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अगर धीरे चलोवह तुम्हें छू लेगीदौड़ो तो छूट जायेगी नदीअगर ले लो साथवह चलती चली जायेगी कहीं भीयहाँ तक-कि कबाड़ी की दुकान तक भी।

Answer»

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित ‘नदी’ शीर्षक कविता से उधृत हैं। इन पंक्तियों के रचयिता श्री केदारनाथ सिंह जी हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि नदी का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। यह जीवन में प्रत्येक क्षण हमारा साथ देती है।

व्याख्या-कवि कहता है कि यदि हम नदी के बारे में, उसके गुणों के बारे में, उसके महत्त्व के बारे में सोचते हैं तो वह हमारे अन्तस्तल को स्पर्श करती प्रतीत होती है। नदी हमारा पालन-पोषण उसी प्रकार करती है, जिस प्रकार हमारी माँ। जिस प्रकार अपनी माँ से हम अपने-आपको अलग नहीं कर सकते, उसी प्रकार हम नदी से भी अपने को अलग नहीं कर सकते। यदि हम सामान्य गति से चलते रहते हैं तो यह हमें स्पर्श करती प्रतीत होती है लेकिन जब हम सांसारिकता में पड़कर भाग-दौड़ में पड़ जाते हैं तो यह हमारा साथ छोड़ देती है। यदि हम इसे साथ लेकर चलें तो यह प्रत्येक परिस्थिति में किसी-न-किसी रूप में हमारे साथ रहती है;  क्योंकि यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। न तो वह हमसे अलग हो सकती है और न हम उससे।

काव्यगत-सौन्दर्य-
⦁    कवि ने नदी के महत्त्व का वर्णन किया है कि यह हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण में किसी-न-किसी रूप में हमारे साथ रहती है।
⦁    भाषा-सहज और सरल खड़ी बोली।
⦁    शैली-वर्णनात्मक व प्रतीकात्मक।
⦁    छन्द-अतुकान्त और मुक्त।
⦁    अलंकार-अनुप्रास का सामान्य प्रयोग।



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