InterviewSolution
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                                    “मनोवैज्ञानिक अर्थों में तनाव, दबाव, बेचैनी तथा चिन्ता की अनुभूति है।” यह कथन किस मनोवैज्ञानिक का है?(क) जेम्स ड्रेवर(ख) कोलमैन(ग) क्रेच तथा क्रचफील्ड(घ) बेलार्ड | 
                            
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                                   Answer»  सही विकल्प है (ख) कोलमैन  | 
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                                    निम्नलिखित कथनों में से कौन सही है?(क) पूर्वाग्रह सीखे नहीं जाते।(ख) पूर्वाग्रह असन्तोष प्रदान करते हैं।(ग) पूर्वाग्रह सत्य पर आधारित होते हैं।(घ) पूर्वाग्रह समूह-तनाव के लिए उत्तरदायी होते हैं। | 
                            
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                                   Answer»  (घ) पूर्वाग्रह समूह-तनाव के लिए उत्तरदायी होते हैं।  | 
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| 3. | 
                                    जातिवाद के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  ⦁    अपनी जाति की प्रतिष्ठा की एकांगी भावना,  | 
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                                    जातिवाद से क्या आशय है? | 
                            
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                                   Answer»  जातिवाद किसी जाति या उपजाति के सदस्यों की वह भावना है जिसमें वे देश, अन्य जातियों या सम्पूर्ण समाज के हितों की अपेक्षा अपनी जाति या समूह के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक हितों या लाभों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।  | 
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                                    भाषावाद के निवारण के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  ⦁    राष्ट्रीय भाषा का विकास एवं राष्ट्रीय समर्थन,  | 
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| 6. | 
                                    धर्मान्धता अथवा धार्मिक कट्टरता की भावना के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है-(क) सामाजिक तनाव(ख) धर्मगत समूह-तनाव(ग) वर्गवाद(घ) अनावश्यक तनाव | 
                            
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                                   Answer»  (ख) धर्मगत समूह-तनाव  | 
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| 7. | 
                                    समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों या समूहों के बीच सामाजिक दूरी के बढ़ जाने की स्थिति को कहते हैं –(क) सामूहिक संघर्ष(ख) पारस्परिक सहयोग(ग) समूह-तनाव(घ) सामूहिक सौहार्द | 
                            
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                                   Answer»  सही विकल्प है (ग) समूह-तनाव  | 
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| 8. | 
                                    निम्नलिखित में कौन जातिवाद का दुष्परिणाम नहीं है – (क) भ्रष्टाचार(ख) पक्षपात(ग) समूह-तनाव(घ) अन्तर्जातीय विवाह | 
                            
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                                   Answer»  (घ) अन्तर्जातीय विवाह  | 
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| 9. | 
                                    भाषावाद से आप क्या समझते हैं? भाषागत तनाव के कारण बताइए तथा उसके निवारण के उपाय भी बताइए।याभाषागत तनाव को रोकने के लिए क्या उपाय किये जाने चाहिए?याभाषावाद के किन्हीं दो कारणों के बारे में लिखिए। याभाषावाद के निराकरण के कोई चार उपाय लिखिए। | 
                            
