Explore topic-wise InterviewSolutions in .

This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

द्रवरागी एवं द्रवविरागी सॉल क्या होते हैं? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। द्रवविरोधी सॉल आसानी से स्कन्दित क्यों हो जाते हैं?

Answer»

द्रवरागी सॉल (Lyophilic Sols) – द्रवरागी शब्द का अर्थ है- द्रव को स्नेह करने वाला। गोंद, रबड़आदि पदार्थों को उचित द्रव (परिक्षेपण माध्यम) में मिलाने पर सीधे ही प्राप्त होने वाले कोलॉइडी सॉल द्रवरागी कोलॉइड कहलाते हैं। सॉल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यदि परिक्षेपण माध्यम को परिक्षिप्त प्रावस्था से अलग कर दिया जाए (माना वाष्पीकरण द्वारा) तो सॉल को केवल परिक्षेपण माध्यम के साथ मिश्रित करके पुन: प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे सॉल उत्क्रमणीय सॉल (reversible sols) भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त ये सॉल पर्याप्त स्थायी होते हैं एवं इन्हें आसानी से स्कन्दित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार के सॉल के उदाहरण गोंद, जिलेटिन, स्टार्च, रबड़ आदि हैं।

द्रवविरागी या द्रवविरोधी सॉल (Lyophobic Sols) – द्रवविरागी शब्द का अर्थ है- द्रव से घृणा करने वाला। धातुएँ एवं उनके सल्फाइड आदि पदार्थ केवल परिक्षेपण माध्यम में मिश्रित करने से कोलॉइडी सॉल नहीं बनाते। इनके कोलॉइडी सॉल केवल विशेष विधियों द्वारा ही बनाए जा सकते हैं। ऐसे सॉल द्रवविरांगी सॉल कहलाते हैं। ऐसे सॉल को विद्युत अपघट्य की थोड़ी सी मात्रा मिलाकर, गर्म करके या हिलाकर आसानी से अवक्षेपित (या स्कन्दित) किया जा सकता है. इसलिए ये स्थायी नहीं होते। इसके अतिरिक्त एक बार अवक्षेपित होने के बाद ये केवल परिक्षेपण माध्यम के मिलाने मात्र से पुन: कोलॉइडी सॉल नहीं देते। अत: इनको अनुक्रमणीय सॉल (irreversible sols) भी कहते हैं। द्रवविरागी सॉल के स्थायित्व के लिए स्थायी कारकों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के सॉल के उदाहरण गोल्ड, सिल्वर, Fe(OH)3, As2O3 आदि हैं।

द्रवविरोधी सॉल का स्कन्दन (Coagulation of Lyophobic Sols) – द्रवविरोधी सॉल का स्थायित्व केवल कोलॉइडी कणों पर आवेश की उपस्थिति के कारण होता है। यदि आवेश हटा दिया जाए अर्थात् । उचित विद्युत-अपघट्य मिला दिया जाए तो कण एक-दूसरे के समीप आकर पुंजित हो जाएँगे अर्थात् ये स्कन्दित होकर नीचे बैठ जाएँगे। दूसरी ओर द्रवरागी सॉल का स्थायित्व कोलॉइड कणों के आवेश के साथ-साथ उनके विलायकयोजन (solvation) के कारण होता है। इन दोनों कारकों को हटाने के पश्चात् ही इन्हें स्कन्दित किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि द्रवविरोधी सॉल आसानी से स्कन्दित हो जाते हैं।

2.

निम्नलिखित परिस्थितियों में क्या प्रेक्षण होंगे? 1. जब प्रकाश किरण पुंज कोलॉइडी सॉल में से गमन करता है। 2. जलयोजित फेरिक ऑक्साइड सॉल में NaCl विद्युत-अपघट्य मिलाया जाता है। 3. कोलॉइडी सॉल में से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है।

Answer»

1. प्रकाश का प्रकीर्णन होता है (टिंडल प्रभाव) 

2. स्कन्दन 

3. कोलॉइडी कण गति करते हैं (वैद्युत-कण संचलन)।

3.

आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण क्या है?

Answer»

आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण वह उत्प्रेरकीय क्रिया होती है जो उत्प्रेरक की छिद्र संरचना तथा अभिकारक/उत्पाद अणुओं के आकार पर निर्भर करती है। हाइड्रोकार्बनों के भंजन में जीओलाइट (ZSM- 5) का उपयोग आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण का उदाहरण है।

4.

इमल्शनों (पायस) के चार उपयोग लिखिए।

Answer»

इमल्शनों (पायस) के चार उपयोग निम्नलिखित हैं – 

1. फेन प्लवन प्रक्रम द्वारा सल्फाइड अयस्क का सान्द्रण इमल्सीफिकेशन पर आधारित होता है। 

2. साबुन तथा डिटर्जेन्ट की शोधन क्रिया गन्दगी तथा साबुन के विलयन के मध्य इमल्शन बनने के कारण ही होती है। 

3. दूध जल में वसा का इमल्शन होता है। 

4. विभिन्न सौन्दर्य प्रसाधन; जैसे- क्रीम, हेयर डाई, शैम्पू आदि, अनेक औषधियाँ तथा लेप आदि इमल्शन होते हैं। इमल्शन के रूप में ये अधिक प्रभावी होते हैं।

5.

रसोवशोषण के दो अभिलक्षण दीजिए|

Answer»

1. रसोवशोषण अतिविशिष्ट होता है। 

2. रसोवशोषण में यौगिक बनने के कारण इसकी प्रकृति अनुत्क्रमणीय होती है।

6.

अपने क्रिस्टलीय रूपों की तुलना में चूर्णित पदार्थ अधिक प्रभावी अधिशोषक क्यों होते हैं?

Answer»

क्रिस्टलीय रूपों की तुलना में चूर्णित पदार्थ का पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होता है। पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होने पर अधिशोषण अधिक होता है।

7.

स्वर्ण संख्या या स्वर्णाक की परिभाषा दीजिए।

Answer»

रक्षी कोलॉइड की शक्ति को स्वर्ण संख्या (gold number) से व्यक्त किया जाता है। स्वर्ण संख्या की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जाती है – 

किसी द्रव-स्नेही कोलॉइड की स्वर्ण संख्या उसका मिलीग्राम में वह भार है जो गोल्ड सॉल के 10 मिली में उपस्थित होने पर 10% NaCl विलयन के 1 मिली को डालने पर सॉल के लाल रंग से नीले रंग में परिवर्तित होने को रोकने के लिए पर्याप्त होता है।”

स्वर्ण संख्या, रक्षी सॉल की शक्ति व्यक्त करने का प्रतीक है। स्वर्ण संख्या जितनी अधिक होगी, सॉल की स्कन्दन शक्ति उतनी ही कम होगी। कम स्वर्ण संख्या होने पर सॉल की स्कन्दन शक्ति अधिक होगी।

8.

आप हार्डीशुल्जे नियम में संशोधन के लिए क्या सुझाव दे सकते हैं?

Answer»

हार्डी- शुल्जे नियम के अनुसार, आयन जिन पर कोलॉइडी कणों के विपरीत आवेश होता है । कोलॉइडी कणों को उदासीन करके उनका स्कन्दन करते हैं लेकिन वास्तव में इन आयनों युक्त सॉल को भी स्कन्दन होता है। चूंकि कण इनके आवेश को उदासीन कर देते हैं। इन परिस्थितियों में हार्डी-शुल्जे नियम को निम्नवत् रूपान्तरित किया जा सकता है – 

जब दो विपरीत आवेशित सॉल की उपयुक्त मात्राओं को मिश्रित किया जाता है तब वे आवेशों को उदासीन करके अवक्षेपित हो जाते हैं।

9.

