

InterviewSolution
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समूह-तनाव (Group Tension) से आप क्या समझते हैं? समूह-तनाव की उत्पत्ति के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।यासमूह-तनाव से आप क्या समझते हैं? समूह तनाव के लिए उत्तरदायी कारकों को स्पष्ट कीजिए।यासमूह-तनाव के लिए उत्तरदायी चार कारणों के बारे में लिखिए। |
Answer» भूमिका मनुष्य को समूह में रहने वाले एक सामाजिक प्राणी के रूप में स्वीकार किया जाता है। प्रत्येक समाज में समूहों का निर्माण विभिन्न आधारों पर होता है; जैसे-धर्म, जाति, सम्प्रदाय, वर्ग, क्षेत्र, भाषा, व्यवसाय, आवास, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक स्तर आदि। ‘तनाव’ (Tension) एक प्रकार की मानसिक अवस्था है, जो व्यक्ति और समूह दोनों में पायी जाती है। कोलमैन के अनुसार, “मनोवैज्ञानिक अर्थों में तनाव, दबाव, बेचैनी तथा चिन्ता की अनुभूति है।” सामाजिक विघटन की क्रिया में भीतरी तनावों के कारण समाज के अंग टूटकर अलग होने लगते हैं। और उनकी प्रगति रुक जाती है। समूहों के बीच इस स्थिति को ‘समूह-तनाव (Group Tension) कहते हैं। समूह-तनाव का अर्थ समूह-तनाव उस स्थिति का नाम है जिसमें समाज का कोई वर्ग, सम्प्रदाय, धर्म, जाति या राजनीतिक दल-दूसरे के प्रति भय, ईर्ष्या, घृणा तथा विरोध से भर जाता है। ऐसी दशा में उन दोनों समूहों में सामाजिक तनाव उत्पन्न हो जाता है। इन समूहों में यह तनाव अलगाव की भावना के कारण उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप कोई समाज या राष्ट्र छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो जाता है। आज दुनियाभर के समाज इस प्रकार के समूह-तनाव के शिकार हैं, जिनके कारण मानव सभ्यता मार-काट, विद्रोह और युद्ध की त्रासदी से गुजर रही है। अमेरिका में अमेरिकन तथा हब्शी, दक्षिणी अफ्रीका में श्वेत और अश्वेत प्रजातियाँ, हिटलर के समय में जर्मन और यहूदी-इन समूहों के बीच तनाव विश्वस्तरीय समूह-तनाव के उदाहरण हैं। हमारे देश भारत में हिन्दू-मुसलमानों के बीच, उत्तरी एवं दक्षिणी भारतीयों के बीच, ऊँची और नीची जातियों के बीच, विभिन्न भाषा-भाषियों के बीच, समूह-तनाव के कारण समूह-तनाव के अनेक कारण हैं। जाति, वर्ग, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा, संस्कृति तथा सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक स्थिति आदि विभिन्न आधारों को लेकर समूह निर्मित हो जाते हैं। इन समूहों के निहित स्वार्थ तथा क्षुद्र मानसिकता के कारण पारस्परिक द्वेष तथा विरोध पनपते हैं जिनसे समूह-तनाव उत्पन्न हो जाता है। (i) ऐतिहासिक कारण- अनेक ऐतिहासिक कारण समूह-तनाव के लिए उत्तरदायी रहे हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर मुसलमान, ईसाई तथा अन्य सम्प्रदायों के लोग बाहर से हमारे देश में आये। मध्यकाल में मुसलमान आक्रान्ताओं ने शक्ति और हिंसा के बल पर यहाँ के निवासियों का धर्म-परिवर्तन किया स्थान-स्थान पर मन्दिर लूटे और गिराये तथा उनकी जगह मस्जिदें बनायी गयीं। समय के साथ-साथ घाव भरते गये और हिन्दू-मुस्लिम संस्कृतियों में समन्वय हुआ। ये दोनों जातियाँ भारत की आजादी के लिए एकजुट होकर लड़ीं, आजादी तो मिली किन्तु ‘फूट डालो और राज्य करो की नीति का प्रयोग करके अंग्रेज शासक जाते-जाते हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य का जहर सींच गये। अधिकांश राजनीतिक दल अपनी स्वार्थ-सिद्धि हेतु देश की अनपढ़, भोली तथा धार्मिक अन्धविश्वासों से ग्रस्त जनता को