InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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निम्न में से कौन-सी क्रिया अर्थशास्त्र की दृष्टि से ‘श्रम’ है? (a) डकैती(b) तस्करी(c) चैन खींचना(d) इनमें से कोई नहीं |
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Answer» (d) इनमें से कोई नहीं |
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निम्न में से कौन-सी क्रिया अर्थशास्त्र की दृष्टि से ‘श्रम‘ है?(a) तस्करी,(b) भीख माँगना(c) अध्यापक द्वारा अपने पुत्र को पढ़ाना(d) उपरोक्त में से कोई नहीं |
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Answer» (d) उपरोक्त में से कोई नहीं |
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श्रम उत्पत्ति का ….. साधन होता है।(a) सक्रिय(b) निष्क्रिय(c) शारीरिक(d) मानसिक |
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Answer» सही विकल्प है (a) सक्रिय |
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पूँजी की अपेक्षा श्रम अधिक गतिशील होता है।नहीं होता है। |
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Answer» पूँजी की अपेक्षा श्रम अधिक गतिशील नहीं होता है। |
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श्रमिकों की कार्यक्षमता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है/नहीं पड़ता। |
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Answer» श्रमिकों की कार्यक्षमता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है। |
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इंजीनियर का कार्य मानसिक/शारीरिक श्रम है। |
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Answer» मानसिक श्रम है। |
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श्रम की माँग प्रत्यक्ष/परोक्ष होती है। |
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Answer» परोक्ष होती है। |
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अध्यापक का श्रम अनुत्पादक है/नहीं है। |
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Answer» अध्यापक का श्रम नहीं है। |
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श्रम नाशवान है/नहीं है। |
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Answer» श्रम नाशवान है। |
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श्रम के प्रकार बताइए। |
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Answer» श्रम का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है ⦁ कुशल व अकुशल श्रम |
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श्रम की दो मर्यादाएँ या मूल तत्त्वों को लिखिए। |
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Answer» श्रम की दो प्रमुख मर्यादाएँ या मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं ⦁ धनोपार्जन के उद्देश्य से की जाने वाली समस्त क्रियाओं को श्रम में सम्मिलित किया जाता है। ⦁ श्रम में केवल मानवीय प्रयत्नों को ही सम्मिलित किया जाता है, मशीनी कार्य को नहीं। |
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| 12. |
श्रम की कार्यक्षमता से आप क्या समझते हैं? यह किन घटकों पर निर्भर होती है? अथवा‘श्रम की कार्यक्षमता से आप क्यों समझते हैं? श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए। |
