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1.

निर्देशांकों का अर्थ एवं महत्त्व बताइए।यासूचकांक क्या है? इसका क्या उपयोग है? यासूचकांकों के महत्त्व और उपयोगों पर प्रकाश डालिए।यासूचकांकों का अर्थ समझाइए। इनके महत्त्व का वर्णन कीजिए। यानिर्देशांक को परिभाषित कीजिए। इसकी किन्हीं चार विशेषताओं की विवेचना कीजिए।

Answer»

निर्देशांकों या सूचकांकों का अर्थ
निर्देशांक मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों को मापने का एकमात्र साधन है। इनके द्वारा मूल्य-स्तर की केन्द्रीय प्रवृत्ति को मापा जा सकता है। सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिर्वतनों के आधार पर ही इस मुद्रा की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तनों को जान सकते हैं।

चैण्डलर के अनुसार, “कीमतों का सूचंकाक आधार वर्ष की औसत कीमतों की ऊँचाई की तुलना में किसी अन्य समय पर उसकी ऊँचाई को प्रकट करने वाली संख्या होती है।”

सूचकांकों का महत्त्व या उपयोग
वर्तमान समय में आर्थिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों के मापन तथा उनके विश्लेषण की दृष्टि से सूचकांक अथवा निर्देशांक एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपकरण बन चुका है। यही कारण है कि सूचकांकों को आर्थिक वायुमापक यन्त्र कहकर सम्बोधित किया गया है। सूचकांक का महत्त्व आर्थिक, व्यावसायिक एवं राजनीतिक सभी दृष्टिकोणों से है।
सूचकांकों के अभाव में उपभोग, उत्पादन, मुद्रा का मूल्य, वस्तुओं का मूल्य, माँग-पूर्ति जैसी प्रमुख समस्याओं का व्यापक अध्ययन व समाधान असम्भव ही है।

सूचकांकों के महत्त्व या उपयोग को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

⦁    किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रीय आय की वास्तविकता का ज्ञान सूचकांकों के द्वारा ही होता है। सूचकांकों के द्वारा यह जानकारी प्राप्त हो जाती है कि वास्तविक राष्ट्रीय आय में परिवर्तन की सामान्य प्रवृत्ति क्या है? इसके ज्ञात होने पर ही आर्थिक विकास के नियोजित कार्यक्रमों की रूपरेखा बनायी जा सकती है।
⦁    सूचकांकों के माध्यम से सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकता है, अर्थात् इसके माध्यम से मुद्रा की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकता है।
⦁    निर्वाह व्यय सूचकांकों द्वारा मजदूरी के परिवर्तनों को जाना जाता है। इसी आधार पर मजदूरी, महँगाई भत्ते आदि में वृद्धि या कमी की जाती है। वर्तमान समय में मजदूरी एवं महँगाई भत्तों के निर्धारण में सूचकांक ही आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करते हैं।
⦁    सूचकांक आर्थिक जगत् में होने वाले परिवर्तनों का ज्ञान कराते हैं। इसके आधार पर ही सरकार करारोपण, सार्वजनिक व्यय, ऋण, बैंक साख, ब्याजदर सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण करती है। सरकार को बजट-निर्माण में भी इससे सहायता मिलती है।
⦁    सूचकांकों की सहायता से जटिलतम एवं कठिनतम तथ्यों को भी सरल रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। उदाहरण के लिए-व्यापारिक क्रियाओं का मापन केवल किसी एक तथ्य के अध्ययन से सम्भव नहीं होता वरन् इसके लिए उत्पादन, आयात-निर्यात, लाभ, बैंकिंग एवं यातायात से सम्बन्धित अनेक तथ्यों का अध्ययन करना होता है जो कि केवल सूचकांक की सहायता से ही हो सकता है।
⦁    सूचकांक सापेक्ष परिवर्तनों को मापते हैं; अत: इनकी सहायता से तुलनात्मक अध्ययन सुविधाजनक हो जाता है। यह तुलना विभिन्न स्थानों या समयों के बीच भी की जा सकती है।
⦁    विश्व के सभी राष्ट्रों के द्वारा सूचकांक तैयार किये जाते हैं। मूल्यों में परिवर्तन, उत्पादनों, व्यावसायिक परिवर्तनों आदि के सूचकांक की रचना करके अन्य राष्ट्रों से उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। विश्व बैंक मुद्रा कोष द्वारा भी विभिन्न राष्ट्रों से सम्बन्धित आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के सूचकांक तैयार किये जाते हैं।
⦁    सूचकांक अनेक प्रकार के होते हैं एवं इनकी रचना अनेक प्रकार से की जाती है। अतः विभिन्न प्रकार के सूचकांक जनसाधारण को अनेक प्रकार से लाभ पहुंचाते हैं। सूचकांकों द्वारा प्रदत्त सूचनाओं के आधार पर ही लोग भावी परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाते हैं। उन्हें आय की वास्तविक क्रय-शक्ति की जानकारी भी सूचकांकों के माध्यम से ही प्राप्त होती है।
⦁    सूचकांकों द्वारा भूतकाल को आधार मानकर वर्तमान का अध्ययन किया जाता है, जिससे प्राप्त निष्कर्षों में भावी प्रवृत्तियों की एक झलक भी छिपी रहती है जिसके आधार पर विद्वान् भावी योजनाओं व प्रवृत्तियों का निर्माण एवं पूर्वानुमान करते हैं।
संक्षेप में, सूचकांक राष्ट्र की आर्थिक गतिविधियों के उतार-चढ़ाव के सूचक होते हैं। सिम्पसन एवं काफ्का के शब्दों में, “वर्तमान में सूचकांक सर्वाधिक प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि है। इसका प्रयोग अर्थव्यवस्था की नाड़ी देखने में किया जाता है।