पूर्वाग्रहों तथा तनाव से भर देते हैं जिससे साम्प्रदायिक तनाव बढ़ता है और संवेदनशील इलाकों में दंगे भड़कते हैं। उत्तर प्रदेश में अयोध्या से सम्बन्धित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद, ऐतिहासिक कारण का एक प्रमुख उदाहरण है। (ii) भौतिक कारण— किसी भी देश के प्राकृतिक भू-भाग, वहाँ के निवासियों की शरीर-रचना, वेशभूषा, खानपानं इत्यादि किसी विशेष क्षेत्र की ओर संकेत करते हैं। पूरा देश पर्वत, नदियों, वन, पठार तथा रेगिस्तान आदि भौतिक परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में बँटा है। एक क्षेत्र के निवासी स्वयं को दूसरे से अलग समझने लगते हैं। विभिन्नता से उत्पन्न यह पृथकता ही पूर्वाग्रहों का कारण बनती है जिसके फलस्वरूप सामूहिक तनाव पैदा होते हैं। (iii) सामाजिक कारण- समूह-तनाव की पृष्ठभूमि में अनेक सामाजिक कारण क्रियाशील होते हैं। दो वर्गों या सम्प्रदायों के बीच सामाजिक दूरी उनमें ऊँच-नीच की भावना में वृद्धि करती है जिससे विरोध तथा तनाव का जन्म होता है। हिन्दू और मुसलमानों के रीति-रिवाज, प्रथाएँ, परम्पराएँ, खान-पान तथा पोशाक कई प्रकार से एक-दूसरे से भिन्न हैं। हिन्दू गाय को पवित्र तथा माँ के समान मानते हैं, किन्तु मुस्लिम समुदाय में ऐसा नहीं है। दोनों वर्गों की ये विभिन्नताएँ उनकी विचारधाराओं को विपरीत दिशाओं में मोड़ देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप समूह-तनाव पैदा होता है तथा साम्प्रदायिक उपद्रव होते हैं। (iv) धार्मिक कारण- भारत विविध धर्मों का देश है। शायद यहाँ विश्व के सभी देशों से अधिक धार्मिक विभिन्नता देखने को मिलती है। धर्म को समझने का आधार वैज्ञानिक और विवेकपूर्ण न होने के कारण विभिन्न धर्मावलम्बियों में आपसी अविश्वास, द्वेष, भय, विरोध, सन्देह तथा घृणा का भाव उत्पन्न हो गया है। हर एक धर्मावलम्बी अपने धर्म-विशेष को सर्वश्रेष्ठ तथा दूसरों को निम्न कोटि का तथा व्यर्थ समझता है। एक धर्म के लोग दूसरे पर छींटाकशी तथा आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं। इससे पूर्वाग्रहों तथा अफवाहों को बल मिलता है जिससे उत्पन्न तनाव की परिस्थितियाँ साम्प्रदायिक संघर्षों में बदल जाती हैं। (v) आर्थिक कारण- दुनियाभर में आर्थिक विषमता और शोषण के आधार पर दो सबसे बड़े वर्ग बने हैं-शोषक और शोषित। स्पष्टतः पूँजीपति लोग ‘शोषक वर्ग’ के अन्तर्गत आते हैं, जबकि श्रमिक या मजदूर लोग ‘शोषित वर्ग के अन्तर्गत। शोषक (पूँजीपति) वर्ग, शोषित (श्रमिक) वर्ग का हर प्रकार से शोषण करता है। श्रमिकों की खून-पसीने की कमाई का अधिकतम लाभांश पूँजीपति लोग चट कर जाते हैं। इससे दोनों वर्गों के मध्य मतभेद और तनाव पैदा होते हैं जिसकी चरमावस्था ही वर्ग-संघर्ष है। (vi) राजनीतिक कारण– अनेक राजनीतिक समस्याओं तथा सत्ता हथियाने के उद्देश्य से विभिन्न राजनीतिक दल एक-दूसरे की कठोर-से-कठोर आलोचना किया करते हैं। प्रत्येक दल दूसरे दलों की प्रतिष्ठा गिराने तथा उन्हें असफल करने के इरादे से राजनीतिक षड्यन्त्र रचता है। इन सभी बातों को लेकर एक़ राजनीतिक विचारधारा वाला समूह दूसरे समूहों के खिलाफ आन्दोलन चलाता है। जिससे तनाव पैदा होता है। सरकार द्वारा जनता के किसी वर्ग विशेष को प्रश्रय, अतिरिक्त लाभ या सुविधाएँ देने से भी यह समूह-तनाव उत्पन्न होता है। (vii) सांस्कृतिक कारण – सांस्कृतिक अलगाव भी समूह-तनाव का एक विशेष कारण है। किसी समुदाय विशेष की संस्कृति के विभिन्न अवयव हैं-उसके रीति-रिवाज, प्रथाएँ, परम्पराएँ, कला, साहित्य, धर्म तथा भाषी