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                                   Answer»  भाषावाद भाषा मन के भावों के अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। भाषागत समानता विभिन्न व्यक्तियों को एक-दूसरे की ओर आकर्षित करती है, जबकि भाषागत भिन्नता के कारण लोग पृथकता या अलगाव महसूस करते हैं। यही कारण है कि एक ही भाषा बोलने वाले दो अपरिचित व्यक्ति भी शीघ्र ही एक-दूसरे से अपनी बात कह सकते हैं तथा पारस्परिक निकटता बना लेते हैं। इससे भिन्न दो भिन्न भाषा-भाषी अपनी बात न तो कह सकते हैं और न ही समझ सकते हैं–निकट होते हुए भी वे एक-दूसरे से अलग रहते हैं। वास्तव में, भाषा में एकीकरण की प्रबल क्षमताएँ पाई जाती हैं। हमारा देश एक बहुभाषायी देश है। इससे जहाँ एक ओर हमारे देश की सांस्कृतिक समृद्धि हुई, वही कुछ समस्याएँ। भी उम्पन्न हुई हैं। भाषाओं की विविधता के कारण उत्पन्न होने वाली मुख्यतम समस्या है–भाषावाद का प्रबल होना। भाषावाद का अर्थ कोई भी सिद्धान्त, मत, विचार या माध्यम समाज के लिए उस समय तक हानिकारक नहीं है जब तक कि वह ‘वाद’ (ism) की शक्ल नहीं ले लेता; ‘वाद’ बनते ही वह समस्या बनकर उभरता है। अत: भारत में भाषाओं की विविधता साहित्य एवं संस्कृति के बहुआयामी विकास की दृष्टि से एक अच्छी एवं प्रशंसनीय बात कही जा सकती है, किन्तु यदि भाषाओं की विविधता ‘वाद’ का रूप लेती है तो इसे एक गम्भीर समस्या कहा जाएगा भाषावाद के अन्तर्गत एक भाषा वाला अपनी भाषा को सर्वोत्कृष्ट मानकर अन्य भाषाभाषियों को हीन समझकर उनकी उपेक्षा करता है। भाषावाद के कारण भारत में भाषावाद की जटिल समस्या विभिन्न परिस्थितियों एवं कारकों का परिणाम है। ये बहुतायत में हो सकते हैं और उन सभी का यहाँ विवेचन सम्भव नहीं है। भाषावाद की उत्पत्ति एवं विकास सम्बन्धित प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं – (1) ऐतिहासिक कारण – भारत में भाषावाद के कारण उत्पन्न तनाव एवं संघर्ष एक लम्बे और प्राचीन इतिहास से जुड़े हैं; अतः भाषावाद का ऐतिहासिक पक्ष भी एक महत्त्वपूर्ण कारक को जन्म देता है। हम जानते हैं कि किसी भी क्षेत्र में भाषा का उद्भव एवं विकास एक ही देन में या अल्पकाल में ही नहीं हो गया। प्रत्येक भाषा का हजारों-हजार वर्षों पुराना इतिहास है और आज वे अपने क्षेत्र के वातावरण के साथ इस प्रकार घुल-मिल गयी हैं जिस प्रकार फूल में उसकी सुगन्ध निहित होती है। स्वाभाविक रूप से किसी भी क्षेत्र के निवासियों को अपनी भाषा के साथ ऐसा भावनात्मक एवं सांवेगिक सम्बध बन जाता है कि वे उसकी उपेक्षा तथा दूसरी भाषा की मान्यता सहन नहीं कर पाते। ब्रिटिशकाल में शासन द्वारा भारतीयों पर अंग्रेजी एक अनिवार्य भाषा के रूप में लाद दी गयी, जिसे दक्षिणवासियों ने पर्याप्त रूप से अपना लिया। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया। दुर्भाग्यवश दक्षिण में हिन्दी का प्रचलन बहुत कम था; अतः उन्हें सीखने के लिए एकदम नये सिरों से प्रयास करना पड़ा, जबकि वे अंग्रेजी को आत्मसात् कर उस भाषा को अच्छी प्रकार जान। चुके थे। न तो उन्होंने हिन्दी को ग्रहण करना चाहा और न अंग्रेजी को छोड़ना चाहा। अतः हिन्दी को लेकर भाषागत एवं सांस्कृतिक आधार पर विरोध, तनाव एवं संघर्ष ने जन्म लिया। इन्हीं दशाओं ने प्रबल रूप धारण कर भाषावाद को विकसित किया। (2) भौगोलिक कारण- देश के विभिन्न क्षेत्र भौगोलिक सीमाओं द्वारा परिसीमित होकर एक-दूसरे से अलग हो गये। अलग-अलग क्षेत्रों की अलग-अलग भाषाएँ विकसित हुईं। प्रत्येक क्षेत्र के साहित्य तथा संस्कृति में वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों; यथा-नदियों, पर्वतों, वन, स्थानीय कृषि तथा पशुओं की अभीष्ट छाप दृष्टिगोचर होती है; अतः क्षेत्र की स्थानीय भाषा के साहित्य के प्रति वहाँ के निवासियों में अपनत्व की भावना पैदा होना स्वाभाविक है। इन दशाओं में अन्य भाषाओं तथा भाषाभाषी समूहों के प्रति उदासीनता, विरोध तथा घृणा का भाव उत्पन्न होना भी स्वाभाविक हो। (3) राजनीतिक कारण– अनेक राजनीतिक दल अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की सिद्धि हेतु भाषावाद को प्रेरित तथा ‘प्रोत्साहित करते हैं। विशेषकर चुनावों के समय कुछ राजनीतिक नेता लोग वोट प्राप्त करने की दृष्टि से अल्पसंख्यक भाषा-भाषियों की भावनाओं व संवेगों को उभारकर तनाव एवं संघर्ष उत्पन्न करा देते हैं जिससे जन-धन की हानि होती है। क्योंकि ये लोग भाषा को मुद्दा बनाकर उखाड़-पछाड़ कर राजनीतिक प्रपंच रचते हैं; अत: एक विशेष भाषा से प्रेम व लगाव रखने वालों का उन्हें समर्थन मिल जाता है जो उनके निर्वाचन काल हेतु सर्वाधिक उपयोगी कहा जा सकता है। (4) सामाजिक कारण- भाषावाद के जन्म और विकास के कुछ सामाजिक कारण भी हैं। जिस समाज की मान्यताएँ जिस भाषा में स्थान पाती हैं, उस समाज में उस भाषा को भरपूर सम्मान मिलता है। उस समाज के सदस्य उस भाषा से तो विशेष लगाव रखते हैं, किन्तु अन्य भाषाओं से, जिनसे उनकी मान्यताओं का कोई सरोकार नहीं है, घृणा करने लगते हैं। भाषावाद इसी सामाजिक प्रक्रिया का एक दुष्परिणाम है। (5) आर्थिक कारण- यदि किसी देश की सरकार खासतौर से एक भाषा-भाषी समूह को प्रोत्साहन देने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करती है तो अन्य भाषा-भाषी समूह उस भाषा से विद्वेष एवं घृणा का भाव रखने लगते हैं। ऐसी परिस्थितियों में भाषावाद को बल मिलता है। (6) मनोवैज्ञानिक कारण- भाषावाद की पृष्ठभूमि में व्यक्ति की संकीर्ण आत्मसम्मान की भावना निहित होती है, जिसके परिणामस्वरूप लोग अपनी भाषा को अच्छा तथा अन्य भाषाओं को बुरा बताने लगते हैं। किसी भाषा के जानने तथा प्रयोग करने वालों की उस भाषा से भावनात्मक एवं संवेगात्मक सहानुभूति हो जाती है। भाषा व्यक्ति के अवधान को केन्द्रित करती है; अतः एक भाषा के ज्ञाता व प्रयोग करने वाले एक-दूसरे के जल्दी सम्पर्क में आते हैं, लेकिन उनमें दूसरी भाषा वालों के प्रति । वैसी भावनात्मक या सांवेगिक अनुरक्ति नहीं होती। इससे भाषावाद का उद्भव एवं विकास होता है। भाषीवाद के निवारण के उपाय भाषावाद के विभिन्न कारणों का विवेचन करने के उपरान्त भाषावाद को समाप्त करने के उपायों की खोज करनी होगी। इस तनाव से संघर्ष की परिस्थितियाँ देश की एकता व अखण्डता के लिए। विषाक्त एवं हानिकारक हैं। यदि भाषावाद का विष देश में इसी प्रकार संचरित होता रहा तो जल्दी ही देश हजारों भाषाओं के नाम पर टुकड़ों में बँट जाएगा; अतः भाषावाद का उन्मूलन अनिवार्य है। इसके प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं – (1) राष्ट्रीय भाषा का विकास एवं राष्ट्रीय समर्थन- सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने की दृष्टि से एक राष्ट्रीय भाषा का विकास होना आवश्यक है। इसके लिए देश-भर के लोगों को एक राष्ट्रीय भाषा के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान करनी होगी। लोगा अनिवार्य रूप से एक राष्ट्रीय भाषा की आवश्यकता अनुभव करें तथा विदेशी भाषा के स्थान पर एक स्वदेशी भाषा को समर्थन देने के लिए प्रेरित व तत्पर हों। राष्ट्रीय भाषा के चुनाव की समस्या पर विचार करना यहाँ हमारा उद्देश्य नहीं है, किन्तु उल्लेखनीय