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Answer» श्रम की कार्यक्षमता से आशय कार्यक्षमता का शाब्दिक अर्थ ‘कार्य करने की शक्ति से होता है। श्रम की कार्यक्षमता (Efficiency of Labour) से तात्पर्य किसी श्रमिक की कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य करने की योग्यती या क्षमता से होता है। श्रम की कार्यक्षमता सापेक्षित होती है। श्रम की माँग परोक्ष होती है। कार्यक्षमता का अनुमान दो व्यक्तियों की तुलना करके लगाया जा सकता है। मौरलैण्ड के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता से हमारा अभिप्राय किसी निश्चित मात्रा में लगाए गए श्रम की अपेक्षा उत्पादित सम्पत्ति के अधीन होने से है।” प्रो. निर्वान एवं शर्मा के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता का अर्थ किसी श्रमिक की उस क्षमता से है जिसके द्वारा वह अधिक उत्तम वस्तु की, अधिक मात्रा में वस्तु का या दोनों का उत्पादन करता है।” श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक निम्नलिखित हैं- 1. पुरस्कार व उन्नति की आशा यदि श्रमिक को कार्य करने से उचित मजदूरी, पुरस्कार या पदोन्नति मिलती है, तो श्रमिक अधिक कुशलता से कार्य को सम्पन्न करते हैं। कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की कमी होती है। 2. शिक्षा तथा प्रशिक्षण एक शिक्षित व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक, अप्रशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य करता है। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कार्य को शीघ्र समझकर सम्पन्न कर देता है। 3. प्रबन्धकों की योग्यता व व्यवहार प्रबन्धकों की व्यवहार कुशलता व योग्यता का श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। प्रबन्धकों के अच्छे व्यवहार से श्रमिक योग्यतानुसार नवीन तकनीकी कार्यों को उचित रूप से पूर्ण कर सकते हैं। 4. पैतृक व जातीय गुण श्रमिकों की कार्यकुशलता पर उसके पैतृक गुणों व जातीय गुणों का भी प्रभाव पड़ता है। इन गुणों का उनकी कार्यक्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे पैतृक गुणों को शीघ्र ही सीख लेते हैं। 5. नैतिक गुण श्रमिकों में नैतिक गुणों से कर्तव्यनिष्ठा का भाव उत्पन्न होता है, इससे श्रमिक अपने कर्तव्य का समय से निर्वहन करता है। ऐसे श्रमिक ईमानदार, सच्चे व कर्त्तव्यपरायण होते हैं। 6. सामान्य बुद्धिमत्ता श्रमिक की सामान्य बुद्धि का भी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। सामान्य बुद्धि वाले श्रमिक कम बुद्धि वाले श्रमिक की तुलना में अधिक कार्यकुशल होते हैं। सामान्य बुद्धि के व्यक्ति या श्रमिक कार्य को समय पर निष्पादित करते हैं। 7. काम करने की दशाएँ जिन कारखानों में श्रमिकों के लिए स्वस्थ वातावरण व उसके परिवार के लिए शिक्षा, मनोरंजन, खेलकद, रोशनी, स्वच्छ पानी, आदि अनिवार्यताओं की व्यवस्था होती है, वहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता अधिक होती है। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं होने से श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होती है। 8. जलवायु तथा प्राकृतिक दशाएँ श्रमिकों की कार्यकुशलता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का भी अधिक प्रभाव पड़ता है। अधिक सर्द व अधिक गर्म जलवायु में अधिक देर तक कार्य नहीं किया जा सकता है, जबकि शीतोष्ण जलवायु में श्रमिक अधिक देर तक कार्य कर सकते हैं। |
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श्रम की कार्यक्षमता से आप क्या समझते हैं? भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता कम होने के क्या कारण हैं? |