अधिशोषण, अधिशोष्य तथा अधिशोषक से आप क्या समझते हैं? 

Answer»

अधिशोषण– किसी ठोस अथवा द्रव के पृष्ठ द्वारा किसी पदार्थ के अणुओं को आकर्षित और धारित करने की परिघटना जिसके कारण अणुओं की पृष्ठ पर सान्द्रता में वृद्धि हो जाती है, अधिशोषण कहलाती है। 

अधिशोष्य– अणुक स्पीशीज या पदार्थ जो कि पृष्ठ पर सान्द्रित या संचित होता है, अधिशोष्य कहलाता है। 

अधिशोषक-अणुक स्पीशीज या पदार्थ जिसके पृष्ठ पर अधिशोषण होता है, अधिशोषक कहलाता है।

10.

स्वर्ण संख्या सम्बन्धित है –(i) द्रव-स्नेही कोलॉइड से (रक्षी कोलॉइड से) (ii) द्रव-विरोधी कोलॉइड से (iii) पायस से (iv) जैल से

Answer»

(i) द्रव-स्नेही कोलॉइड से (रक्षी कोलॉइड से)

11.

जिलेटिन व गोंद के स्वर्णाक क्रमशः 0.005 तथा 0.10 हैं। इन रक्षी कोलॉइडों में किसकी रक्षी क्षमता अधिक है?

Answer»

रक्षी कोलॉइडों की रक्षी क्रिया उनका स्वर्णाक घटने के साथ बढ़ती है, अर्थात् एक अच्छे रक्षी कोलॉइड का स्वर्णाक कम होता है। अतः जिलेटिन की रक्षी क्षमता अधिक होगी।

12.

द्रव-विरोधी सॉल बनाने की संघनन विधि का वर्णन कीजिए।

Answer»

संघनन विधि में पदार्थ के लघु अणुओं या आयनों को विभिन्न भौतिक और रासायनिक विधियों द्वारा परस्पर संयुक्त कराकर कोलॉइडी साइज के कण बनाये जाते हैं। एक प्रमुख संघनन विधि ऑक्सीकरण विधि है। उदाहरणार्थ– हाइड्रोजन सल्फाइड गैस (H2S) के जलीय विलयन का सल्फर डाइऑक्साइड द्वारा ऑक्सीकरण करके सल्फर का कोलॉइडी विलयन (सल्फर सॉल) बनाया जा सकता है। | 

2H2S + SO2 → 3s + 2H2O

13.

द्रव ऐरोसॉल है –(i) फेनित क्रीम (ii) धुआँ (iii) दूध (iv) धुन्ध

Answer»

(iv) धुन्ध अतिलघु

14.

अवक्षेप का मात्रात्मक आकलन करने से पूर्व उसे जल से धोना आवश्यक क्यों है?

Answer»

अवक्षेप बनाने के लिए मिश्रित विद्युत-अपघट्यों की कुछ मात्रा अवक्षेप के कणों की सतह पर अधिशोषित बनी रहती है, अतः अवक्षेप का मात्रात्मक आकलन करने से पूर्व उसे जल से धोना आवश्यक होता है।

15.

द्रव-स्नेही तथा द्रव-विरोधी कोलॉइडों में कौन अधिक स्थायी है? दोनों के एक-एक उदाहरण दीजिए। 

Answer»

द्रव- स्नेही कोलॉइड अधिक स्थायी होते हैं। द्रव-स्नेही कोलॉइड के उदाहरण- गोंद, जिलेटिन आदि। द्रव-विरोधी कोलॉइड फेरिक हाइड्रॉक्साइड Fe (OH)3 सॉल हैं।

16.

ठोस ऐरोसॉल क्या है? एक उदाहरण दीजिए। 

Answer»

जब परिक्षिप्त अवस्था ठोस तथा परिक्षेपण माध्यम गैस होता है तो उस कोलॉइडी विलयन को ठोस ऐरोसॉल कहते हैं; जैसे-धुआँ, ज्वालामुखी का लावा आदि।

17.