2.

सूचकांक बनाते समय उत्पन्न होने वाली चार कठिनाइयाँ लिखिए।

Answer»

(1) आधार-वर्ष के चुनने में कठिनाई।
(2) प्रतिनिधि वस्तुओं के चुनाव में कठिनाई।।
(3) मूल्यों को इकट्ठा करने में कठिनाई।
(4) भार देने में कठिनाई।

3.

सूचकांक के आर्थिक उपयोग बताइए।

Answer»

सूचकांक आर्थिक जगत में होने वाले परिवर्तनों का ज्ञान कराते हैं। इसके आधार पर ही सरकार करारोपण सार्वजनिक व्यय, ऋण, बैंक-साख ब्याज दर सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण करती है। इसी कारण सूचकांकों को आर्थिक वायुमापक यन्त्र कहकर सम्बोधित किया गया है।

4.

औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक में किस मद के लिए उच्चतम भार होता है?(क) खाद्य पदार्थ(ख) आवास(ग) कपड़े

Answer»

सही विकल्प है (क) खाद्य पदार्थ

5.

साधारण सूचकांक का निर्माण किस प्रकार किया जाता है?

Answer»

साधारण सूचकांक निर्माण करने के लिए सर्वप्रथम आधार-वर्ष का चुनाव कर लिया जाता है, तत्पश्चात् प्रतिनिधि वस्तुओं का चुनाव करके उनके मूल्य एकत्रित कर लिये जाते हैं तथा उनका औसत ज्ञात कर लिया जाता है। इन सब बातों को निश्चित करने के पश्चात् प्रत्येक प्रतिनिधि वस्तु आधार-वर्ष के मूल्यों को 100 के बराबर कर लिया जाता है और उन सबको जोड़कर वस्तुओं की संख्या से भाग दे देते हैं। इस प्रकार आधार-वर्ष के मूल्यों का गणितात्मक औसत प्राप्त हो जाता है जो आधार-वर्ष का सूचकांक होता है। आधार-वर्ष का सूचकांक प्रत्येक दशा में 100 आता है। इसके पश्चात् वर्तमान वर्ष के मूल्यों को लेकर उनके मूल्य सम्बन्धी (Price relatives) निकाले जाते हैं जो वस्तुओं के वर्तमान मूल्यों को आधार-वर्ष के मूल्यों के प्रतिशत के रूप में व्यक्त करते हैं। इस प्रकार प्राप्त होने वाले सब वस्तुओं के मूल्य सम्बन्धियों को जोड़कर वस्तुओं की संख्या से भाग दे देते हैं और इस प्रकार वर्तमान वर्ष का सूचकांक ज्ञात हो जाता है।

6.

औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक क्या मापता है?

Answer»

भारत के औद्योगिक श्रमिकों के लिए अलग से उपभोक्ता कीमत सूचकांक बनाया जाता है। इसे 1982 को आधार वर्ष मानकर बनाया जाता है। इसका नियमित रूप से हर महीने परिकलन किया जाता है। यह सूचकांक औद्योगिक श्रमिकों के जीवन-निर्वाह पर फुटकर कीमतों में आए परिवर्तनों के प्रभावों को मापता है। इनका प्रकाशन श्रमिक केन्द्र शिमला द्वारा किया जाता है। इसका निर्माण करते समय औद्योगिक श्रमिकों के लिए मुख्य वस्तु समूहों को उपयुक्त भार दिया जाता है।

7.

मदों के सापेक्षिक महत्त्व को बताने वाले सूचकांक को(क) भारित सूचकांक कहते हैं।(ख) सरल समूहित सूचकांक कहते हैं।(ग) सरल मूल्यानुपातों का औसत कहते हैं।

Answer»

सही विकल्प है (क) भारित सूचकांक कहते हैं।

8.

सूचकांक की विशेषता नहीं है(क) सूचकांक मुद्रा के मूल्य का निरपेक्ष माप न होकर सापेक्ष माप है।(ख) सूचकांकों को प्रतिशतों में व्यक्त नहीं किया जाता है।(ग) यह एक विशेष प्रकार का माध्य ही है।(घ) सूचकांक आर्थिक पहलू के उच्चावचनों को संख्यात्मक रूप में ही माप सकता है।

Answer»

(ख) सूचकांकों को प्रतिशतों में व्यक्त नहीं किया जाता है।

9.

सूचकांकों की दो सीमाएँ बताइए।

Answer»

⦁    सूचकांके निरपेक्ष परिवर्तनों की मापों की अपेक्षा सापेक्ष परिवर्तनों की ही माप करता है।

⦁    विभिन्न सूचकांक अलग-अलग उद्देश्यों को पूरा करते हैं।

10.

सूचकांकों के दो लाभ बताइए।

Answer»

⦁    सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता
⦁    सूचकांक वास्तविक आय में होने वाले परिवर्तन का सूचक होता है।

11.

सूचकांकों की दो विशेषताएँ बताइए।

Answer»

⦁    सूचकांक मुद्रा के मूल्य का निरपेक्ष माप न होकर सापेक्ष माप है।

⦁    सूचकांकों को प्रतिशतों में व्यक्त किया जाता है।

12.

सेंसेक्स क्या है?

Answer»

सेंसेक्स वह सूचक है जो कि भारतीय स्टॉक बाजार में होने वाले परिवर्तनों को दर्शाता है। इसका आधार-वर्ष 1978-79 है।

13.

कृषि उत्पादन सूचकांक का क्या उपयोग है।

Answer»

कृषि उत्पादन सूचकांक हमें कृषि क्षेत्र के निष्पादन के बारे में बताते हैं।

14.

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की क्या उपयोगिता है?

Answer»

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक हमें औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन में परिवर्तन के बारे में परिमाणात्मक अंक प्रदान करता है।

15.

मुद्रा की क्रय शक्ति एवं वास्तविक मजदूरी के परिकलन के लिए किस सूचकांक का प्रया किया जाता है?

Answer»

उपभोक्ता कीमत सूचकांक।

16.