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Answer» श्रम की कार्यक्षमता श्रम की कार्यक्षमता से आशय कार्यक्षमता का शाब्दिक अर्थ ‘कार्य करने की शक्ति से होता है। श्रम की कार्यक्षमता (Efficiency of Labour) से तात्पर्य किसी श्रमिक की कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य करने की योग्यती या क्षमता से होता है। श्रम की कार्यक्षमता सापेक्षित होती है। श्रम की माँग परोक्ष होती है। कार्यक्षमता का अनुमान दो व्यक्तियों की तुलना करके लगाया जा सकता है। मौरलैण्ड के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता से हमारा अभिप्राय किसी निश्चित मात्रा में लगाए गए श्रम की अपेक्षा उत्पादित सम्पत्ति के अधीन होने से है।” प्रो. निर्वान एवं शर्मा के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता का अर्थ किसी श्रमिक की उस क्षमता से है जिसके द्वारा वह अधिक उत्तम वस्तु की, अधिक मात्रा में वस्तु का या दोनों का उत्पादन करता है।” श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक निम्नलिखित हैं- 1. पुरस्कार व उन्नति की आशा यदि श्रमिक को कार्य करने से उचित मजदूरी, पुरस्कार या पदोन्नति मिलती है, तो श्रमिक अधिक कुशलता से कार्य को सम्पन्न करते हैं। कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की कमी होती है। 2. शिक्षा तथा प्रशिक्षण एक शिक्षित व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक, अप्रशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य करता है। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कार्य को शीघ्र समझकर सम्पन्न कर देता है। 3. प्रबन्धकों की योग्यता व व्यवहार प्रबन्धकों की व्यवहार कुशलता व योग्यता का श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। प्रबन्धकों के अच्छे व्यवहार से श्रमिक योग्यतानुसार नवीन तकनीकी कार्यों को उचित रूप से पूर्ण कर सकते हैं। 4. पैतृक व जातीय गुण श्रमिकों की कार्यकुशलता पर उसके पैतृक गुणों व जातीय गुणों का भी प्रभाव पड़ता है। इन गुणों का उनकी कार्यक्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे पैतृक गुणों को शीघ्र ही सीख लेते हैं। 5. नैतिक गुण श्रमिकों में नैतिक गुणों से कर्तव्यनिष्ठा का भाव उत्पन्न होता है, इससे श्रमिक अपने कर्तव्य का समय से निर्वहन करता है। ऐसे श्रमिक ईमानदार, सच्चे व कर्त्तव्यपरायण होते हैं। 6. सामान्य बुद्धिमत्ता श्रमिक की सामान्य बुद्धि का भी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। सामान्य बुद्धि वाले श्रमिक कम बुद्धि वाले श्रमिक की तुलना में अधिक कार्यकुशल होते हैं। सामान्य बुद्धि के व्यक्ति या श्रमिक कार्य को समय पर निष्पादित करते हैं। 7. काम करने की दशाएँ जिन कारखानों में श्रमिकों के लिए स्वस्थ वातावरण व उसके परिवार के लिए शिक्षा, मनोरंजन, खेलकद, रोशनी, स्वच्छ पानी, आदि अनिवार्यताओं की व्यवस्था होती है, वहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता अधिक होती है। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं होने से श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होती है। 8. जलवायु तथा प्राकृतिक दशाएँ श्रमिकों की कार्यकुशलता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का भी अधिक प्रभाव पड़ता है। अधिक सर्द व अधिक गर्म जलवायु में अधिक देर तक कार्य नहीं किया जा सकता है, जबकि शीतोष्ण जलवायु में श्रमिक अधिक देर तक कार्य कर सकते हैं। भारतीय श्रमिकों की अकुशलता या कार्यक्षमता कम होने के कारण भारतीय श्रमिकों की अकुशलता या कार्यक्षमता कम होने के कारण निम्नलिखित 1. शारीरिक दुर्बलता भारतीय श्रमिकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य कमजोर होने से ये कठिन परिश्रम नहीं कर पाते हैं, इससे उनकी कार्यक्षमता में कमी आती है। 2. गर्म जलवायु भारत में गर्म जलवायु होने के कारण श्रमिकों की कार्यकुशलता |में कमी होती है, इसलिए भारतीय श्रमिक अकुशल होते हैं। 3. भर्ती की दोषपूर्ण प्रणाली भारत में श्रमिकों की अधिकांश भर्तियाँ ठेकेदारों के माध्यम से होती हैं। ठेकेदार इसके लिए कमीशन या दस्तूरी लेते हैं। ऐसा करने से ठेकेदार अपने स्वार्थ के लिए पुराने अनुभवी श्रमिकों को निकाल देते हैं एवं नए श्रमिकों को भर्ती करते रहते हैं, जिससे कार्यकुशलता में कमी आती है। 