इत्यादि। सांस्कृतिक भिन्नता के आधार पर एक वर्ग स्वयं को दूसरों से पृथक समझने लगता है जिसके परिणामस्वरूप समूह-तनाव उत्पन्न होता है जिसकी परिणति संघर्ष में होती है। (2) मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological Causes) सामान्यतया लोगों की दृष्टि में धर्म, सम्प्रदाय, जाति, वर्ग, भाषा तथा संस्कृति आदि वातावरणीय कारण ही समूह-तनाव के लिए उत्तरदायी हैं, किन्तु सत्यता यह है कि इन कारणों के अतिरिक्त कुछ मनोवैज्ञानिक कारणों की भी विशिष्ट भूमिका समूह-तनाव बढ़ाने के लिए उत्तरदायी है। समूह-तनाव के लिए उत्तरदायी प्रमुख मनोवैज्ञानिक कारणों का वर्णन निम्नलिखित है – (i) पूर्वाग्रह– पूर्वाग्रह या पूर्वधारणा (Prejudice) से तात्पर्य किसी व्यक्ति, समूह, वस्तु या विचार के विषय में पूर्णतया जाने बिना, उसके अनुकूल या प्रतिकूल, अच्छा या बुरा निर्णय पहले से ही कर लेने से है। जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “निश्चित वस्तुओं, सिद्धान्तों, व्यक्तियों के प्रति अनुकूल या प्रतिकूल अभिवृत्ति को, जिनमें संवेग भी सम्मिलित रहते हैं, पूर्वाग्रह कहते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि भले ही हमने किसी व्यक्ति, समूह, वर्ग या वस्तु की सत्यता जानने का प्रयास किया हो अथवा नहीं, लेकिन हम किन्हीं कारणों से उनके विषय में पहले ही एक धारणा बना लेते हैं। हमारी यह पूर्वधारणा या विचार किसी तर्क या विवेक पर आधारित नहीं होता और न ही हम उसके सम्बन्ध में तथ्यों की छानबीन ही करते हैं; हम तो उसके विषय में एक निर्णय धारण कर लेते हैं-यही पूर्वाग्रह या पूर्वधारणा है क्योकि सम्बन्धित व्यक्ति का समूचा व्यक्तित्व इन्हीं पूर्वधारणाओं या पूर्वाग्रहों से ओत-प्रोत रहता है। अतः वह इन्हीं से प्रेरित होकर व्यवहार प्रदर्शित करता है जो समूह-तनाव, साम्प्रदायिक दंगों, उपद्रवों तथा अन्तर्राष्ट्रीय अशान्ति को जन्म देती है। स्पष्टतः पूर्वाग्रह, समूह-तनांव का एक अति महत्त्वपूर्ण एवं मौलिक कारण है। (ii) अभ्यनुकूलन- अभ्यनुकूलन (Conditioning) का सिद्धान्त पूर्वाग्रहों के निर्माण में सहायक होता है और इस प्रकार समूह-तनाव का एक प्रमुख कारण बनता है। व्यक्ति जब शुरू में कुछ व्यक्तियों या वस्तुओं से विशेष प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है तो वह उन विशेषताओं का सामान्यीकरण कर लेता है और उसे जाति या वर्ग-विशेष की सभी वस्तुओं या व्यक्तियों पर लागू कर देता है। उदाहरणार्थ-किसी विशुद्ध आचरण वाले ब्राह्मण परिवार का एक बच्चा अण्डे के सेवन को निरन्तर एवं बार-बार अधार्मिक एवं पाप कहते सुनता है। लगातार एक ही प्रकार की बात सुनते-सुनते उसके मन पर अण्डे के बुरे होने की स्थायी छाप पड़ जाती है। अब वह प्रत्येक अण्डा खाने वाले को अधार्मिक या पापी समझेगा और उससे घृणा करेगा। इसी भाँति एक समूह-विशेष के लोग प्रायः अभ्यनुकूलित होकर दूसरे समूह के लोगों के प्रति द्वेष, घृणा या विद्रोह की भावना से भर उठते हैं, जिसके फलस्वरूप समूह-तनाव उत्पन्न होता है। (iii) तादात्म्य एवं अन्तःक्षेपण- व्यक्ति जिस परिवेश के घनिष्ठ सम्पर्क में रहता है उससे सम्बन्धित वर्ग, जाति या समूह के अन्य लोगों से वह अपना तादात्म्य स्थापित कर लेता है और उनसे आत्मीकरण कर लेता है। समनर (Sumner) ने इसे ‘अन्त:समूह’ (In-group) कहकर पुकारा है और अन्य समूहों को बाह्य-समूह (Out-group) का नाम दिया है। इन अन्त:समूहों तथा बाह्य-समूहों के मध्य संघर्ष, पूर्वधारणा को जन्म देता है। तादात्म्य एवं अन्तःक्षेपण की क्रिया