गॅदले पानी को साफ करने के लिए फिटकरी का प्रयोग क्यों किया जाता है? 

Answer»

आँदले पानी में मिट्टी, रेत आदि की अशुद्धियाँ कोलॉइडी कणों के रूप में उपस्थित रहती हैं। ये कोलॉइडी कण ऋणावेशित होते हैं। कोलॉइडी कणों की अशुद्धि दूर करने के लिए जल में फिटकरी (पोटाशएलम) डाली जाती है। फिटकरी [K2SO4 . Al2(SO4)3 . 24H2O] जल में घुलकर K+ , Al3+ तथा SO2-4आयनों में वियोजित हो जाती है। K+ और Al3+ द्वारा ऋणावेशित कणों का स्कन्दन हो जाता है। और वे जल में नीचे बैठ जाते हैं। इस प्रकार गॅदला पानी साफ हो जाता है।

18.

किसी विलायक में परिक्षिप्त पदार्थ के कणों का आकार 50 Å से 2000 Å की परास में है। विलयन होगा –(i) निलम्बन (ii) वास्तविक विलयन (iii) कोलॉइडी विलयन (iv) संतृप्त विलयन

Answer»

(iii) कोलॉइडी विलयन

19.

धुएँ से कार्बन के कणों को किस प्रकार पृथक करते हैं ? 

Answer»

धुएँ को कार्बन के कोलॉइडी कणों से मुक्त करने के लिए कॉटेल धुआँ अवक्षेपक प्रयुक्त किया जाता है। इस अवक्षेपक में एक स्तम्भ में धातु का एक गोला लटका रहता है जिसे उच्च वोल्टता पर धनावेशित किया जाता है। धुएँ को अवक्षेपक में से प्रवाहित करने पर उसमें उपस्थित कार्बन के ऋणावेशित कोलॉइडी कण धनावेशित गोले के सम्पर्क में आकर निरावेशित हो जाते हैं और विद्युत उदासीन कण एक-दूसरे से मिलकर अवक्षेप के रूप में नीचे बैठ जाते हैं तथा कार्बन-कणों से मुक्त वायु बाहर निकल जाती है।

20.

कोहरा निम्न कोलॉइडी अवस्था का उदाहरण है –(i) गैस में द्रव परिक्षिप्त (ii) गैस में गैस परिक्षिप्त (iii) गैस में ठोस परिक्षिप्त (iv) द्रव में ठोस परिक्षिप्त

Answer»

(i) गैस में द्रव परिक्षिप्त

21.

धुएँ में परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम लिखिए। 

Answer»

परिक्षिप्त प्रावस्था ठोस, परिक्षेपण माध्यम गैस।

22.

परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम को परिभाषित कीजिए।

Answer»

वह पदार्थ जो कोलॉइडी कणों के रूप में परिक्षेपण माध्यम में वितरित रहता है, परिक्षिप्त प्रावस्था का निर्माण करता है जबकि वह माध्यम जिसमें पदार्थ कोलॉइडी कणों के रूप में वितरित रहता है, परिक्षेपण माध्यम कहलाता है। अतः कोलॉइडी विलयन = परिक्षिप्त प्रावस्था + परिक्षेपण माध्यम

23.

पायस कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक का उल्लेख कीजिए। 

Answer»

परिक्षिप्त प्रावस्था की प्रकृति के आधार पर पायसों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है – 

1. जल में तेल (o/w) प्रकार के पायस – इस प्रकार के पायसों में तेल परिक्षिप्त प्रावस्था के रूप में कार्य करता है जबकि जल परिक्षेपण माध्यम की भाँति कार्य करता है। इस प्रकार के पायस के उदाहरण दूध और वैनिशिंग क्रीम हैं। दूध में द्रव वसा जल में परिक्षिप्त रहती है। 