4. नैतिकता का अभाव भारतीय श्रमिकों में कर्तव्यनिष्ठा का अभाव होने के कारण इनकी कार्यक्षमता में कमी होती है। 5. निर्धनता व निम्न स्तर का रहन-सहन भारतीय श्रमिकों के गरीब होने के कारण उन्हें भरपेट भोजन व अन्य पर्याप्त सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी आती है। 6. प्रवासी प्रवृत्ति भारतीय श्रमिक कारखानों में स्थायी रूप से कार्य नहीं करते हैं। इस प्रवृत्ति के कारण श्रमिक फसल के समय व विशेष उत्सवों व त्यौहार पर अपने गाँव चले जाते हैं। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी आती है। 7. श्रमिकों को संघर्ष भारत में आए दिन पूँजीपति व श्रमिकों में संघर्ष चलता रहता है, जिससे तालाबन्दी वे हड़ताल जैसी घटनाएँ जन्म ले लेती हैं। ऐसे में संघर्ष कर रहे श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होना स्वाभाविक है। 8. प्रशिक्षण का अभाव भारत में तकनीकी शिक्षा का अभाव होने के कारण श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी होती है। 9. काम करने की दशाएँ भारत में अधिकांश कारखानों में दूषित वातावरण होता है, जिससे हवा, पानी व रोशनी की उचित व्यवस्था नहीं होती है। मजदूरों के लिए मशीन पर कार्य करने की सुरक्षा भी नहीं होती है। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 10. स्वतन्त्रता व.पदोन्नति का अभाव भारतीय श्रमिकों में स्वतन्त्रता का अभाव होता है वे इनकी समय पर पदोन्नति भी नहीं की जाती है। इससे श्रमिकों में निराशाजनक प्रवृत्ति उत्पन्न होती है और उनकी कार्यक्षमता में कमी आती है। 11. काम करने की समयावधि भारत में गर्म जलवायु होने पर भी कार्य करने के घण्टे 8 या 9 हैं, जबकि अमेरिका व यूरोप में कार्य करने के घण्टे 6 या 7 हैं। भारत में ‘कारखाना अधिनियम द्वारा निर्धारित किए गए कार्य के घण्टे भी अधिक हैं। इसी कारण भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता कम है। |
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श्रम की विशेषताएँ बताइए। श्रम कितने प्रकार का होता है? |
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Answer» श्रम की विशेषताएँ 1. श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है, जबकि भूमि और पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं श्रम के अभाव में पूँजी और भूमि कोई उत्पत्ति नहीं कर सकती है। प्रबन्ध और संगठन भी श्रम के ही विशिष्ट रूप हैं। 2. श्रम नाशवान है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता श्रम का नाशवान होना है। यदि किसी दिन श्रमिक कार्य नहीं करता, तो उसका उस दिन का श्रम हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है। 3. श्रमिक अपने श्रम को बेचता है स्वयं को नहीं श्रमिक को वहाँ उपस्थित रहना पड़ता है, जहाँ श्रम करना है। अतः श्रमिकों को अपना श्रम बेचते समय कार्य करने की जगह, कार्य की प्रकृति, भौतिक वातावरण, मालिकों के स्वभाव, आदि पर ध्यान देना आवश्यक होता है। 4. श्रमिक की मोल-भाव करने की क्षमता कम होती है श्रम के नाशवान होने तथा श्रम को श्रमिक से अलग न किए जा सकने के कारण श्रमिकों की मोल-भाव (सौदा) करने की शक्ति कमजोर होती है। श्रमिकों की दरिद्रता, अकुशलता तथा वैकल्पिक रोजगार के अभाव में भी वे मालिकों की तुलना में कमजोर रह जाते हैं। 5. श्रम साधन और साध्य दोनों है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि श्रम न केवल उत्पत्ति का एक सक्रिय साधन है, वरन् उपभोक्ता के रूप में सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाओं का साध्य भी है। समस्त आर्थिक कार्यों का अन्तिम लक्ष्य अधिकतम मानव कल्याण होता है। 