रूप से यह भाषा समूचे देश की सम्पर्क भाषा हो जिसे अधिक-से-अधिक संख्या में लोग समझते, बोलते तथा प्रयोग करते हों। जनसमर्थित राष्ट्रीय भाषा का विकास एवं प्रयोग राष्ट्र को एकता एवं अखण्डता की ओर अग्रसर करेमा। (2) क्षेत्रीय भावनाओं को सम्मान एवं प्रोत्साहन- हम जानते हैं कि विभिन्न भौगोलिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक कारणों से एक क्षेत्र-विशेष के निवासी अपनी भाषा को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं तथा उसके प्रति अथाह प्रेम एवं लगाव प्रदर्शित करते हैं; अतः क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा नहीं की जा सकती। विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय भाषाओं को मान्यता प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें राजकीय कार्यों में भी प्रयोग करने की छूट दी जानी चाहिए। इससे क्षेत्रीय विकास प्रोत्साहित होगा तथा स्थानीय लोगों में आत्म-स्वाभिमान पैदा होगा। स्पष्टत: भाषावाद तथा भाषावाद तनावों का अन्त करने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में प्रतिष्ठा का ध्यान रखना होगा। (3) साम्प्रदायिकता एवं क्षेत्रवाद का विरोध- साम्प्रदायिकता एवं क्षेत्रवाद के बन्धन भाषावाद को उकसाकर इसे राष्ट्रीय एकता के पैरों की बेड़ियाँ बना देते हैं। भाषावाद की समस्या का अन्त करने के लिए साम्प्रदायिक एवं क्षेत्रीय आधार पर उपजी विकृतियों तथा विषमताओं को नष्ट करना होगा। अत: साम्प्रदायिक एवं क्षेत्रीय भावनाओं का एक साथ मिलकर पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए। (4) सांस्कृतिक विनिमय- सांस्कृतिक विनिमय के माध्यम से भी भाषावाद का निवारण सम्भव है। इसके लिए विभिन्न भाषाओं के साहित्य का अन्य भाषाओं के अनुवाद करने कार्य के को। प्रोत्साहित किया जाए। बहू-भाषी कवि सम्मेलनों, दूरदर्शन के कार्यक्रमों, सिनेमा, नाटक आदि के माध्यम से विभिन्न भाषा-भाषी समूहों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की व्यवस्था करनी चाहिए। भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी समूहों के कलाकारों, साहित्यकारों, रंगकर्मियों, पत्रकारों, लेखकों तथा कवियों को पारस्परिक सम्पर्क के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। (5) राजनीतिक उपाय- भाषागत तनावों से बचने के लिए ऐसे राजनीतिक दलों पर कठोर नियन्त्रण की आवश्यकता है जो अपने स्वार्थों की सिद्धि हेतु विभिन्न भाषा-भाषी समूहों को शिकार बना लेते हैं। भाषायी तनाव व विद्रोह भड़काने वाले राजनीतिक एजेण्टों को पकड़कर दण्डित किया जाना चाहिए। (6) सही सोच का प्रचार-प्रसार- देशवासियों में इस सोच का प्रचार किया जाना चाहिए कि भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम है। स्वार्थ-सिद्धि का साधन बनाकर इसका दुरुपयोग करना अक्षम्य अपराध है। सभी भाषाएँ समान रूप से प्रतिष्ठित एवं मान्य हैं किसी भी भाषा का महत्त्व कम नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में अंग्रेजी हो या हिन्दी या किसी ग्रामीण अचंल में बोली जाने वाली ऐसी भाषा जिसे लिपिबद्ध भी नहीं किया जा सकता–सभी को बराबर महत्त्व है; अतः भाषा को लेकर विवाद नहीं है।  | 
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| 10. | 
                                    साम्प्रदायिक तनाव को कम करने के लिए किया जाना चाहिए –(क) राष्ट्रीयता का प्रचार(ख) साम्प्रदायिक राजनीतिक दलों पर प्रतिबन्ध(ग) मिश्रित कार्यक्रमों का आयोजन(घ) ये सभी उपाय | 
                            