2. तेल में जल (w/o) प्रकार के पायस – इस प्रकार के पायसों में जल परिक्षिप्त प्रावस्था की तरह कार्य करता है जबकि तेल परिक्षेपण माध्यम की भाँति कार्य करता है। इस प्रकार के पायस का मुख्य उदाहरण कॉड-लीवर तेल (cod liver oil) है। मक्खन (butter) और कोल्ड क्रीम (cold cream) भी इसी प्रकार के पायस हैं।

स्पष्ट है कि पायस का प्रकार दोनों द्रवों को सापेक्षिक मात्राओं पर निर्भर करता है। जल अधिक होने पर पायस जल में तेल प्रकार का पायस होता है जबकि तेल अधिक होने पर पायस तेल में जल प्रकार का पायस होता है। पायस का प्रकार पायसीकारक की प्रकृति पर भी निर्भर करता है। उदाहरणार्थ– पायसीकारक के रूप में विलेय साबुन की उपस्थिति से जल में तेल प्रकार के पायस का निर्माण होता है। जबकि अविलेय साबुन तेल में जल प्रकार के पायसों का निर्माण करते हैं।

24.

पदार्थ जो उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को नष्ट अथवा कम कर देता है, कहलाता है – (i) ऋणात्मक उत्प्रेरक (ii) मंदक (iii) वर्धक (iv) उत्प्रेरक विष

Answer»

(iv) उत्प्रेरक विष

25.

समझाइए कि As2S3 के कोलॉइडी कण ऋणावेशित क्यों होते हैं? 

Answer»

आर्सेनियस ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड की अभिक्रिया से बने आर्सेनियस सल्फाइड के कण विलयन से सल्फाइड आयनों को पृष्ठ पर अधिशोषित करके ऋणावेशित हो जाते हैं। सल्फाइड आयन (S) प्राथमिक अधिशोषित स्तर और हाइड्रोजन आयन (H+) द्वितीयक विसरित स्तर बनाते हैं। 

[As2S3]s2- : 2H+ 

इसलिए As2S3 के कोलॉइडी कण ऋणावेशित हो जाते हैं।

26.

आर्सेनियस सल्फाइड सॉल के स्कन्दन के लिए निम्नलिखित को उनकी घटती हुई स्कन्दन क्षमता के क्रम में लिखिए – KCl, AlCl3, Na3PO4 , Mg(NO3)2

Answer»

आर्सेनियस सल्फाइड सॉल एक ऋणात्मक सॉल है जिसको स्कन्दित करने में वैद्युत-अपघट्य के धनायन प्रयुक्त होंगे; अत: हार्डी-शुल्जे के नियमानुसार इन वैद्युत-अपघट्यों के द्वारा स्कन्दन क्षमता का घटता क्रम है – AlCl3 > Mg(NO3)2 > KCl > Na3PO4

27.

निम्नलिखित प्रकार के उत्प्रेरणों में से किसे अधिशोषण सिद्वान्त द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है?(i) समांगी उत्प्रेरण (ii) विषमांगी उत्प्रेरण (iii) एन्जाइम उत्प्रेरण (iv) अम्ल-क्षार उत्प्रेरण

Answer»

(ii) विषमांगी उत्प्रेरण

28.

विषमांगी उत्प्रेरण में अधिशोषण की क्या भूमिका है?

Answer»

विषमांगी उत्प्रेरण में सामान्यत: ठोस अधिशोषक (उत्प्रेरक) तथा अभिकारक गैसें होती हैं। अभिक्रिया उत्प्रेरक की सतह पर होती है जहाँ अभिकारक अणु (अधिशोष्य) रासायनिक अधिशोषित होते हैं।

29.

किसी ठोस पर गैस के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?

Answer»

1. अधिशोष्य तथा अधिशोषक की प्रकृति 

2. अधिशोषक का विशिष्ट सतही क्षेत्रफल तथा इसका सक्रियण 

3. गैस का दाब 

4. तापमान।

30.

