1.

आशय स्पष्ट कीजिए:(क) सत्य में जैसे कुछ घटाना या जोड़ना संभव नहीं रहता, वैसे ही सच्चे व्यक्तित्व में भी कुछ जोड़नाघटाना सम्भव नहीं है।(ख) क्या वह सांचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे?

Answer»

(क) भाव यह है कि सत्य अंत तक सत्य ही रहता है। उसमें से कुछ भी घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता। उसी प्रकार एक सच्चे व्यक्तित्व में कुछ भी घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता, क्योंकि सच्चा व्यक्ति सदैव एक ही रूप में नज़र आता है।

(ख) भाव यह है कि क्या ईश्वर से वह सांचा टूट गया है, जिसके माध्यम से वह राजेंद्र बाबू जैसे कठिन और कोमल चरित्र वाले व्यक्ति बनाता था। अब ईश्वर ने उन जैसे सरल तथा परिश्रमी व्यक्ति बनाना बंद कर दिया है। आज वह वातावरण नष्ट हो गया है जिस वातावरण में नैतिक चरित्रों का निर्माण होता था।



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