से बनी यह पूर्वधारणा या पूर्वाग्रह ही समूह-तनाव का कारण बनती है। (iv) सामाजिक दूरी- समाज के विभिन्न वर्गों में सामाजिक दूरी का होना भी तनाव की उत्पत्ति का कारण है। जब एक समूह के किसी दूसरे समूह के साथ किसी प्रकार के सम्बन्ध नहीं होते और उसके साथ सामाजिक व्यवहार भी नहीं होते तो इसे सामाजिक दूरी का नाम दिया जाता है। जिन समूहों में सामाजिक दूरी कम होती है उनमें प्रेम, मित्रता तथा निकट के सम्बन्ध स्थापित होते हैं, किन्तु जिनमें यह दूरी अधिक होती है उनमें पारस्परिक वैमनस्य तथा तनाव बढ़ते हैं। सामाजिक दूरी के अधिक होने से विभिन्न समूहों में तनाव उत्पन्न होते हैं। (v) भ्रामक विश्वास, रूढ़ियाँ और प्रचार– विभिन्न विरोधी सम्प्रदायों में एक-दूसरे के प्रति भ्रामक रूढ़ियाँ, विश्वास तथा प्रचार चलते रहते हैं। रूढ़ियों का आधार साधारण रूप से परम्पराएँ होती हैं जिनके माध्यम से भ्रान्तिपूर्ण पूर्वधारणाओं का निर्माण होता है और ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलती जाती हैं। सामाजिक सम्पर्क के अभाव में इन रूढ़ियों तथा विश्वासों को दूर करना भी सम्भव नहीं होता। इसी के फलस्वरूप ये शनैः-शनैः तनाव का कारण बन जाते हैं। इसी प्रकार भ्रामक प्रचार भी तनाव के कारण । भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान भारत के विषय में भ्रामक प्रचार करता है जिससे भारत में रहने वाले हिन्दू-मुस्लिम सम्प्रदायों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास एवं विद्वेष बढ़े और भारत में गृहयुद्ध छिड़ जाए। (vi) मिथ्या-दोषारोपण- एक समूह द्वारा दूसरे समूह पर झूठे और मनगढ़न्त आरोप लगाना मिथ्या-दोषारोपण कहलाता है। इनका कोई तार्किक या वैज्ञानिक आधार नहीं होता। एक समूह अपने प्रतिद्वन्द्वी समूह को नीचा दिखाने के लिए उस पर मिथ्या-दोषारोपण करता है। इसमें अफवाहें, कार्टून, व्यंग्य, आर्थिक भेदभाव, कानून द्वारा सामाजिक-आर्थिक-प्रतिबन्ध लगाना, सम्पत्ति का विनाश तथा बेगारी करना इत्यादि सम्मिलित हैं। मिथ्या-दोषारोपण की क्रियाएँ उस समय अधिक प्रभावकारी हो जाती हैं जब एक वर्ग को यह भय सताने लगता है कि दूसरा वर्ग उससे आगे बढ़ जाएगा या अधिक शक्तिशाली बन जाएगा। इस प्रकार के व्यवहारों में एक उच्च समूह के लोग अपनी चिन्ताओं, भग्नाशाओं, निराशाओं तथा मानसिक संघर्षों को प्रक्षेपण सुरक्षा प्रक्रिया द्वारा अभिव्यक्त करते हैं। (vii) व्यक्तित्व एवं व्यक्तिगत विभिन्नताएँ– अध्ययनों से पता चलता है कि जिन लोगों में समायोजन दोष तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी असन्तुलन पाया जाता है उनमें पूर्वाग्रहों की मात्रा सामांन्यजनों की अपेक्षा अधिक होती है। कुण्ठिते, असहिष्णु, आतंकित, असुरक्षित और मानसिक अन्तर्द्वन्द्व एवं हीन-भावना ग्रन्थियों से युक्त व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं को पूर्वाग्रहों की सहायता से प्रकट करते हैं। यदि किसी समूह का नेता व्यक्तित्व के असन्तुलन एवं पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है तो उस स्मूह का अन्य समूहों से समूह-तनाव लगातार बना रहता है। स्पष्टतः व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक विभिन्नताओं के कारण जो समायोजन के दोष पैदा होते हैं, उनसे समूह-तनाव जन्म लेते हैं। वस्तुत: समूह-तनाव के लिए हमेशा कोई एक कारण उत्तरदायी नहीं होता, अक्सर एक या एक से अधिक वातावरणीय या मनोवैज्ञानिक कारण मिलकर समूह-तनाव उत्पन्न करते हैं। |
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