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7.भाव स्पष्ट कीजिए-(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।​

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ANSWER:

कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं। कवि के भाव के अनुसार जो आत्मिक सुख ब्रज की प्राकृतिक छटा में है, उसके सौंदर्य को निहारने में है वैसा सुख संसार की किसी भी सांसारिक वस्तु को निहारने में नहीं है। इसलिए वह ब्रज की काँटेदार झाड़ियों व कुंजन पर सोने के महलों का सुख न्योछावर कर देना चाहते हैं।

Explanation:

सवैये माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै। उपर्युक्त पंक्तियों का भाव यह है कि कृष्ण की मुस्कान इतनी मोहक है कि गोपी से वह झेली नहीं जाती है अर्थात् कृष्ण की मुस्कान पर गोपी इस तरह मोहित हो जाती है कि लोक लाज का भी भय उनके मन में नहीं रहता और गोपी कृष्ण की तरफ़ खींचती जाती है।



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