ब्राउनियन गति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 

Answer»

कोलॉइडी सॉल में कोलॉइडी कणों की लगातार टेढ़ी-मेढ़ी गति को ब्राउनियन गति कहा जाता है। ब्राउनियन गति कोलॉइडी कणों के आकार और सॉल की श्यानता पर निर्भर करती है। कोलॉइडी कणों का आकार जितना छोटा और श्यानता जितनी कम होगी, ब्राउनियन गति उतनी ही तीव्र होगी। यह कोलॉइड की प्रकृति पर निर्भर नहीं करती है। कोलॉइडी कणों पर गति करते हुये परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के असमान प्रहारों के कारण ब्राउनियन गति उत्पन्न होती है।

परिक्षेपण माध्यम के अणु गति करते हुए सभी दिशाओं में कोलॉइडी कणों से लगातार टकराते हैं जिससे कोलॉइडी कणों में गृति आ जाती है। चूंकि कणों पर होने वाली टक्करों के बल असमान होते हैं इस कारण कोलॉइडी कण किसी विशेष दिशा में गति करते हैं। जैसे ही एक कण किसी निश्चित दिशा में गति करता है वैसे ही माध्यम के अन्य अणु इससे टकराते हैं जिससे कण अपने गति करने की दिशा में परिवर्तन कर लेता है। यह प्रक्रम लगातार चलने के कारण कण टेढ़े-मेढ़े पथ पर गति करता है। कोलॉइडी कणों के आकार बढ़ने पर ब्राउनियन गति का मान कम हो जाता है। यही कारण है कि निलम्बन (suspension) ब्राउनियन गति प्रदर्शित नहीं करते हैं।

31.

सूक्ष्म विभाजित अवस्था में उत्प्रेरक, ठोस अवस्था से अधिक क्रियाशील क्यों होते हैं? समझाइए। 

Answer»

इसका कारण है कि उत्प्रेरक के जितने अधिक टुकड़े होंगे उतनी ही मुक्त संयोजकताएँ अधिक बढ़ेगी, जिनके कारण उसकी कार्यक्षमता अधिक होगी।

32.

हाड-शुल्जे नियम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।“आयनों का स्कन्दन प्रभाव आयनों की संयोजकता पर निर्भर करता है। इस कथन को उदाहरण देकर समझाइए। 

Answer»

अधिक मात्रा में वैद्युत-अपघट्य मिलाकर किसी कोलॉइडी विलयन की स्कन्दन (अवक्षेपण) क्रिया के लिए हार्डी-शुल्जे (Hardy – Schulze) ने निम्नलिखित दो नियम दिये, जिन्हें हार्डी-शुल्जे नियम कहते हैं – 

1. कोलॉइडी विलयन के स्कन्दन के लिए मिलाये गये वैद्युत-अपघट्य के वे आयन सक्रिय होते हैं, जिनका आवेश कोलॉइडी कणों के आवेश के विपरीत होता है। 

2. सॉल को स्कन्दित करने वाले आयन की शक्ति आयन की संयोजकता पर निर्भर होती है। समान संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दित करने की शक्ति तथा मात्रा समान होती है। अधिक संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दन क्षमता अधिक होती है, अर्थात् हार्डी-शुल्जे नियम के अनुसार, ‘आयनों की स्कन्दन शक्ति आयन की संयोजकता बढ़ने के साथ बढ़ती है।

यदि As2S3 सॉल में NaCl, BaCl2 तथा AlCl3 वैद्युत-अपघट्य अलग-अलग मिलाये जाएँ तो इनके Na+, Ba2+ तथा Al3+ आयन ऋण आवेशित As2S3 सॉल को अवक्षेपित कर देते हैं। हार्डी-शुल्जे के नियमानुसार, अधिक संयोजकता वाला आयन अधिक स्कन्दन करता है। अत: Al3+ , Ba2+ तथा Na+आयनों की स्कन्दन क्षमता का क्रम निम्नलिखित होगा – Al3+ > Ba2+ > Na+

अत: इन आयनों से As pss के समान मात्रा में अवक्षेपण में NaCl, BaCl2 तथा AlCl3 की मात्रा का निम्नलिखित क्रम होगा – NaCl > BaCl2 > AlCl3 

इसी प्रकार, धनावेशित सॉल के प्रति ऋणायनों की स्कन्दन शक्ति निम्न प्रकार घटती है – Fe(CN)4-6 > PO3-4 > SO2-4 > Cl

33.