सूचकांक क्या है? इनकी उपयोगिता तथा सीमाओं का वर्णन कीजिए।

Answer»

सूचकांक : अर्थ एवं परिभाषाएँ
समाज में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन होने के कारण मुद्रा का मूल्य भी परिवर्तित होता रहता है, जिससे समाज का प्रत्येक वर्ग प्रभावित होता है, फलस्वरूप कीमत-स्तर, उपभोग, जनसंख्या, बचत, निवेश, राष्ट्रीय आय, आयात-निर्यात, मजदूरी, ब्याज, किराया व लगान आदि चरों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। अत: मुद्रा-मूल्य में हुए परिवर्तनों का माप करना व्यावहारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है। इन परिवर्तनों को निरपेक्ष रूप से मापने का कोई साधन नहीं है; अतः इनको सापेक्ष माप लिया जाता है। सूचकांक विशिष्ट प्रकार के सापेक्ष माप होते हैं, जिनके आधार पर समंकों की उचित एवं स्पष्ट तुलना की जा सकती है।

सूचकांकों की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
⦁    चैण्डलर के अनुसार-“कीमत का सूचकांक आधार-वर्ष की तुलना में किसी अन्य समय में कीमतों की औसत ऊँचाई को प्रकट करने वाली संख्या है।”

⦁    डॉ० बाउले के शब्दों में- “सूचकांक की श्रेणी एक ऐसी श्रेणी होती है, जो अपने झुकाव तथा उच्चावचनों द्वारा जिस परिमाण से संबंधित है, में होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।”

⦁    किनले के शब्दों में- “सूचकांक वह अंक है, जो किसी पूर्व निश्चित तिथि को चुनी वस्तुओं या | वस्तु-समूह के मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे प्रामाणिक मानते हुए किसी बाद की तिथि को | उन्हीं वस्तुओं के मूल्य से तुलना करते हैं।”

⦁    क्रॉक्सटन व काउडेन के अनुसार- “सूचकांक, संबंधित चर-मूल्यों के आकार में होने वाले |. अंतरों की माप करने के साधन हैं।”

⦁    होरेस सेक्राइस्ट के शब्दों में- “सूचकांक अंकों की एक ऐसी श्रेणी है, जिसके द्वारा किसी भी तथ्य के परिमाण में होने वाले परिवर्तनों का समय या स्थान पर मापन किया जा सकता है।”

सूचकांकों की विशेषताएँ
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर सूचकांकों की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-
⦁    सूचकांक मुद्रा के मूल्य का निरपेक्ष माप न होकर सापेक्ष माप है। ”

⦁    सूचकांकों को प्रतिशतों में व्यक्त किया जाता है।

⦁    इनका प्रयोग ऐसे तथ्यों के परिवर्तनों को मापने के लिए किया जाता है, जिन्हें प्रत्यक्ष माप से नहीं मापा जा सकता।
⦁    यह एक विशेष प्रकार का माध्य ही है।
⦁    सूचकांक आर्थिक पहलू के उच्चावचनों को संख्यात्मक रूप में ही माप सकता है।

सूचकांक की उपयोगिता 

सूचकांकों की सार्वभौमिक उपयोगिता है। ये व्यापारी, अर्थशास्त्री व राजनीतिज्ञों का पथ-प्रदर्शन करते हैं। और उन्हें भावी प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने में सहायता करते हैं। कीमत, जीवन-निर्वाह, औद्योगिक उत्पादन, खाद्यान्न उत्पादन, निर्यात, आयात, लाभ, मुद्रा-पूर्ति, जनसंख्या, राष्ट्रीय आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य आदि से संबंधित सूचकांक विभिन्न घटनाओं का सापेक्षिक माप प्रस्तुत करते हैं, इसीलिए सूचकांक ‘आर्थिक वायुमापक यंत्र’ (Economic Barometers) कहलाते हैं। व्यावहारिक रूप में सूचकांकों से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं

⦁    मुद्रा के मूल्य की माप- सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है। सामान्य मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तन से मुद्रा की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाया जा सकता है।
⦁    आर्थिक स्थिति की तुलना—रहन-सहन संबंधी सूचकांकों की तुलना करके समाज के किसी | वर्ग के रहन-सहने में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाया जा सकता है।
⦁    मजदूरी निर्धारण में उपयोगिता– सूचकांक वास्तविक आय में होने वाले परिवर्तन का सूचक होता है। अतः मजदूरी व वेतन के निर्धारण में इनसे बहुत अधिक सहायता मिलती है। ”

