1.

आहार के पोषक तत्त्व के रूप में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।याकार्बोहाइड्रेट के संगठन, प्राप्ति के स्रोत, उपयोगिता तथा अधिकता से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।याप्रोटीन के विषय में आप क्या जानती हैं?प्रोटीन की उपयोगिता, आहार में कमी तथा अधिकती के परिणाम बताइए।या‘वसा’ के विषय में आप क्या जानती हैं? वसा की उपयोगिता, आहार में कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।

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(I) कार्बोहाइड्रेट

ये कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से निर्मित यौगिक हैं, जिनमें हाइड्रोजन व ऑक्सीजन सदैव दो-एक के अनुपात (2:1) में होती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार की शर्करा व स्टार्च सम्मिलित किए जाते हैं। शर्करा को मीठे फलों; जैसे अंगूर, खजूर, सेब आदि से प्राप्त किया जा सकता है। बड़े पैमाने पर शर्करा गन्ने एवं चुकन्दर से प्राप्त की जाती है। अंगूरी-शर्करा, ग्लूकोस, अन्य फलों से प्राप्त शर्करा फ्रक्टोज तथा व्यापारिक शर्करा सुक्रोस कहलाती है। स्टार्च प्राय: गेहूं, चावल, आलू, साबूदाना व अरवी इत्यादि से प्राप्त होता है। स्टार्च प्राय: जल में अविलेय होता है।

उपयोगिता

  1. ये शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  2. ये शरीर का ताप बनाए रखते हैं।
  3. ये शारीरिक भूख शान्त करने के लिए सर्वोत्तम एवं सस्ते खाद्य पदार्थ हैं।
  4. कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करके प्रोटीन तथा वसा को अन्य उद्देश्यों के लिए बचाए रखने .. में सहायक होता है।
  5. बकार्बोहाइड्रेट शरीर में कैल्सियम के शोषण में सहायक होता है।
  6. सेलुलोस आदि के रूप में कार्बोहाइड्रेट शरीर से मल विसर्जन में सहायक होता है। इसीलिए आहार में रेशेदार भोज्य-पदार्थ सम्मिलित किए जाते हैं।
  7. कार्बोहाइड्रेट युक्त भोज्य पदार्थ विभिन्न खनिज लवणों तथा विटामिनों के उत्तम स्रोत होते हैं।

कार्बोहाइड्रेट की कमी से हानियाँ:

यदि व्यक्ति के आहार में कार्बोहाइड्रेट की कम मात्रा का समावेश होता है, तो हमारा शरीर आवश्यक ऊर्जा, प्रोटीन तथा वसा से प्राप्त करता हैं इससे शरीर में प्रोटीन-कार्बोहाइड्रेट कुपोषण की स्थिति आ जाती है। इस स्थिति में शरीर का वजन घटने लगता है तथा त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं। त्वचा ढीली पड़ जाने के कारण लटकने लगती है, व्यक्ति दुर्बलता महसूस करने लगता है तथा उसके चेहरे की सामान्य चमक घटने लगती है।

कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से हानियाँ:
कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से हमारे शरीर में कुछ हानियाँ हो सकती हैं; जैसे—इनकी अधिकता से पाचन क्रिया बिगड़ सकती है, दस्त हो सकते हैं तथा शरीर में मोटापा आ सकता है। शर्कराओं के अधिक प्रयोग से मधुमेह का रोग हो सकती है।

(II) प्रोटीन

हमारे आहार को एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व ‘प्रोटीन भी है। ये जटिल रासायनिक अणु होते हैं जो कि कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के बने होते हैं। इन्हें नाइट्रोजीन्स अथवा नाइट्रोजनयुक्त खाद्य पदार्थ भी कहते हैं। कुछ प्रकार की प्रोटीन्स में सल्फर व फॉस्फोरस भी होते हैं। सभी प्रोटीन्स अमीनो अम्ल के संयोग से बने होते हैं। प्राप्ति के आधार पर प्रोटीन्स दो प्रकार के होते हैं

(क) प्राणिजन्य प्रोटीन:
इस वर्ग की प्रोटीन्स मांस, मछली, अण्डे, दूध व दूध से बनी खाद्य सामग्रियों से प्राप्त होती हैं। इससे प्राप्त प्रोटीन का प्रतिशत इस प्रकार है

(1) अण्डा (एल्ब्यूमिन)           13.3%
(2) मछली                             21.5%
(3) मांस                                20%
(4) दूध                                   4 %
(5) खोया                               20%
सामान्यतः प्राणिजन्य प्रोटीन सुपाच्य एवं सर्वोत्तम होते हैं

(ख) वनस्पतिजन्य प्रोटीन:
इस वर्ग की प्रोटीन मुख्य रूप से दालों (चना, मटर, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन आदि) से प्राप्त होती है। सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा सर्वाधिक होती है। विभिन्न मेवों, गेहूं, चावल आदि से प्रोटीन की प्राप्ति होती है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन्स की प्रतिशत मात्रा निम्नलिखिते होती है

(1) सोयाबीन                                                           43%
(2) मूंग, मसूर, अरहर, उड़द, मटर आदि             20-24%
(3) मूंग व चावल                                                   12-14%
(4) मूंगफली                                                            26%
(5) काजू                                                                 20%
(6) बादाम                                                               21%

उपयोगिता:

  1. शरीर के तन्तुओं, नाड़ियों तथा आन्तरिक अंगों के निर्माण एवं टूट-फूट की क्षतिपूर्ति में प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहती है।
  2. शरीर के स्वस्थ एवं समुचित विकास के लिए प्रोटीन की आवश्यकता सर्वोपरि होती है।
  3. प्रोटीन पाचक रसों, आन्तरिक रसों अथवा हॉर्मोन्स तथा किण्व के निर्माण में सहायता करता है। लगभग सभी किण्व प्रोटीन के बने होते हैं।
  4. प्रोटीन मानसिक शक्ति में वृद्धि करता है।
  5. आवश्यकता पड़ने पर कभी-कभी प्रोटीन शरीर को ऊष्मा एवं ऊर्जा प्रदान करते हैं। रोगों के फलस्वरूप उत्पन्न दुर्बलता के निवारण के लिए प्रोटीन बहुत महत्त्वपूर्ण रहते हैं।
  6. प्रोटीन से रोग-निरोधक क्षमता का भी समुचित विकास होता है।

प्रोटीन की कमी से हानियाँ:
शरीर के भार के अनुसार हमें (1 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से) प्रतिदिन प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसकी कमी से निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है

  1. शरीर अस्वस्थ रहता है तथा अनेक रोगों के पनपने का भय रहता है।
  2. शरीर के विकास की गति रुक जाती है।
  3. शिशुओं एवं बालकों में समुचित वृद्धि नहीं होती है।
  4. यकृत के आकार में वृद्धि हो जाती है।
  5. रक्तचाप निम्न हो जाता है तथा मनुष्य दुर्बलता अनुभव करता है।
  6. त्वचा पर चित्तियाँ पड़ जाती हैं व बाल झड़ने लगते हैं।
  7. प्रोटीन की निरन्तर कमी के परिणामस्वरूप क्वाशरकोर, पैलेग्रा तथा यकृत सम्बन्धी कुछ रोग भी हो जाते हैं।

प्रोटीन की अधिकता से हानियाँ:
जिस प्रकार प्रोटीन की कमी से अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, ठीक उसी प्रकार अधिक एवं अनावश्यक प्रोटीन का उपयोग भी अनेक शारीरिक विषमताओं को जन्म देता है। प्रोटीन की अधिकता से निम्नलिखित शारीरिक हानियाँ सम्भव हैं

1.शरीर में गर्मी अधिक उत्पन्न होती है।

2.प्रोटीन के आधिक्य को निष्कासित करने के लिए गुर्दो को अधिक कार्य करना पड़ता है; जिससे उनके दुर्बल होने का भय रहता है।

3.ठण्डे प्रदेशों में प्रोटीन का अधिक उपयोग कम हानिकारक होता है, परन्तु गर्म देशों (जैसे कि भारतवर्ष) में अधिक प्रोटीन न प्रयोग करना ही हितकर है।

(III) वसा एवं तेल

वसा कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से निर्मित होती है। इनमें ऑक्सीजन की अल्प मात्रा होती है। ये वसीय अम्लों एवं ग्लिसरॉल के संयोग से बनते हैं। वसा प्रायः निम्नलिखित दो प्रकार की होती है
() प्राणिजन्य वसा:
पशुओं की चर्बी, अण्डों की जर्दी, मछली का तेल आदि वसा के मुख्य स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त पशुओं (गाय व भैंस आदि) का दूध, मक्खन व घी वसा के अधिक सामान्य एवं महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

() वनस्पतिजन्य वसी:
सरसों, नारियल, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी तथा तिल के तेल वसा के सामान्य स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त बादाम, काजू व अखरोट आदि मेवों में भी प्रचुर मात्रा में वसा पाई जाती है।

उपयोगिता:
वसा एवं वसायुक्त भोज्य पदार्थों का सेवन करने से हमें लाभ तथा हानियाँ दोनों ही होती हैं। इनका क्रमबद्ध विवरण निम्नलिखित है

लाभ:

  1. कार्बोहाइड्रेट्स के समान ये भी ऊर्जा के अच्छे स्रोत हैं।
  2. ये बाह्य गर्मी एवं सर्दी से शरीर की रक्षा करते हैं।
  3. अधिक मात्रा में लेने पर शरीर में संचित हो जाते हैं तथा आन्तरिक अंगों एवं हड्डियों को बाह्य आघात से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  4. ये मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं।
  5. कई विटामिन्स (जैसे ‘ए’, ‘ई’, ‘के’ एवं ‘डी’) के लिए ये विलायक का कार्य करते हैं।
  6. वसा शरीर के ताप के नियमन में सहायता प्रदान करती है।
  7. वसा पाचन-संस्थान को चिकना बनाए रखती है तथा उसकी (आँतों एवं आमाशय की) क्रियाशीलता को सुचारु बनाती है।
  8. वसायुक्त आहार स्वादिष्ट बन जाता है।
  9. वसा शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करके प्रोटीन की बचत में भी योगदान प्रदान करती है।
  10. वसा युक्त भोजन ग्रहण करने से व्यक्ति को अधिक समय तक भूख नहीं लगती।

हानियाँ:

1.इनकी अधिकता से मोटापा बढ़ता है।

2.इनकी अधिकता से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। रक्त नलिकाओं को दीवारों में कोलेस्ट्रॉल के जमने के कारण रक्त वाहिनियाँ संकुचित हो जाती हैं; अतः हृदय रोग की सम्भावनाभों में वृद्धि हो जाती है।

3.वसा की अधिक मात्रा ग्रहण करने से पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है तथा अपच या दस्त होने लगते हैं।



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