उत्प्रेरण का अधिशोषण सिद्धान्त उपयोगी है – (i) ठोस उत्प्रेरकों में (ii) गैसीय उत्प्रेरकों में (iii) द्रव उत्प्रेरकों में (iv) सभी में

Answer»

(i) ठोस उत्प्रेरकों में

34.

पेप्टीकरण की क्रिया को एक उदाहरण द्वारा समझाइए। 

Answer»

पेप्टीकरण– पेप्टीकरण की विधि स्कन्दन के विपरीत है। इसमें ताजे बने हुए अवक्षेप को किसी वैद्युत-अपघट्य के तनु विलयन के साथ हिलाने पर कोलॉइडी विलयन प्राप्त होता है; जैसे- फेरिक हाइड्रॉक्साइड के ताजे अवक्षेप में फेरिक क्लोराइड का विलयन मिलाने पर लाल रंग का Fe(OH)3 का कोलॉइडी विलयन बनता है।

35.

वास्तविक विलयन तथा कोलॉइडी विलयन में विभेद कीजिए। 

Answer»

वास्तविक विलयन– यह एक समांग तन्त्र है जिसमें विलेय तथा विलायक के कणों का आकार बराबर होता है। इन कणों का व्यास 10-7 सेमी से भी कम होता है। इन्हें अति सूक्ष्मदर्शी (ultra-microscope) द्वारा भी नहीं देखा जा सकता। 

कोलॉइडी विलयन – यह एक विषमांग तन्त्र है, कोलॉइडी विलयन में भिन्न-भिन्न व्यासों के कण उपस्थित होते हैं। इस विलयन में विलेय के कणों का व्यास 10-4 से 10-7 सेमी होता है और विलायक के कणों का व्यास 10-7 से 10-8 सेमी होता है, जिन्हें अति सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा जा सकता है।

36.

एन्जाइम उत्प्रेरकों तथा साधारण उत्प्रेरकों में क्या अन्तर है? एक उदाहरण देकर समझाइए।

Answer»

एन्जाइम उत्प्रेरक अभिक्रिया के लिए ताप का एक परिसर होता है जिस पर इनकी क्रियाशीलता अधिकतम होती है। सामान्यत: यह 25 – 35°C के मध्य है। 70°C पर ये निष्क्रिय हो जाते हैं। साधारण उत्प्रेरकों की क्रियाशीलता 70°C के ऊपर ही प्रभावशाली होती है; जैसे- Al2O3 के लिए अनुकूलतम ताप 250°C है।

37.

कोलॉइड क्या हैं? क्रिस्टलाभ से ये किस प्रकार भिन्न हैं? 

Answer»

कोलॉइड-जो पदार्थ सरलता से जल में नहीं घुलते और घुलने पर समांग विलयन नहीं बनाते तथा जिनके विलयन चर्मपत्र द्वारा नहीं छनते कोलॉइड या कोलॉइडी विलयन कहलाते हैं; जैसे-दूध, मक्खन, दही, बादल, धुआँ, आइसक्रीम, गोंद, सोडियम पामीटेट, रक्त आदि।

38.

क्रिस्टलाभ, कोलॉइड से भिन्न है –(i) वैद्युतीय व्यवहार में (ii) कणों की प्रकृति में (iii) कणों के आकार में (iv) विलेयता में

Answer»

(iii) कणों के आकार में