⦁    ऋणों के न्यायपूर्ण भुगतान का आधार- सूचकांकों की सहायता से मूल्य-स्तर में परिवर्तन का अनुमान लगाया जा सकता है और इसी आधार पर ऋणों की मात्रा में परिवर्तन करके उनका न्यायपूर्ण भुगतान किया जा सकता है। इससे किसी भी पक्ष को असंगत लाभ या हानि नहीं होती।

⦁    अंतर्राष्ट्रीय तुलना करने में सहायक- सूचकांकों की सहायता से विभिन्न प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय तुलनाएँ करना संभव है। विभिन्न देशों की मुद्राओं की क्रय-शक्ति में क्या परिवर्तन जहुए हैं, इसकी जानकारी व तुलना सूचकांकों की सहायता से की जा सकती है।

⦁    देश के आर्थिक विकास का अनुमान- उत्पादन सुचकांक देश में उत्पादन संबंधी जानकारी देते हैं, जिनके आधार पर सरकार अपनी औद्योगिक नीति का निर्माण करती हैं सूचकांकों की सहायता से ही विदेशी व्यापार की स्थिति व देश में पूँजी व विनियोग की मात्रा को ज्ञान होता है।

⦁    भावी प्रवृत्तियों का अनुमान- सूचकॉक न केवल वर्तमान परिवर्तनों को बताते हैं बल्कि इनकी सहायता से भविष्य के संबंध में भी महत्त्वपूर्ण अनुमान लगाए जा सकते हैं।

⦁    जटिल तथ्यों को सरल बनाना– सूचकांकों की सहायता से ऐसे जटिल तथ्यों में होने वाले परिवर्तनों की माप भी की जा सकती है, जिनकी माप किसी अन्य साधन से संभव नहीं है।

⦁    नियंत्रण एवं नीतियाँ- सूचकांकों के आधार पर ही सरकार आर्थिक नियोजन व नियंत्रण संबंधी नीतियाँ बनाती है। 

सूचकांकों की सीमाएँ

सबसे अधिक उपयोगी सांख्यिकीय विधि होते हुए भी सूचकांक परिवर्तनों की एक अपूर्ण माप है। इसकी प्रमुख सीमाएँ निम्मलिखित हैं

⦁    सापेक्ष परिवर्तनों की अनुमानित माप- सूचकांक निरपेक्ष परिवर्तनों की मापों की अपेक्षा सापेक्ष परिवर्तनों की ही माप करता है और वह भी मात्र अनुमान के रूप में। वास्तव में, सूचकांक केवल सामान्य प्रवृत्तियों की ओर ही संकेत करते हैं।

⦁    शुद्धता की कमी- सूचकांक बनाते समय समूह की प्रत्येक इकाई को शामिल नहीं किया जाता है। वरन् इसके लिए कुछ प्रतिनिधि इकाइयों का ही चयन किया जाता है। इससे प्रतिदर्श अपर्याप्त और अप्रतिनिधि परिणामों की सत्यता कम हो जाती है।

⦁    उद्देश्य में अंतर- विभिन्न सूचकांक अलग-अलग उद्देश्यों को पूरा करते हैं। एक सूचकांक, जो एक उद्देश्य के लिए उपयुक्त हो सकता है, अन्य उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त हो सकता है।कोई भी सूचकांक सार्व-उद्देशीय नहीं होता।

⦁    अंतर्राष्ट्रीय तुलना कठिन- सूचकांकों की सहायता से दो देशों के संबंध में किसी प्रकार की तुलना करना काफी कठिन होता है क्योंकि सूचकांकों की निर्माण-विधि, उनका आधार-वर्ष तथाप्रतिनिधि वस्तुओं की सूची विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न होती है।

⦁    विभिन्न समय में तुलना करना कठिन– लोगों के द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं में | परिवर्तन होता रहता है। अतः सूचकांकों की सहायता से विभिन्न समयों में तुलना करना संभव नहींहोता है।

⦁    भार निर्धारण अवैज्ञानिक- भारित सूचकांकों में भार निर्धारण मनमाना तथा अवैज्ञानिक होता है। भिन्न-भिन्न वर्षों में एक ही वस्तु के भार बदल जाते हैं, जिसके कारण परिणामों में अंतर आ जाता है।