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                                   Answer»  (घ) ये सभी उपाय  | 
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| 11. | 
                                    निम्नलिखित में कौन समूह-तनाव का कारण है- (क) शिक्षा(ख) खेल(ग) रूढ़ियुक्तियाँ(घ) राष्ट्रीय पर्व | 
                            
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                                   Answer»  (ग) रूढ़ियुक्तियाँ  | 
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| 12. | 
                                    अपने देश में भाषावाद को नियन्त्रित करने का उपाय है –(क) व्यापक राजनीतिक प्रयास(ख) राष्ट्रभाषा को सम्मान प्रदान करना(ग) समस्त क्षेत्रीय भाषाओं को समान प्रोत्साहन(घ) ये सभी उपाय | 
                            
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                                   Answer»  (घ) ये सभी उपाय  | 
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| 13. | 
                                    पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अलग राज्य की माँग किस विचारधारा का परिणाम है?(क) जातिवाद(ख) धर्मवाद(ग) क्षेत्रवाद(घ) अन्धविश्वास | 
                            
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                                   Answer»  सही विकल्प है (ग) क्षेत्रवाद  | 
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| 14. | 
                                    भारतवर्ष में समूह-तनाव के विभिन्न रूप क्या हैं? | 
                            
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                                   Answer»  भारत एक विशाल देश है जिसमें अनेक जातियों, उपजातियों, सम्प्रदायों, वर्गों तथा भिन्न भाषा-भाषी लोग विभिन्न क्षेत्रों में निवास करते हैं। इस विविधता ने जहाँ एक ओर भारतीय समाज एवं संस्कृति को समृद्ध बनाया है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न समूह तनावों को भी बल दिया है। हमारे देश में मुख्य रूप से चार प्रकार के समूह-तनाव पाये जाते हैं– ⦁    जातिगत समूह-तनाव,  | 
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| 15. | 
                                    किस प्रकार के समूह-तनाव को कम करने का उपाय है-अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन?(क) भाषागत समूह-तनाव(ख) धर्मगत समूह-तनाव(ग) जातिगत समूह-तनाव(घ) क्षेत्रगत समूह-तनाव | 
                            
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                                   Answer»  (ग) जातिगत समूह-तनाव  | 
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| 16. | 
                                    निम्नलिखित में से कौन-सा सामूहिक तनाव है जो केवल भारतीय समाज में ही पाया जाता(क) भाषागत समूह-तनाव(ख) धर्मगत समूह-तनाव(ग) क्षेत्रगत समूह-तनाव(घ) जातिगत समूह-तनाव | 
                            