6. श्रम अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है श्रमिक किसी कार्य को सम्पन्न करने में अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है, जिससे आविष्कार, अनुसन्धान व नई तकनीकों का विकास होता है। विभिन्न यन्त्रों का संचालन करने हेतु श्रमिकों को अपनी बौद्धिक व शारीरिक क्षमता को उपयोग में लाना पड़ता है। 7. श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है। श्रमिक श्रम का स्वामी है और जब वह उसे बेचता है, तो श्रम प्रदान करने के स्थान पर श्रमिक का उपस्थित रहना अनिवार्य होता है। 8. श्रम की पूर्ति में परिवर्तन धीमी गति से होता है श्रम की पूर्ति को अल्पकाल में बढ़ाना कठिन है। दीर्घकाल में श्रम की पूर्ति धीमी गति से बढ़ाई जा सकती है। श्रम की पूर्ति दो बातों पर निर्भर रहती है| ⦁ श्रम की कार्यकुशलता, 9. श्रम में पूँजी का विनियोग किया जा सकता है श्रम उत्पत्ति का एक सजीव व सक्रिय साधन है। प्रशिक्षण, शिक्षा, अच्छे पोषण, उच्च जीवन-स्तर, आदि से श्रम की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों में वृद्धि की जा सकती है। 10. श्रम उत्पत्ति का गतिशील साधन है श्रम में भूमि की अपेक्षा अधिक गतिशीलता होती है। श्रम एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में और एक उद्योग से दूसरे उद्योग में गतिशील रहता है। 11. श्रम उत्पत्ति का आवश्यक साधन है श्रम के बिना उत्पादन बिल्कुल असम्भव है, क्योंकि उत्पत्ति के अन्य साधन-भूमि एवं पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं। उनमें उत्पादन करने के लिए श्रम जैसे सक्रिय साधन की अनिवार्यता होती है। इसी कारण श्रम की उत्पत्ति के अन्य साधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्व है। श्रम के प्रकार श्रम को निम्नलिखित तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता 1. कुशल एवं अकुशल श्रम वह कार्य, जिसे करने से पूर्व किसी विशेष शिक्षा, ज्ञान अथवा प्रशिक्षण, आदि की आवश्यकता होती है, वह ‘कुशल श्रम’ कहलाता है; जैसे-वकील, इंजीनियर, डॉक्टर, अध्यापक, आदि के कार्य। इसके विपरीत ऐसा कार्य, जिसे करने से पूर्व किसी विशेष प्रकार की शिक्षा या प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती, वह ‘अकुशल श्रम’ कहलाता है; जैसे-कुली, चौकीदारे तथा चपरासी, आदि का श्रम्। 2. उत्पादक एवं अनुत्पादक श्रम मनुष्य के जिस प्रयत्न से उपयोगिता का सृजन होता है तथा उसे उसके उद्देश्य में सफलता प्राप्त होती है, उसे ‘उत्पादक श्रम’ कहते हैं; जैसे- यदि एक बढ़ई कुर्सी बनाने में लगा है। और कुर्सी बनकर तैयार हो जाती है, तो यह श्रम उत्पादक श्रम है। इसके विपरीत, मनुष्य द्वारा किए गए ऐसे प्रयास जिनसे उपयोगिता का सृजन नहीं होता तथा उसके उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती, उसे ‘अनुत्पादक श्रम’ कहते हैं; जैसे-बढ़ई द्वारा कुर्सी बनाने के लिए काटी गई लकड़ी के गलत कट जाने से कुर्सी नहीं बन पाती, तो यह श्रम अनुत्पादक श्रम है। 3. मानसिक एवं शारीरिक श्रम जिस कार्य को करने में मानसिक शक्ति का उपयोग शारीरिक शक्ति की अपेक्षा अधिक होता है, उस कार्य में लगा श्रम ‘मानसिक श्रम’ कहलाता है; जैसे-डॉक्टर, वकील, अध्यापक, आदि का श्रम मानसिक श्रम है। इसके विपरीत, जब किसी कार्य को करने में मानसिक शक्ति की अपेक्षा शारीरिक शक्ति का अधिक उपयोग होता है, तो उस कार्य में लगा श्रम ‘शारीरिक श्रम’ कहलाता है; जैसे—कुली, मजदूर, लुहार, आदि का श्रम शारीरिक श्रम है। |
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श्रम उत्पादन का गौण/अनिवार्य उपादान है। |
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Answer» श्रम उत्पादन का अनिवार्य उपादान है। |
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