महान् देशभक्त थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश को स्वतन्त्र कराने और जनता की सेवा में लगा दिया। उनका हृदय देशवासियों की दुर्दशा देखकर व्यथित हो उठा था। उन्होंने जीवन की अन्तिम श्वास तक देश-सेवा करने का जो प्रण किया था, उसे भली प्रकार निभाया तथा सारा सुख एवं वैभव त्यागकर अपना जीवन भारत को स्वतन्त्र कराने में लगा दिया। अन्त में वे अपने देश के लिए मंगल-कामना करते हैं

रहो खुश भेरे हिन्दुस्तान, तुम्हारा पथ हो मंगल-मूल।
सदा महके वन चन्दन चारु, तुम्हारी अँगनाई की धूल।

(3) हरिजनोद्धारक-गाँधीजी असहाय और दलितों के सहायक थे। उनकी दुर्दशा देखकर उनका हृदय वेदना से भर जाता था। संसार में वे सभी को ईश्वर की सन्तान मानते थे। उनका कहना था

जिन हाथों ने संसार गढ़ा, क्या उसने हरिजन नहीं गढ़े।
तब फिर यह कैसा छुआछूत, किस गीता में पाठ पढ़े॥

गाँधीजी साबरमती आश्रम में हरिजनों को भी रखते थे। आश्रम के प्रबन्धक और  दान-दाताओं द्वारा विरोध करने पर गाँधीजी ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया-

असवर्णो की बस्ती में भी, रह लँगा उनके संग भले।
करके मजदूरी खा लूंगा, सो नँगा सुख से वृक्ष तले॥x                                    x                               x

मैं घृणा द्वेष की यह आँधी, न चलने दूंगा, न चलाऊँगा।
या तो खुद ही मर जाऊँगा, या इसको मार भगाऊँगा ॥

गाँधीजी के जीवन का मुख्य उद्देश्य हरिजनों का उद्धार करना ही था। कवि ने स्पष्ट शब्दों में कहा है-

दलितों के उद्धार हेतु ही, तुमने झण्डा किया बुलन्द।
तीस बरस तक रहे जूझते, अंग्रेजों से अथक अमन्द।

(4) हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक-गाँधीजी साम्प्रदायिक वैर-भाव के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने स्वतन्त्रता-संग्राम में हिन्दू-मुस्लिम दोनों को साथ लिया था। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम एकता का अथक प्रयत्न किया। नोआखाली में हिन्दू-मुस्लिमों के साम्प्रदायिक दंगों के समय उन्होंने प्राण हथेली पर रखकर शान्ति का प्रयास किया था। वे हिन्दू-मुस्लिम को एक डाली पर खिले फूल समझते थे–

मुझे लगते हिन्दू-मुस्लिम, एक ही डाली के दो फूल।
एक ही माटी के दो रूप, एक ही जननी के दो लाल॥

(5) आर्थिक समृद्धि के पोषक–गाँधीजी ने भारत की दीन-हीन दशा को सुधारने के लिए स्वदेशी वस्त्रों का निर्माण एवं विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, खादी एवं चरखे को प्रोत्साहन, सादा जीवन और उच्च विचार की प्रेरणा, मादक द्रव्यों का त्याग आदि अनेक प्रयत्न किये। उनका कहना था

छोटा बच्चा भी भारत का है, एक अगर नंगा भूखा।
गाँधी को चैन कहाँ होगा, वह भी सो जाएगा भूखा॥

(6) मातृभक्त-गाँधीजी माँ के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति-भावना रखते हैं। माँ को  स्वप्न में देखने पर वे सोचते हैं—’माँ जैसी कहीं नहीं ममता’ और माँ की प्रेरणा से ही देश-सेवा में जुट जाते हैं। गाँधीजी ने उदारता, दया, परोपकार, सत्यती आदि गुणों को अपनी माता से सीखा था।

(7) अहिंसा और करुणा की मूर्ति-गाँधीजी अहिंसा के पुजारी और करुणा को साकार मूर्ति थे। अंग्रेजों के संकट के समय भी वे उन कठोर शासकों से लाभ उठाना न्यायसंगत नहीं मानते थे। भारत की दयनीय दशा देखकर उनके हृदय में करुणा का सागर लहराने लगता था।

(8) भारत के मुक्ति-दूत-महात्मा गाँधी ने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम का कुशल नेतृत्व किया। उनके तीस वर्ष के सतत प्रयासों से भारत की मुक्ति का स्वप्न पूर्ण हुआ। उनके कुशल नेतृत्व में परतन्त्रता की श्रृंखला टूटकर छिन्न-भिन्न हो गयी और भारत 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतन्त्र हो गया। अतः निश्चित ही वे सच्चे अर्थों में भारत के मुक्ति–दूत थे।

(9) सम्मान और पद के निर्लोभी-गाँधीजी का त्याग एवं बलिदान एक आदर्श है। उन्होंने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए जीवनभर अनेक यातनाएँ भोगीं और संघर्ष करते रहे। भारत के स्वाधीन होने पर जब उनका लक्ष्य पूर्ण हो गया, तब उन्होंने संघर्षपूर्ण राजनीति से संन्यास ग्रहण कर लिया।

(10) मानवीय गुणों से भरपूर-गाँधीजी का चरित्र अनेक गुणों का भण्डार था।  उनमें सत्यता, दया, परोपकारे, करुणा, अहिंसा तथा देशभक्ति के गुण कूट-कूटकर भरे थे। वे विश्व-बन्धुत्व तथा भाईचारे की भावना से ओत-प्रोत थे तथा सभी धर्मों के प्रति आदर भाव रखने वाले थे।

इस प्रकार गाँधीजी देवतुल्य मानव, स्वतन्त्रता के अग्रदूत, हरिजनों के उद्धारक, भारत को आर्थिक समृद्धि के पोषक, निर्लोभी एवं अहिंसा-प्रेमी थे। वे सत्य, अहिंसा, करुणा, प्रेम, उदारता, सहानुभूति, समता, देश-प्रेम आदि मानवीय गुणों के साकार रूप थे। वास्तव में वे भारत में एक अलौकिक पुरुष के रूप में अवतरित हुए।