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                                   Answer»  (घ) जातिगत समूह-तनाव  | 
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| 17. | 
                                    1. समाज के विभिन्न अंगों के मध्य विकसित होने वाली सामाजिक दूरी के परिणामस्वरूप प्रबल | होने वाले तनाव को ………. कहते हैं।2. एक समूह के अधिकांश लोगों द्वारा दबाव, बेचैनी एवं चिन्ता की अनुभूति …………….. कहलाती है। 3. दक्षिण अफ्रीकी में श्वेतों तथा अश्वेतों के मध्य पाये जाने वाला तनाव ……..4. निश्चित विषय-वस्तुओं, सिद्धान्तों, व्यक्तियों के प्रति बिना कारण के अनुकूल या प्रतिकूल अभिवृत्ति को ………….. कहते हैं।5. ब्रिट के अनुसार ……….. का अर्थ अपरिपक्व अथवा पक्षपातपूर्ण मत है।6. किसी परिस्थिति में पक्षपातपूर्ण एवं अपरिपक्व मत …………. कहलाते हैं। 7. पक्षपात या पूर्वाग्रह ………. का कारण बनता है।8. पूर्वाग्रह समूह-तेनावों को ………….. देते हैं।9. पूर्वाग्रहों के कारण व्यक्ति का दृष्टिकोण ………. हो जाता है।10. अपनी जाति को महान् तथा अन्य जातियों को हीन मानने के परिणामस्वरूप विकसित होने वाले तनाव को ……… कहते हैं।11. ……….. के कारण ‘जातीय दूरी’ में वृद्धि होती है।12. अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देकर ………. को कम किया जा सकता है।13. यातायात एवं प्रचार साधनों ने भी जातिवाद को ……….. दिया है।14. हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी आदि समूहों के मध्य समय-समय पर उत्पन्न होने वाले तनाव को …….. कहा जाता है।15. साम्प्रदायिक भावना की चरम परिणति प्रायः ………. के रूप में होती है।16. सम्प्रदायवाद सामूहिक …………. का एक कारण हो सकता है। 17. सांस्कृतिक आदान-प्रदान से साम्प्रदायिक तनाव को ……………. किया जा सकता है।18. क्षेत्रवाद ………. का एक रूप है।19. भाषावाद ………. का एक रूप है।20. नकारात्मक प्रभाव के रूप में भाषावाद ………. के लिए उत्तरदायी हो सकता है। 21. सभी प्रकार के समूह-तनाव को कम करने में ………… सहायक होता है। 22. किसी व्यक्ति या समुदाय पर गलत आरोप लगाकर तनाव उत्पन्न करने को ………….. कहा जाती है। | 
                            
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                                   Answer»  1. सामाजिक तनाव  | 
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| 18. | 
                                    समूह-तनाव से क्या आशय है? | 
                            
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                                   Answer»  समूह-तनाव उस स्थिति का नाम है जिसमें समाज का कोई वर्ग, सम्प्रदाय, धर्म, जाति या राजनीतिक दल; दूसरे के प्रति भय, ईर्ष्या, घृणा तथा विरोध से भर जाता है।  | 
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| 19. | 
                                    समूह-तनाव निवारण में सर्वाधिक सहायक कारक है –(क) आर्थिक सुधार करना(ख) शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार(ग) आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार(घ) कठोर कानून बनाना | 
                            
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                                   Answer»  (ख) शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार  | 
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| 20. | 
                                    भारतीय समाज में मुख्य रूप से किस-किस प्रकार के समूह-तनाव पाये जाते हैं? | 
                            
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                                   Answer»  भारतीय समाज में पाये जाने वाले समूह-तनाव के मुख्य रूप हैं-जातिगत समूह-तनाव, भाषागत समूह-तनाव, क्षेत्रगत समूह-तनाव तथा साम्प्रदायिक समूह-तनाव।  | 
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| 21. | 
                                    समूह-तनाव के सामान्य वातावरणीय कारणों का उल्लेख कीजिए। | 
                            
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                                   Answer»  समूह-तनाव के सामान्य वातावरणीय कारण हैं-ऐतिहासिक कारण, भौतिक कारण, सामाजिक कारण, धार्मिक कारण, आर्थिक कारण, राजनीतिक कारण तथा सांस्कृतिक कारण।  | 
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